उत्तर और दक्षिण कोरिया में ऐतिहासिक शान्ति वार्ता...
उत्तरी कोरिया के नेता किम जोंग उन ने सही अर्थों में इतिहास रचा है, जब उन्होंने 1953 के युद्घ विराम के बाद पहली बार युद्घबंदी लाइन को पार करके दक्षिण कोरिया पैर रखा और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून से अच्छे संबंध स्थापित किये। किम जोंग उन की इस पहल से पूर्वी एशिया के देशों में छाये दहशत का माहौल काफी हद तक कम हो गया है। उन्होंने इसकी पहले ही शुरूआत कर दी थी। पहले राष्ट्रपति ट्रम्प से बातचीत की इच्छा जाहिर किया जाना और उसके बाद चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से बीजिंग में मुलाकात एक तरह से कूटनीतिक स्तर पर किम की बड़ी जीत थी और अब करीब 50 वर्षों से अधिक से चली आ रही वैमनस्यता की खाई को दक्षिण कोरिया जाकर पाटने की रणनीति न केवल दोनों देशो के बीच शान्ति के माहौल को पैदा करने वाली है, बल्कि पूरे विश्व के लोगों को भी किसी अनहोनी की आशंका से दूर करने का भी संदेश मिलता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने जिस तरह उत्तर कोरिया के विरूद्घ राष्ट्र संघ में धमकी दी थी, उससे कोरियन पेनिनसुला के सभी लोग व्यथित थे। राष्ट्रपति ट्रम्प का इतिहास ज्ञान कमजोर है और वह केवल नफा-नुकसान और फौजी शक्ति की बात करते हैं। यद्यपि दक्षिण कोरिया उनका बड़ा समर्थक था, परन्तु अमेरिका की इन्हीं धमकियों से वहां एक ऐसा राष्ट्रपति चुनकर आया जो कोरिया के एकीकरण में यकीन करता है। यद्यपि अमेरिकी नेताओं ने उत्तरी कोरिया के नेता किम जोंग उन को पागल करार दिया था, परन्तु इस पूरे घटनाचक्र में वही सबसे अधिक कामयाब नजर आये। इस वक्त स्थिति यह है कि उत्तर कोरिया के पास परमाणु बम है और ऐसी मिसाइलें हैं जो अमेरिकी तटों तक पहुंच जाती है। अब जब राष्ट्रपति ट्रम्प से किम जोंग उन की बात होगी तो वह दो परमाणु सम्पन्न शक्तिशाली राजनेताओं की बात होगी। यद्यपि उत्तर और दक्षिण कोरिया के नेताओं ने इस क्षेत्र को परमाणु हथियारों से साफ रखने की बात कही है, परन्तु इस क्षेत्र में सबसे अधिक परमाणु हथियार अमेरिकी युद्घपोतों पर हैं। यदि उत्तर कोरिया ने अपरमाणुकरण की बात की तो इसका प्रभाव सबसे अधिक पश्चिम देशों पर ही पड़ेगा और जापान तथा अन्य अमेरिकी फौजी साथी कमजोर पड़ेंगे।
उत्तर और दक्षिण कोरिया के आपसी संबंध अच्छे होने से सबसे अधिक परेशानी जापान और अमेरिका को ही है। दक्षिण कोरिया पहले भी कई मामलों में किम का समर्थक था। पिछली बार जब अमेरिका ने उस क्षेत्र में अपने शक्तिशाली एन्टी मिसाइल बैट्रियां लगाईं तो इसका विरोध दक्षिण कोरिया में ही अधिक हुआ। अब जब दक्षिण और उत्तर कोरिया चीन के सौजन्य से एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं तो इसका लाभ भी इन देशों को ही मिलेगा।
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