Tuesday, September 25, 2018

मालद्वीव का संदेश

   हिन्द महासागर की गोद में फैले विभिन्न द्वीपों से मिलकर बने एशिया के सबसे छोटे देश की जनता ने पूरी दुनिया के लोकतांत्रिक देशों के लिए नजीर पेश की है। वहां निवर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की तमाम कोशिशों के बावजूद जनता जनार्दन ने अपना फैसला सुना दिया और आम चुनावों में राष्टï्रपति को भारी हार का सामना करना पड़ा। मालद्वीव के नतीजे बताते हैं कि लोकतंत्र में जनता से बढ़कर कोई नहीं होता। देश में आपातकाल भी रहा और विपक्षी दलों के सभी प्रमुख नेताओं को जेल में डाले जाने के बाद भी विपक्षी उम्मीदवार इब्राहिम मोहम्मद सालेह का राष्टï्रपति का चुना जाना इसी का परिणाम है।
  दुनिया के सबसे निचले भूभाग में रहने वाले इस देश के बारे में सबसे पहले समुद्र में डूब जाने की भविष्यवाणी की गई है, लेकिन वहां का राजनीतिक अक्सर गर्म ही रहा। मालद्वीव १९६५ में ब्रिटिश दासता से मुक्ति के बाद से ही भारत का मित्र राष्ट्र रहा है। अपने खूबसूरत समुद्री तटों के लिए मशहूर मालद्वीव विभिन्न अन्तर्राष्टï्रीय मंचों पर हमेशा से भारत का समर्थन करता रहा है। करीब १० वर्ष पूर्व राष्टï्रपति यामीन के आने के बाद वहां की सियासी गतिविधियां बदल गई थी। मालद्वीव में में चीनी दखलंदाजी काफी बढ़ गई थी तथा वहां चीन के सहयोग तमाम परियोजनाएं भी चलनी शुरू हो गई थी। भारतीय सीमा से सटे इस देश में चीन की मजबूत होती पकड़ भारत के लिए खतरे की घंटी थी। उस पर राष्टï्रपति यामीन का भारत विरोधी निर्णय भी अच्छे संकेत नहीं थे। मालद्वीव के भारत से सैन्य हेलीकाप्टरों को हिन्द महासागर से वापस बुलाने तथा संयुक्त सैन्य अभ्यास के निमंत्रण ठुकराने जैसे निर्णय भी बेचैनी वाले थे।
इसके अलावा यामीन का अपने देश में लोकतंत्र का गला घोटकर आपातकाल लगाना और विपक्षी नेताओं को जेल में भेजना भी वहां की जनता को रास नहीं आया। गौरतलब है कि मालद्वीव में ज्यादातर जनता भारतीय मूल की है और वहां भारत विरोधी गतिविधियों तथा लोकतांत्रिक परंपराओं का गला घोटने जैसी बातों का वहां के लोगों ने अपने मताधिकार से अच्छा जवाब दिया।
ताजा चुनाव के बाद चुने गये इब्राहिम मोहम्मद सालेह भारत समर्थक माने जाते हैं। वैसे आगे भारत के साथ कैसे रिश्ते रहेंगे, यह तो आने वाला भविष्य ही बतायेगा, लेकिन सालेह की जीत से लोकतंत्र की जीत जरूर हुई है। उम्मीद की जानी चाहिये कि सालेह वहां के लोगों की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे और लोकतांत्रिक परंपराओं के साथ देश को विकास की राह पर ले जाने का कार्य करेंगे।
 मालद्वीव के संबंध में भारत का फैसला कूटनीतिक और सही था। दरअसल यामीन से पहले राष्टï्रपति रहे मोहम्मद नशीद ने भारत से सैन्य हस्तक्षेप की मांग की थी और वहां के बेकाबू होते हालातों का हवाला देते हुए चुनाव में धांधली की आशंका जताई थी। भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने तो मालद्वीव पर हमला कर देने तक की जरूरत बतायी थी, जिससे स्थिति बिगड़ती ही, परन्तु भारत सरकार ने चुनावों को मालद्वीव का आंतरिक मामला बताते हुए किसी हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था। यह भारत का फायदे वाला निर्णय साबित हुआ, क्योंकि  प्राय: सभी देशों में विपक्षी पार्टियों द्वारा चुनाव की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह खड़े किये जाते रहे। ऐसे में हमला जैसा निर्णय उचित नहीं होता। मालद्वीव की जनता ने स्वामी जैसे नेताओं को भी आइना दिखाने का कार्य किया है। स्पष्टï है कि इस चुनाव में चाहे कोई जीता हो या कोई हारा हो, लेकिन मालद्वीव की जनता और लोकतंत्र जरूर जीता है। इसके लिए मालद्वीव की जनता बधाई की पात्र है।

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