अमेरिका द्वारा ईरान को 'लीबिया मॉडल' की धमकी...
राष्ट्रपति ट्रम्प इतिहास में सबसे अधिक धमकी देने वाले राष्ट्रपति माने जाएंगे और उनकी सबसे ताजा धमकी ईरान को दी गई है।
राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा है कि यदि ईरान ने उन की शर्तें नहीं माना तो उसके विरूद्घ अत्यंत सख्त पाबंदियां लगाई जाएंगी। 06 बड़े राष्ट्रों द्वारा किये गये परमाणु समझौते को रद किये जाने के बाद भी अमेरिका की धमकी समझ में नहीं आती। अमेरिका को दुख इस बात का है कि दुनिया के सभी अन्य शक्तिशाली राष्ट्रों ने ईरान के विरूद्घ पाबंदी लगाने से मना कर दिया है। जिन 06 राष्ट्रों ने मिलकर ईरान से परमाणु समझौता किया था, उनमें अमेरिका अकेला ही उस समझौते से निकला है।
जहां तक ईरान की बात है तो 1979 की क्रांति, जिसमें उसके पिट्ठू बादशाह को अपदस्थ किया गया था, ईरान पर पाबंदियां लगी हुई हैं और इस बीच ईरान विकास की नई ऊंचाईयों को भी छूता रहा है। ईरानी लोग अपनी राजनीतिक आजादी की रक्षा करना जानते हैं और उन पर अमेरिकी धमकियों का कोई असर नहीं है।
ईरान पर धमकियों के सिलसिले में राष्ट्रपति ट्रम्प और जॉन बोल्टन ने 'लीबिया मॉडल' की बात की है। उनका तात्पर्य यह है कि जिस तरह उन्होंने लीबिया के नेता मोअम्मर गद्दाफी को रास्ते से हटा दिया था, उसी तरह ईरान के नेताओं को भी हटा दिया जायेगा और ईरान में लीबिया की तरह गृहयुद्घ करा दिया जायेगा। मोअम्मर गद्दाफी का कसूर यह था कि वह पश्चिमी राष्ट्रों के दबाव में नहीं आते थे और उन्होंने लीबिया में एक ऐसी व्यवस्था बनायी थी, जिससे हर नागरिक को स्वास्थ्य और शिक्षा के मामले में असीमित सहायता राज्य द्वारा दी जाती थी। दूसरा कसूर यह था कि मोअम्मर गद्दाफी पहले अरब अफ्रीकी नेता थे, जो अफ्रीकन यूनियन के अध्यक्ष बने। पश्चिमी राष्ट्र सहारा के दक्षिणी हिस्से को ही अफ्रीका मानते थे और उत्तर के अरब राज्यों को अलग-थलग रखते थे। मोअम्मर गद्दाफी द्वारा पूरे अफ्रीका को एक करने की कोशिश से पश्चिमी राष्ट्रों
को बहुत खतरा लगा। सभी जानते हैं कि फ्रांस के पुराने उपनिवेश के देशों को नाममात्र की राजनीतिक स्वतंत्रता देने के बावजूद फ्रांस और पश्चिमी राष्ट्र बेशर्मी से इन देशों का शोषण करते रहे हैं और गद्दाफी का प्रयास इस शोषण को रोकने का था। अत: गद्दाफी के खिलाफ एक तूफान उठाया गया और उस पर हवाई हमले किये गये और उनकी हत्या एक फे्रंच एजेण्ट द्वारा की गई। लीबिया मॉडल की धमकी ईरान पर कारगर नहीं होगी।
दुनिया के सभ्य राष्ट्रों में पहली बार इस तरह की धमकियों का सिलसिला शुरू हुआ है। ऐसी ही धमकी राष्ट्र संघ में उत्तर कोरिया को भी दी गई थी और बाद में उत्तर कोरिया से सम्बन्ध सुधारने का प्रयास जारी है। ईरानी लोग भी समझते हैं कि इस तरह की धमकियां अमेरिकी विदेश नीति का हिस्सा हैं और इन्हें संजीदगी से नहीं लेना चाहिये।
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