Monday, April 30, 2018

Opinion on unsafe Railway Crossing

रेलवे क्रासिंग पर हों सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध... 


    पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में ट्रेन की चपेट में आने से तेरह स्कूली बच्चों की मौत दहला देने वाली घटना हो गई।  यह हादसा इन बच्चों को ले जा रहा स्कूली वाहन मानव-रहित रेलवे फाटक पर सीवान से गोरखपुर जाने वाली पैसेंजर ट्रेन से टकराने से हुआ। वैसे तो यह महज एक दुर्घटना थी, लेकिन न जाने कितनों के घर चिराग इससे बुझ गये। न जाने कितने लोगों ने अपने इन चिरागों से क्या-क्या उम्मीदें पाल रखे थे, लेकिन अचानक इस दुर्घटना ने मासूमों के बोझ कंधों पर बहुत बढ़ा दिया था। उसके बाद जो हुआ, वह हमेशा से होता आ रहा है। रस्मी सी कार्रवाई हुई, सरकारी बयान आये, मुआवजे की घोषणा हुई और जांच बैठा दी गई।
  असलियत यह है कि पूरे देश में इस तरह की दुर्घटनाओं को दावत देता रेलवे विभाग कभी भी इस मामले में संजीदा नहीं हुआ। हर बजट में रेलवे संरक्षा की बात की जाती है। किराये में बढ़ोत्तरी की जाती है, लेकिन धरातल पर कुछ होता दिखता नहीं।  रेल पटरियों की हालत खस्ता है, जिससे आये दिन कोई न कोई बड़ी दुर्घटना सामने आती रहती है। इसके अलावा देश भर में मानव रहित रेलवे फाटक कुशीनगर जैसी दुर्घटनाओं को दावत देते रहते हैं। ऐसे फाटकों पर अब तक जो भयानक हादसे हुए हैं, उनसे हमने कोई सबक नहीं लिया और इसी का नतीजा हुआ कि एक बार फिर बड़ा हादसा हुआ और तेरह मासूमों को जान गंवानी पड़ी।
यह भयानक हादसा बताता है कि रेलवे प्रशासन और राज्य प्रशासन किस कदर अपनी जिम्मेदारियों से आंखें मूंदें बैठे हैं। जुलाई 2016 में भी वाराणसी-इलाहाबाद रेलखंड पर एक मानव-रहित रेलवे फाटक पर स्कूली बच्चों से भरी गाड़ी ट्रेन की चपेट में आ गई थी। इस हादसे में दस बच्चे मारे गए थे और कई घायल हो गए थे। तब भी सवाल उठा था कि इन मानव-रहित फाटकों पर कर्मचारी क्यों नहीं तैनात किए जा रहे? रेलमंत्री ने पिछले दिसंबर में राज्यसभा में बताया था कि अगले साल यानी 2018 में गणेश चतुर्थी तक सभी मानव-रहित फाटकों को खत्म कर दिया जाएगा, लेकिन मानव-रहित रेलवे फाटकों पर आए दिन जिस तरह हादसे हो रहे हैं, उससे रेलवे प्रशासन के दावे और वादे सवालों के घेरे में हैं।
  देश भर में दस हजार से ज्यादा ऐसे रेलवे फाटक हैं, जहां कोई कर्मचारी तैनात नहीं है। वर्ष 2012 में अनिल काकोदकर समिति ने भी पांच साल के भीतर सभी मानव-रहित फाटकों को हटाने को कहा था। ऐसे हादसों से निपटने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने उपग्रह आधारित चिप प्रणाली विकसित की है, जो मानव-रहित रेल फाटकों पर लोगों को आगाह करेगी। फाटक से करीब पांच सौ मीटर पहले हूटर बजने लगेगा और फाटक के नजदीक लोग सचेत हो जाएंगे। लेकिन रेलवे इसे कब से इस्तेमाल करेगा, कोई नहीं जानता। राज्य सरकार को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। ज्यादातर छोटे शहरों और कस्बों में जहां से रेलवे लाइनें गुजरती हैं, वहां सुरक्षा के लिहाज से कोई बंदोबस्त देखने में नहीं आते। ऐसे में क्या यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी नहीं है कि वह इन जगहों की पहचान करवा कर ऐसे फाटकों पर अपने स्तर पर सुरक्षाकर्मियों की तैनाती करे? रेलवे और राज्य सरकार, दोनों अपनी जवाबदेही से पल्ला नहीं झाड़ सकते।

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