Saturday, April 7, 2018

Opinion on Parliamentary session

भारतीय संसद का अवमूल्यन

 

  कल संसद का बजट सत्र समाप्त हुआ। इस सत्र के कुल २९ दिनों में मात्र ३४ घंटे ही कार्य हुआ (अर्थात प्रतिदिन केवल एक घंटे से कुछ ही मिनट अधिक चल पाया)और पूरा सत्र सत्ता पक्ष और विपक्ष के झगड़ों में कुर्बान हो गया। बजट सत्र के पहले भाग में सात बैठकें और दूसरे भाग में २२ बैठकें हुई, जैसा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा। परन्तु बजट पर जैसी बहस होनी चाहिये थी, वह नहीं हुई।
 सत्ता पक्ष का आरोप है कि विपक्ष ने संसद में कोई कामकाज न होने देने के लिए तय कर रखा था। राज्यसभा की कार्रवाई गत दिवस में ११ बार स्थगित करनी पड़ी। जिन मुद्दों को लेकर विपक्ष के लोग बराबर दोनों सदनों में स्थगन ला रहे थे, उन मुद्दों पर न तो सदन में और न बाहर ही कोई बात हो पायी। जिन लोगों का इन मुद्दों से गहरा संबंध था, वह ठगे से रह गये। यह पहली बार नहीं है कि संसद के कामकाज में गतिरोध आया है, परन्तु इस बार जिस तरह संसद का काम ठप हुआ है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। हालत यह है कि सांसद किसी मसले पर अपना विरोध जताने के लिए गले में तख्तियां लटकाकर पीठासीन अधिकारी के सामने हंगामा करते हैं। इस बार तो हद यह हो गई कि कुछ सांसदों ने संसद भवन की छत पर चढ़कर नये तरीके से अपना विरोध प्रदर्शित किया। अब आगे कौन से नये तरीके आविष्कार किये जाएंगे, कहना मुश्किल है।
  सत्ता पक्ष इसके लिए सीधे विपक्ष को जिम्मेदार बताता है, परन्तु सत्ता पक्ष ने भी अहम मुद्दों में बातचीत के लिए कोई तत्परता या उत्सुकता नही दिखायी। संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने विपक्ष को जिम्मेदार करार देते हुए अपना वेतन नहीं लेने की घोषणा की, परन्तु भाजपा के ही सुब्रमण्यम स्वामी जैसे कुछ सांसदों ने वेतन नहीं लेने की बात से इनकार किया। वेतन लेना और न लेना तो एक दिखावा हो सकता है, परन्तु अनंत कुमार ने कभी भी विपक्षी दलों को बुलाकर बात करने की आवश्यकता नहीं समझी। यह भी एक सच्चाई है कि जब से भाजपा को इतनी अधिक सीटें लोकसभा में मिल गयीं है तो उसे विपक्ष से संसद में बहस में दिलचस्पी कम हो गई है।
  सोनिया गांधी ने दो दिन पहले अनंत कुमार के बारे में कहा था कि वह झूठ बोल रहे हैं। सच्चाई जो भी हो यह स्पष्ट है कि संसदीय कार्यमंत्री ने अपना काम निपुणता से नहीं किया। उनका ही दायित्व था कि संसद में अहम मुद्दों पर चर्चा हो और इसके लिए उन्हें विपक्षी दलों से बातचीत करनी चाहिये थी। कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने दावा किया कि पीठासीन अधिकारी के सामने हंगामा करने वाले सांसदों के विरूद्घ कोई कार्रवाई नहीं की गयी, क्योंकि सरकार खुद नहीं चाहती थी कि सदन चले। सदन चलने पर बैंकिंग घोटाने सहित तमाम चीजें सामने आती। खडग़े ने आरोप लगाया कि सत्ता पक्ष ने ही छोटी-छोटी पार्टियों को सदन में व्यवधान उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित किया, जबकि कांग्रेस खुद सदन में किसानों, पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों, आंध्रप्रदेश की आर्थिक सहायता, राफेल विमानों का सौदा और एससी-एसटी बंद के दौरान हुई पुलिस की कार्रवाईयों पर बहस करना चाहते थी।
  भारत सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है और उसकी शान संसद है। संसद का इस तरह देश के शासन से अलग-थलग पड़ जाना शुभ संकेत नहीं है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों का कर्तव्य है कि संसद की प्रासंगिकता और देश के मामलों में उसकी सर्वोच्चता बनी रहे।

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