कर्नाटक के संकेत...
कर्नाटक वह प्रान्त है जिसे भाजपा के लिए दक्षिण का द्वार कहा जाता है। वहां एचडी कुमारस्वामी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार का गठन किया और मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। यह शपथ ग्रहण इस मायने में खास था कि इससे न सिर्फ भाजपा का विजयरथ रूका, बल्कि २०१९ में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भी बड़ा संकेत दे गया। पहली बार देश के हर हिस्से लगभग पूरा विपक्ष एक साथ एक मंच पर मौजूद था। यहां नार्थ-साउथ और ईस्ट-वेस्ट की दूरियां सिमटती सी दिखी। सभी क्षेत्रों के प्रमुख विपक्षी नेता एक साथ आकर आने वाले समय में राजनीतिक बदलाव की कहानी बयां कर रहे थे।
समारोह में सोनिया गांधी के अलावा तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी, बसपा सुप्रीमों मायावती, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, राजद नेता तेजस्वी यादव, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, आप संंयोजक अरविन्द केजरीवाल, टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू, नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला, डीएमके नेता एमके स्टालिन, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी शामिल रहे। ये नेता ११ राज्यों में उन १३ पार्टियों से सम्बन्ध रखते हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में मजबूत सियासी दखल रखते हैं। आज की इस विपक्षी एकता को देखा जाये तो यह आने वाले समय में राष्टï्रीय स्तर पर महागठबंधन की नींव का पड़ाव प्रतीत होता हैै। एकजुट विपक्ष के आने से २०१९ में वापसी का सपना देख रही भाजपा के लिए मुश्किल पैदा हो सकती है। देश के कुल ३४९ लोकसभा सीटों पर उसे कड़ी टक्कर मिल सकती है।
यह भी सही है कि २०१४ के लोकसभा चुनाव में बिखरे विपक्ष का सर्वाधिक फायदा भाजपा को ही मिला था। कर्नाटक में एक साथ आकर विपक्ष ने अपने ईरादे जाहिर कर दिये हैं कि आने वाले समय में वे भाजपा को २०१४ की तरह खुली छूट नहीं देने वाले और चुनावी जंग में मजबूती के साथ दो-दो हाथ करने का ईरादा रखते हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश के महागठबंधन की सफलता को देखते हुए यह स्पष्टï कहा जा सकता है कि मोदी जी की २०१९ की राह कठिन है।
एकजुट विपक्ष के साथ भाजपा और मोदी सरकार के लिए एक और समस्या जरूर खड़ी होगी। दरअसल २०१४ के चुनावों में मोदी जी ने जनता से खूब लुभावने वादे किये थे। लोकपाल गठन, महंगाई पर लगाम, कालेधन की वापसी और लोगों को १५ लाख रूपये दिये जाने, युवाओं के लिए रोजगार के अवसर आदि की बातें हर मंच से कही थी। २६ मई को उनके कार्यकाल के चार साल पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन उनके द्वारा किया गया एक भी वादा आज तक पूरा नहीं हो सका है। महंगाई चरम पर है, बेरोजगारी बढ़ती जा रही है, सरकार ने रोजगार सृजन की जगह सृजित पदों में ही कटौती करनी शुरू कर दी है। न तो लोकपाल गठन हो पाया है और न ही कालेधन की वापसी। कुल मिलाजुला कर बीते चार वर्षों में भाजपा के हाथ खाली हैं।
अगर कुछ मिला है तो देश भर में बीफ के नाम पर भगवाधारियों का ताण्डव। इसमें गाजियाबाद के अखलाक, अलवर में पहलू खान जैसे लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी। धार्मिक स्वतंत्रता पर भी कुछ नेताओं द्वारा हमले किये गये। देश भर में अराजकता का माहौल इस सरकार की बड़ी पूंजी कही जा सकती है। ऐसे में एकजुट विपक्ष उसके लिए मुसीबत का सबब बन सकता है, जिसके संकेत कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में स्पष्टï देखने को मिला।
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