Monday, July 30, 2018

लिखी जा रही है मानवीय त्रासदी की इबारत

चालीस लाख भारतीयों के सामने पहचान का संकट 

 देश में इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी कि यहां रहने वाले ४० लाख लोगों के सामने एकाएक पहचान का संकट खड़ा हो गया है। कल तक अपने घरों में बच्चों की शिक्षा और रोजी रोजगार की बात सोचने वाले देश के ४० लाख लोगों की आंखों से नींद गायब है। उनका कल क्या होगा, वे कहां जाएंगे, अपने घर से बेघर होने के बाद की जिन्दगी सोचकर वे सहम जा रहे हैं। त्रासदी यह है कि कई-कई परिवार में कुछ को देश में रहने की इजाजत दी जा रही है तो कुछ को देश निकाला का फरमान सुना दिया गया है।
   यह स्थिति असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) का ड्राफ्ट जारी होने के बाद उत्पन्न हो गई है। ड्राफ्ट में 40 लाख लाख लोगों को भारतीय नागरिक नहीं माना गया है।  एनआरसी के मुताबिक कुल 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 668 लोग भारत के नागरिक हैं, असम की कुल जनसंख्या 3 करोड़ 29 लाख है। आजादी के बाद असम भारत का पहला राज्य है जहां एनआरसी फिर से अपडेट किया जा रहा है।
 गौरतलब है कि असम और बंगाल देश में चाय के बागानों के लिए जाने जाते हैं। आजादी के पूर्व जब भारत और बांग्लादेश का एक था, उस समय बंगाल के बागान मालिकों के बहुत से बागान असम में होते थे और कुछ बागान मालिक अपने व्यवसाय के सिलसिले में असम में ही बसेरा बना लिया। बागान मालिकों के साथ बागान में काम करने वाले श्रमिक वर्ग भी बड़ी संख्या में असम में काम करने गये और वहीं के होके रह गये। रोजगार की तलाश में बिहार समेंत कई अन्य भारतीय राज्यों के लोगों ने भी यहां आये और यहीं के होकर रह गये। समस्या तब उत्पन्न हो गई जब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ तो भारत और पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश की सीमाओं में विवाद के कारण बाद में कुछ बांग्लादेशी गांव भारतीय हिस्सों में आ गये और कुछ भारतीय गांव बांग्लादेशी हिस्से में आ गये। इस विवाद के चलते सीमा पर रहने वाले भारतीयों और बांग्लादेशियों के लिए पहचान का संकट खड़ा हो गया। इसी विवाद से निपटने के लिए उच्चतम न्यायालय ने एनआरसी को पुन: अपडेट किये जाने के निर्देश दिये।
  इस बात में किसी को कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन सरकार द्वारा पेश किये दस्तावेजों से सवाल उठ खड़े हुए हैं। दरअसल इस दस्तावेजों को तैयार करने के लिए पासपोर्ट, आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड धारकों को भी भारतीय नागरिक नहीं माना गया है। आरोप तो यहां तक है कि एक ही परिवार के पिता को भारतीय नागरिक माना गया है और पुत्री को इस रजिस्टर से बाहर कर दिया गया है। इसमें सबसे ज्यादी बंगाली समुदाय को मुश्किलें आ रही है। इसकी मुखालफत पश्चिम बंगाल की मुख्यमंंंंंंंंंंंंत्री ममता बनर्जी ने भी की है। उन्होंने इस दस्तावेज को पक्षपाती बताते हुए कहा कि यह अपने ही देश में ४० लाख लोगों को शरणार्थी बनाने की साजिश है। उन्होंने यहां तक कहाकि ऐसे लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उनके घर मौजूद है और उन्हें बसाने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार पूरा प्रयत्न करेगी, फिर भी उनका यह सवाल वाजिब है कि उन्हें देश से निकाला ही क्यों जाये? 
 सरकार द्वारा एनआरसी के इस दस्तावेज का विरोध तृणमूल कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल कर रहे हैं। इसी कारण आज संसद नहीं चल पायी। सरकार ने ४० लाख लोगों को बाहरी तो बता दिया, लेकिन वे कहां जाएंगे, इस बारे में अभी कोई नीति नहीं बनाई है। आखिर भारत में रह रहे ये नागरिक कहां के हैं और अब उनका क्या ठिकाना होगा? देश एक बड़ी मानवीय त्रासदी की ओर बढ़ रहा है। अभी तक केवल रोहिंग्या शरणार्थी त्रासदियों के बारे में पढ़ते-सुनते आये हैं, अब उस कड़ी में असम के ४० लाख लोगों के नाम जुडऩे जा रहा है। सरकार को इस मामले में मानवीयता को ध्यान रखकर की किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिये। 
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