Sunday, April 8, 2018

Opinion on Indo-Nepal Relation

भारत-नेपाल रिश्ते मधेशी आंदोलन की तपिश से आगे बढ़े


चार वर्ष पहले भाजपा की अगुवाई वाली सरकार में प्रधानमंत्री के रूप में जब नरेन्द्र मोदी शपथ ले रहे थे, तब हमारे पड़ोसी दक्षेश के सभी राष्ट्राध्यक्षों का समारोह में मौजूद होना भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। इस समारोह में भारत का धुर विरोधी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का भी शिरकत किया जाना पड़ोसी राष्ट्रो के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों की बुनियाद को मजबूती देने का संदेश देने वाला था। बाद में जब पाकिस्तान की तरफ से सीमापार आतंक को बढ़ावा देने की बातें सामने आयी तो दक्षेश के अन्य देश पूरी मजबूती के साथ भारत के साथ खड़े दिखे थे और पाकिस्तान में होने वाले दक्षेश सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया था।
  परन्तु आज स्थितियां पूर्णत: बदल गई हैं। भूटान और अफगानिस्तान को छोड़कर अन्य देशों का रवैया भारत के प्रति बदल चुका है। पाकिस्तान को छोडिय़े छोटे भाई की तरह व्यवहार करने वाला पड़ोसी नेपाल भी अविश्वास की बुनियाद पर संबंधों को आंकने की कोशिश कर रहा है। मालद्वीव हो या श्रीलंका, सभी चीन की छत्रछाया में भारत से बातचीत तक करने से कतरा रहे है। अभी हाल ही मलेशिया ने भारत को सख्ती से यह हिदायत दी कि वह उसके अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप नहीं करे। रोहिंग्या और तीस्ता जल विवाद को लेकर बांग्लादेश भी भारत के प्रति बहुत आश्वान्वित नहीं है। यह हाल तब है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी पिछले चार वर्षों से ताबड़तोड़ विदेशी दौरे कर रहे हैं। एक अखबार को दिए इंटरव्यू में नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा था कि भारत के साथ हमारी बेहतरीन कनेक्टिविटी है, खुले बॉर्डर हैं। यह सब तो ठीक है, हम कनेक्टिविटी और बढ़ाएंगे भी लेकिन हम यह नहीं भूल सकते कि हमारे दो पड़ोसी हैं। हम किसी एक देश पर ही निर्भर नहीं रहना चाहते। केवल एक ऑप्शन पर नहीं। उनका यह कथन भारत पर नेपाल की निर्भरता और आंख मूंद का विश्वास कर लेने वाली स्थिति से अलग है। नेपाल को अभी भी मधेशी आंदोलन के समय नाकेबंदी की बात सालती है। नेपाली शासन इसके लिए भारत को जिम्मेदार मानता है। यही कारण है कि हाल के दिनों में उसका चीन और पाकिस्तान से राजनयिक दोस्ती काफी बढ़ी है। हालांकि अभी अपने तीन दिवसीय भारत दौरे के अंतिम में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में कहा, हम दोनों करीबी पड़ोसियों के बीच भरोसा आधारित संबंध की मजबूत इमारत खड़ी करना चाहते हैं। उनका ईशारा भारत से खराब हुए रिश्तो की तरफ स्पष्टï था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, आप मित्र बदल सकते हैं, पर पड़ोसी नहीं। यह बात मोदी जी को समझनी होगी और केवल नेपाल के साथ ही नहीं बल्कि सभी पड़ोसियों के साथ हमें भरोसे और और विश्वास की बुनियाद को मजबूत करना होगा। सामरिक दृष्टि से भी इन देशों को नजरंदाज करना बड़ी भूल होगी, खासकर नेपाल को। इसके लिए भारत द्वारा पूर्व में किये गये तमाम वादों को पूरा करने की भी जरूरत है, जो अभी तक शुरू भी नहीं हो पाये है। यह अच्छी बात है कि ओली के इस दौरे पर भारत ने दिल्ली से काठमाण्डू के बीच रेल लाइन बिछाने की घोषणा की है, अब जरूरत इस बात की है कि इसे जल्द ही धरातल पर लाने के लिए इमानदार प्रयास भी दिखने चाहिये।

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