Saturday, May 5, 2018

Opinion on up politics

उत्तर प्रदेश में महागठबंधन की दस्तक?  


 उत्तर प्रदेश में राजनीति इस समय करवट ले रही है। यह भी सही है कि उत्तर प्रदेश की सियासत से दिल्ली की कुर्सी तय होती है। आजादी के बाद से एक-दो बार को छोड़ दिया जाये तो उत्तर प्रदेश ने ही जिसको चाहा, वही दिल्ली पर राज किया। वर्तमान की राजग सरकार की झोली में भी कुल ८० में से ७३ सीटें देकर दिल्ली की राह तैयार की थी, परन्तु अब गंगा और यमुना में काफी पानी बह चुका है। प्रदेश की सियासत २०१४ की तुलना में १८० डिग्री घूम चुकी है।
  ज्ञात हो कि २०१४ के चुनावी समर में सभी प्रमुख दलों की अपनी डफली अपना राग जैसा माहौल था। सभी दल चुनाव मैदान में जोर-आजमाइश कर रहे थे, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिला और उसे चुनावों में ऐतिहासिक सफलता हासिल हुई। यही हाल विधान सभा के चुनावों में भी रहा। यूं तो अंतिम समय में सपा और कांग्रेस एक मंच पर आ गये थे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। गठबंधन से पहले कांग्रेस ने '२७ साल यूपी बेहालÓ के नारे के साथ सहयोगी बनी सपा की मुखालफत कर चुकी थी।
  अब जब पुन: लोकसभा चुनाव दस्तक दे रहा है तो यहां की सियासी फिजा में बहुत बदलाव दिखने लगा है। अभी हाल ही हुए गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में यहां की राजनीतिक रंग २०१४ के बिल्कुल विपरीत दिखा। प्रदेश में सपा और बसपा की नयी-नयी दोस्ती को यहां की जनता ने हाथो-हाथ लिया और सपा की झोली में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की सीट को डालकर बदलाव के नये संकेत दे डाले। यही नहीं इसी माह कैराना और नूरपुर में होने वाले उपचुनाव में विपक्षी एकता जो दृश्य दिखाई पड़ रहा है, उससे अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में महागठबंधन की दस्तक भी सुनाई पडऩे लगी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मजबूत जनाधार रखने वाली राष्टï्रीय लोकदल का सपा के साथ गठबंधन हो गया है और दोनों पार्टियां दोनों सीटों एक-दूसरे को समर्थन करेंगी। कांग्रेस भी गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनावों से सबक लेते हुए इस बार तटस्थ की भूमिका में हैं तो बसपा भी चुनाव न लडऩे का फैसला किया है। अर्थात प्रदेश में चुनाव के लिए अब दो ही विकल्प होंगे, एक भाजपा और एक विपक्ष।
   प्रदेश की सियासत में यह बदलाव किसी करिश्में की तरह ही है। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि प्रदेश में सपा और बसपा कभी एक मंच साझा करेंगी, परंतु अखिलेश यादव और मायावती की सूझ बूझ ने पूरी सियासत का रंग ही बदल डाला। जहां बसपा ने सपा की लोकसभा उपचुनावों में मदद की तो वहीं सपा ने बसपा की राज्यसभा और विधान परिषद में मदद कर गठबंधन को मजबूती देने का कार्य किया। अब कैराना और नूरपुर ने महागठबंधन की राह आसान कर दी है।
  इसके अलावा भी देश की राजनीति में भी नये संकेत उत्तर प्रदेश से ही नजर आ रहे हैं। अभी हाल ही में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव से मुलाकात की। इसके अलावा वह तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी से भी मिल चुके हैं। एनसीपी नेता शरद पवार व प्रफुल्ल पटेल के साथ मुलाकात के साथ मजबूत समाजवादी नेता शरद यादव को भी अपने पाले में कर लिया है। बसपा अध्यक्ष मायावती भी सियासत में बहुत सधी चाल चल रही है और उन्होंने कर्नाटक में जेडीएस और हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल से गठबंधन कर लिया है।
कुल मिलाकर दोनों नेताओं की जुगलबंदी देखी जाये तो आने वाले समय में देश की राजनीति में एक नये गठबंधन का उदय होना प्रतीत होता है।
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