आयात-निर्यात असंतुलन से मुद्रा संकट के आसार...
देश की अर्थव्यवस्था की उजली तस्वीर पेश करने वाली मोदी सरकार का यह नारा 'साफ नीयत, सही विकासÓ का नारा केवल विज्ञापनों में ही अच्छा लगता है। आंकड़ बताते है कि मोदी सरकार के आने के बाद देश में उत्पादन दर घटी है। पिछले चार सालों में देश का निर्यात दर में काफी गिरावट आयी है, जबकि आयात दर में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। स्पष्टï है कि आयात-निर्यात में यह असंतुलन देश की अर्थव्यवस्था को गहरी खाई में ले जा रही है।
विभिन्न विशेषज्ञों ने भारतीय निर्यात में गिरावट के लिए घरेलू कारकों, जैसे नोटबंदी, जीएसटी और दिवालियापन को जिम्मेदार ठहराया है। वर्ष 2014 और 2018 के बीच चीन को व्यापार निर्यात बढ़ा है, लेकिन 1 फीसदी से भी कम, वहीं आयात में 11 फीसदी की वृद्धि हुई है। वर्ष 2014 और 2018 के बीच अफ्रीका को भारत से निर्यात में 4.22 फीसदी की गिरावट आई है और आयात में 1 फीसदी की वृद्धि हुई है। इस अवधि में कुल मिलाकर भारतीय आयात 1.6 फीसदी बढ़कर 465 अरब डॉलर का हुआ ।
आईएमएफ की रिपोर्ट 2018 के अनुसार 2017 में भारत का निर्यात और सकल घरेलू उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद) के अनुपात 11.44 फीसदी था, जो 2005 के बाद से सबसे कम था। कम निर्यात और आयात में वृद्धि ने 2014-15 में व्यापार घाटे को 137 बिलियन डॉलर से 2017-18 में 162 बिलियन डॉलर कर दिया है, जो 2012-13 के बाद से सबसे ज्यादा है।
वजह चाहे जो हो, लेकिन परिणाम निराश करते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक इसके पीछे नोटबंदी और जीएसटी जैसे कारक प्रमुख रूप से है, जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सुधार के दावे के साथ लागू किये थे। परन्तु
यह दोनों कारक भारत की अर्थव्यवस्था का पलीता लगाने का कार्य किये हैं। पहले नोटबंदी लागू की गई, जिससे देश की ८० प्रतिशत धनराशि अचानक कागज के टुकड़ों में तब्दील हो गये। इससे कई महीनों तक देश का पूरा व्यासायिक जगत बेपटरी हो गया था। यह दौर करीब डेढ़ साल से अधिक तक चला। उसके बाद जब उसमें कुछ सुधार हुआ तो जीएसटी लागू हो गया। जीएसटी ने व्यापारियों को व्यावसायिक गतिविधियों से हटाकर लिपिकीय गतिविधियों में उलझा कर रख दिया है। इन नीतियों ने निर्यातकों समेत स्थानीय व्यवसायों को बाधित कर दिया। इस कारण उपभोक्ता मांग को पूरा करने, व्यापार घाटे को बढ़ाने और सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में कटौती के लिए आयात तेजी से चढ़ा है।
स्पष्टï है कि निर्यात कम होने से विदेशी मुद्रा का भारत में आगमन अवरूद्घ हुआ है, जबकि आयात बढऩे से भारतीय मुद्रा का विदेशों में जाना बढ़ गया है। ऐसे में आने वाले समय में मुद्रा संकट आ सकता है, जिसपर सरकार को गंभीरता से सोचना होगा।
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