भारत-चीन रिश्तों में नया अध्याय...
अभी दो दिन पहले एशिया के दो सबसे बड़े ताकतवर देशों के शासनाध्यक्ष एक साथ बैठे। साथ-साथ चाय भी, बोटिंग की और और पार्क में चहलकदमी करते हुए एक-दूसरे के साथ ऐसा व्यवहार दिखाने का प्रयास किया जैसा कि दोनों नेता शायद एक-दूसरे के सहयोगी है और विकास की धारा को आगे बढ़ाने के लिए कटिबद्घ भी। दरअसल खुशनुमा माहौल में बीजिंग में हुए इस मुलाकात के पीछे दोनों देशों के बीच पिछले कुछ समय से पनपे तनाव पर कूटनीतिक प्रयासों की जीत संदेश स्पष्टï था। भारतीय प्रधानमंत्री और चीनी राष्ट्रपति के साथ इस मुलाकात को केवल एशिया ही नहीं, पूरी दुनिया में लंबे समय तक याद रखा जाएगा। दो अलग-अलग जगहों पर दो शासनाध्यक्षों ने सीमा पार की और रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने लगी। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब हिमालय पर्वत शृंखला को पार करके चीन पहुंचे तो वे सारी आशंकाएं एकाएक ध्वस्त होने लगीं, जो पिछले कुछ समय से दोनों देशों के बीच तनाव के पारे को बढ़ाने लगी थीं। हालांकि चीन के सर्वशक्तिशाली नेता शी जिनपिंग से उनकी मुलाकात अनौपचारिक थी और उसका कोई पहले से तैयार एजेंडा नहीं था, फिर भी यात्रा के नतीजे सुखद कहे जा सकते हैं। अब भारत से चीन के बीच फाइबर आप्टिक केबल बिछाई जायेगी। पड़ोसी अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए दोनों देश मिलकर विकास का नया अध्याय लिखेंगे। इसके लिए दोनों देशों ने इंडिया-चाइना इकोनामिक प्रोजेक्ट की रूपरेखा भी तय की। भारत व चीन के रिश्तों में पाकिस्तान को बेवजह अहमियत देना गलत है। अब दोनों देशों ने मिलकर विकास करने का रास्ता प्रशस्त किया है, जिससे पाकिस्तानी आवाम को भी फायदा ही होगा। इस मुलाकात ने एक बात और तय कर दी कि भारत और चीन, दोनों ही सभ्य, परिपक्व और जिम्मेदार देश हैं और आपसी तनावों को मिल-बैठकर एक साथ सुलझाने में सक्षम भी हैं। भारतीय नजरिये से यह एक और कूटनीतिक जीत की निशानी थी, क्योंकि पिछले कई वर्षों से चीन पाकिस्तान का आंख मूंदकर समर्थन करता आ रहा था। वह कई मामलों में भारत के खिलाफ भी खड़ा रहा। डोकलाम मुद्दे पर भी तनातनी किसी से छिपी नहीं थी। ऐसे में इस मुलाकात के बाद दोनों देशों के बीच रिश्तों में आयी कड़वाहट भरी 'सीन' में बदलाव देखने को मिल सकते हैं। हमारी मीडिया की भूमिका इस संबंध में पहले अत्यंत नकारात्मक रहा है। प्राइम टाईम मीडिया जो कारपोरेट घरानों की सेविका है, ने भारत और चीन के रिश्तों को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के चश्में से देखने और प्रस्तुत करने का प्रयास किया। वह भूल गई कि भारत और चीन पुरानी सभ्यता वाले पड़ोसी राष्ट्र हैं और इनके बीच मधुर सम्बन्ध दुनिया की आधी आबादी की खुशहाली के लिए जरूरी है।
बेशक, भारत और चीन के रिश्तों में तमाम समस्याओं के बावजूद न तो इतनी जटिलता है और न ही उम्मीद कभी असंभव सी दिखने वाली चीज रही है, लेकिन इस मुलाकात ने बता दिया कि राजनय की बुद्धिमानी भरी गर्मजोशी उन तमाम अभियानों और खींचतान पर भारी पड़ती है, जो देशों के बीच का तापमान बेवजह ही बढ़ाते रहते हैं। इन दोनों नेताओं ने दुनिया भर को यह भी संदेश देने का कार्य किया कि आगे बढऩे का सभ्य तरीका यही है कि दुनिया भर के नेता अपनी बंदूकों में बारूद भरने की बजाय साथ आएं और बात करें।
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