Monday, April 2, 2018

Opinion on RSS Chief's Comment

कांग्रेस मुक्त भारत के नारे पर संघ प्रमुख की टिप्पणी... 

 

थोड़े दिनों से चुनावी जुमलों की भरमार हो गई है। अमित शाह ने नागरिकों के बैंक एकाउण्ट में काला धन लाने के भाजपा के वादे को एक चुनावी जुमला कहा था। उसके बाद बहुत से वादे चुनावी जुमले में बदलते गये और आखिर में पढ़े-लिखे इंजीनियर और एमबीए नवयुवकों को पकौड़ा बेचने की सलाह दी गई, क्योंकि यह भी उनके लिए एक अच्छा व्यवसाय माना। ऐसे चुनावी जुमलों से भाजपा की किरकिरी हुई।
  इसी क्रम में भाजपा नेताओं  (जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शामिल है) ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया। यह बहुत अटपटी सी बात थी। कांग्रेस एक विचारधारा है, जो शायद भाजपा की विचारधारा से मेल नहीं खाता, परन्तु यह कहना कि कांगेस मुक्त भारत भाजपा का लक्ष्य होगा, कुछ बहुत दुरूस्त नहीं लगता। भाजपा का लक्ष्य बेरोजगारी मुक्त भारत, भ्रष्टïाचार मुक्त भारत, अन्याय मुक्त भारत, असमानता मुक्त भारत, छुआछूत मुक्त भारत तो हो सकता है, परन्तु कांग्रेस मुक्त भारत के राजनीतिक नारे के तौर पर भी सही नहीं है। इससे थोड़ा ही कम, मोदी मुक्त भारत का नारा भी था, जो कुछ कांग्रेसियों ने लगाया।
  आज मोहन भागवत ने कांग्रेस मुक्त भारत के नारे की निन्दा की और यह सही भी था। संघ एक मजबूत सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक  संस्था है, जिसका राजनीति से गहरा संबंध है। भाजपा संघ द्वारा स्थापित संस्थाओं में से एक है और भाजपा के सभी उच्च पदाधिकारी संघ से ही आते हैं। संघ के महत्व से किसी को इनकार नहीं है, क्योंकि करीब ५००० शिक्षित लोगों ने अपना जीवन संघ के लिए समर्पित कर रखा है और एक लाख से अधिक इसके कार्यकर्ता जमीनी सतह पर काम कर रहे हैं। संघ की विचारधारा में केवल कुछ टेढ़ापन धार्मिक अल्पसंख्यकों को दूसरे दर्जे का भारतीय मानना है, यद्यपि धार्मिक अल्पसंख्यक भी संघ के अंधविरोधी नहीं हैं। धार्मिक अल्पसंख्यक संघ को समझना चाहते है और संघ से अपना दुराव समाप्त करना चाहते हैं।
  भाजपा ने जो कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया, वह राजनीतिक बयानबाजी है, जबकि संघ प्रमुख ने जो कहा, वह जमीन हकीकत है। यह भी नहीं भूलना चाहिये कि संघ के बड़े-बड़े पदाधिकारी किसी न किसी समय कांग्रेस से संवद्घ रहे हैं। कोई राजनीतिक दल अछूत नहीं है और कोई दूध का धुला नहीं है। नागरिकों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सभी दलों से लडऩा पड़ता है और सभी दल अपने चुनावी अभियान की सफलता के लिए मत बटोरने के प्रयास में उल्टे-सीधे बयान देते रहते हैं। भाजपा की भी कोई अलग डगर नहीं है।

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