“खट पट”
यह उन दिनों की बात थी, जब हमारी नई नई शादी हुई थी. शादी के कुछ दिनों बाद, हम वाइफ को हनीमून मनाने वही ले गये. जहाँ हमारी दो टकिया की नौकरी थी. इसलिए नही की जेब में कडकी थी बल्कि इसलिए की कम्पनी ज्यादा लीव नही दे रही थी.
वाइफ रूम पर पहुची तो कबाड़ खाने को देखकर, “कबाड़ खाना”... हाँ यही शब्द बोला था उसने उस one BHK के फ़्लैट को देखकर जिसकी कीमत आज से पन्द्रह साल पहले भी पन्द्रह लाख थी. सारा सामान तितर बितर पड़ा था. बस एक अलमारी में कुछ खाली बोतले सजी थी.
“यह क्या है?” जिसे देखते ही उसने पूछा.
“दोस्तों की है” जबाब शायद उसके सवाल पूछने से पहले ही मेरी जुबान पर आ गया.
“दोस्तों की है, तो तुम्हारे रूम पर क्या कर रही है?”
“सारे दोस्त, शादी शुदा है, उनकी वाइफ उन्हें घर पर पीने नही देती तो बेचार यहाँ चले आते थे.
यह सुनकर वाइफ कुछ नही बोली. वो साफ़ सफाई में जुट गई. कुछ ही देर में फ्लेट ऐसे चमकने लगा जैसे ताजमहल. अगर यह साफ़ सफाई मेरी आँखों के सामने ना हुई होती तो मेरे लिए यकीन करना मुशिकल हो जाता कि यह मेरा ही फ्लेट है या गलती से में किसी दुसरे के फ़्लैट पर आ गया.
सफाई करते करते दोनों को भूख लग आई थी. हाँ भाई दोनों को, मै भी सफाई में बराबर की हेल्प कर रहा था.
मै बाथरूम में नहाने चला गया तो वाइफ किचन में रोटी बनाने लगी. नहाते नहाते ख्याल आया कि रोटी बनाने वाला चकला बिल्कुल भी आवाज नही कर रहा. मगर यह कैसे सम्भव था. मैंने जिस दिन से वो खरीदा, वो उसी दिन से अनबैलेस था. उसकी तीनो टाँगे कभी स्लेब पर टिकती ही नही थी. उसका अलाइनमेंट करने में मैंने अपनी सारी इन्जिनीरिंग लगा दी थी. लेकिन कभी एक टांग छोटी हो जाती तो कभी दूसरी. मै जब भी रोटी बनाने चलता, वो इतनी आवाज करता की पड़ोसी भी आकर पूछते “आज घर पर खाना बना रहे हो, होटल पर खा कर नही आये”
जैसे ही मै बाथरूम से निकला तो देखा, वाइफ आराम से रोटी बना रह थी और चकले की तीनो टांग अलग पड़ी थी. मैंने उससे पूछा “यह क्या किया तुमने?”
“कुछ नही यह ज्यादा खट पट कर रहा था तो मैंने in इसकी तीनो टांग तोड़ दी, मेरा यही स्टाइल है”
उसका यह स्टाइल देखकर फिर मेरी भी कभी खटपट करने की हिम्मत नही हुई.
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यह उन दिनों की बात थी, जब हमारी नई नई शादी हुई थी. शादी के कुछ दिनों बाद, हम वाइफ को हनीमून मनाने वही ले गये. जहाँ हमारी दो टकिया की नौकरी थी. इसलिए नही की जेब में कडकी थी बल्कि इसलिए की कम्पनी ज्यादा लीव नही दे रही थी.
वाइफ रूम पर पहुची तो कबाड़ खाने को देखकर, “कबाड़ खाना”... हाँ यही शब्द बोला था उसने उस one BHK के फ़्लैट को देखकर जिसकी कीमत आज से पन्द्रह साल पहले भी पन्द्रह लाख थी. सारा सामान तितर बितर पड़ा था. बस एक अलमारी में कुछ खाली बोतले सजी थी.
“यह क्या है?” जिसे देखते ही उसने पूछा.
“दोस्तों की है” जबाब शायद उसके सवाल पूछने से पहले ही मेरी जुबान पर आ गया.
“दोस्तों की है, तो तुम्हारे रूम पर क्या कर रही है?”
“सारे दोस्त, शादी शुदा है, उनकी वाइफ उन्हें घर पर पीने नही देती तो बेचार यहाँ चले आते थे.
यह सुनकर वाइफ कुछ नही बोली. वो साफ़ सफाई में जुट गई. कुछ ही देर में फ्लेट ऐसे चमकने लगा जैसे ताजमहल. अगर यह साफ़ सफाई मेरी आँखों के सामने ना हुई होती तो मेरे लिए यकीन करना मुशिकल हो जाता कि यह मेरा ही फ्लेट है या गलती से में किसी दुसरे के फ़्लैट पर आ गया.
सफाई करते करते दोनों को भूख लग आई थी. हाँ भाई दोनों को, मै भी सफाई में बराबर की हेल्प कर रहा था.
मै बाथरूम में नहाने चला गया तो वाइफ किचन में रोटी बनाने लगी. नहाते नहाते ख्याल आया कि रोटी बनाने वाला चकला बिल्कुल भी आवाज नही कर रहा. मगर यह कैसे सम्भव था. मैंने जिस दिन से वो खरीदा, वो उसी दिन से अनबैलेस था. उसकी तीनो टाँगे कभी स्लेब पर टिकती ही नही थी. उसका अलाइनमेंट करने में मैंने अपनी सारी इन्जिनीरिंग लगा दी थी. लेकिन कभी एक टांग छोटी हो जाती तो कभी दूसरी. मै जब भी रोटी बनाने चलता, वो इतनी आवाज करता की पड़ोसी भी आकर पूछते “आज घर पर खाना बना रहे हो, होटल पर खा कर नही आये”
जैसे ही मै बाथरूम से निकला तो देखा, वाइफ आराम से रोटी बना रह थी और चकले की तीनो टांग अलग पड़ी थी. मैंने उससे पूछा “यह क्या किया तुमने?”
“कुछ नही यह ज्यादा खट पट कर रहा था तो मैंने in इसकी तीनो टांग तोड़ दी, मेरा यही स्टाइल है”
उसका यह स्टाइल देखकर फिर मेरी भी कभी खटपट करने की हिम्मत नही हुई.
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