भारत की राजनीति एक नये मोड़ पर जा रही है। यहां भाषायी सीमाओं का उल्लंघन पहले भी होता रहा है, लेकिन अब यह राजनयिक परंपराओं को भी तोड़ते हुए आगे जा रहा है। राजनेताओं बयान से संविधान की वर्जनाओं की खूब अनदेखी की जा रही है और इसमें सत्ताधारी दल भाजपा किसी से पीछे नहीं है।
इस समय भारतीय राजनीति में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच राफेल रक्षा सौदे को लेकर घमासान मचा हुआ है। विपक्षी कांग्रेस नेतृत्व के नेता इसे मौजूदा भाजपानीत सरकार का सबसे बड़ा घोटाला करार दे रहे हैं। दरअसल यह सौदा पूर्ववर्ती कांग्रेस की सरकार के समय में शुरू हुआ था, तब राफेल युद्घक विमान की कीमत ५९० करोड़ रूपये थी, जो मोदी सरकार के समय बढ़कर १६९० करोड़ रूपये हो गई। कांग्रेस इसी बढ़े हुए पैसे का मोदी सरकार से जवाब मांग रही है और इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच फ्रांस के पूर्व राष्टï्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान एक ट्वीट ने आग में घी डालने का कार्य किया है। भाजपा ने पहले कहा था कि अनिल अम्बानी का नाम फ्रांस की कम्पनी ने रखा था। ओलांद ने बताया कि राफेल डील के लिए अनिल अंबानी की कम्पनी का नाम भारत सरकार की तरफ से सुझाया गया था। कांग्रेस का आरोप भी यह है कि मोदी सरकार अनिल अंबानी की कम्पनी को फायदा पहुंचाने के लिए राफेल की महंगी डील की है।
इस समय मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्यों में चुनाव होने वाले हैं और कांग्रेस राफेल मुद्दे को इसमें भुनाना चाहती है। जुबानी जंग में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर तंज कसते हुए उन्हें देश के चौकीदार नहीं, चोर की संज्ञा दी। जवाब में भाजपा प्रवक्ता ने कांग्रेस पर पाकिस्तान से गठबंधन कर पीएम मोदी को हटाने की साजिश रचने जैसा सनसनीखेज आरोप लगा दिया। उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व रक्षामंत्री रहमान मलिक के ट्वीट का हवाला देते हुए कांग्रेस को पाकिस्तान से जोड़ डाला। जबकि सच्चाई यह है कि रहमान मलिक पूर्ववर्ती सरकार के नेता है और उनका वर्तमान पाकिस्तान सरकार में कोई वजूद नहीं है। ऐसे में संबित पात्रा का कांग्रेस के साथ पाकिस्तान को जोडऩा राजनयिक परंपराओं का उल्लंघन है। इससे दोनों देशों के रिश्ते जो पहले से ही तल्ख हैं और भी बिगड़ेंगे। वैसे भाजपा का पाकिस्तान को लेकर यह पहला बयान नहीं है। इससे पहले भी भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान जाने तथा मोदी की हार पर पाकिस्तान में पटाखे फोड़े जाने जैसे बयान दिये जाते रहे हैं। भाजपा को यह सोचना होगा कि अब वह विपक्ष में नहीं है और देश में उसकी सरकार है। ऐसे में उसका बयान अन्तर्राष्टï्रीय स्तर पर काफी मायने रखता है। लोकतंत्र की खूबी यह है कि विपक्ष सरकार की आलोचना के साथ सवाल पूछने का कार्य करता है। इन सवालों से बचने या ऊल-जलूल बयान दिये जाने के बजाये विपक्ष के साथ पूरा देश सरकार का जवाब चाहता है।
वैसे सरकार राफेल पर अपना बचाव कर सकती है। दरअसल सरकार में आने के बाद रक्षा क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर को लाने का नीतिगत फैसला सरकार द्वारा पहले ही लिया जा चुका है। ऐसे में अनिल अंबानी की कम्पनी का सौदे में शामिल किया जाना नीतिगत तौर पर कहीं से भी गड़बड़ नहीं है। अन्य मामलों पर भी वह अपना पक्ष रख सकती है। राफेल विमान की कीमत पर अवश्य सवाल उठाये जाएंगे। कमोवेश सरकार की तरफ से ऐसा नहीं किया जा रहा है। सरकार और भाजपा की तरफ से इस मामले में वोट बैंक की राजनीति को ज्यादा तवज्जो दी जा रही है। यही कारण है कि उसकी तरफ से सफाई आने के बजाये पाकिस्तान और मुसलमान निशाने पर लिये जा रहे है, जो निहायत ही गलत है।
संसार में कहीं भी और कभी भी राजनीति को स्थायी रूप से विनम्रता और शालीनता से जोड़कर नहीं देखा गया। सत्तापक्ष में और विपक्ष में भी यह गुण कभी-कभी किसी मकसद से देखा जाता है, फिर वह ऐसे विलुप्त हो जाता है, जैसे सूरज उग जाने के बाद तारे, लेकिन राजनीति के इस व्यावहारिक पक्ष से अच्छी तरह परिचित लोग भी ऐसा मानते हैं कि भारतीय राजनीति में आज कटुता का स्तर पिछले पचास-साठ वर्षों में बने इसके सामान्य मानकों से कहीं ज्यादा है। दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं और कोई भी अपने को असभ्य, कुतर्की या अशालीन मानने को हरगिज तैयार नहीं होगा। स्पष्ट है कि इन राजनेताओं को अपना लहजा बदलने के लिए कोई समझा भी नहीं सकता।
इस समय भारतीय राजनीति में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच राफेल रक्षा सौदे को लेकर घमासान मचा हुआ है। विपक्षी कांग्रेस नेतृत्व के नेता इसे मौजूदा भाजपानीत सरकार का सबसे बड़ा घोटाला करार दे रहे हैं। दरअसल यह सौदा पूर्ववर्ती कांग्रेस की सरकार के समय में शुरू हुआ था, तब राफेल युद्घक विमान की कीमत ५९० करोड़ रूपये थी, जो मोदी सरकार के समय बढ़कर १६९० करोड़ रूपये हो गई। कांग्रेस इसी बढ़े हुए पैसे का मोदी सरकार से जवाब मांग रही है और इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच फ्रांस के पूर्व राष्टï्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान एक ट्वीट ने आग में घी डालने का कार्य किया है। भाजपा ने पहले कहा था कि अनिल अम्बानी का नाम फ्रांस की कम्पनी ने रखा था। ओलांद ने बताया कि राफेल डील के लिए अनिल अंबानी की कम्पनी का नाम भारत सरकार की तरफ से सुझाया गया था। कांग्रेस का आरोप भी यह है कि मोदी सरकार अनिल अंबानी की कम्पनी को फायदा पहुंचाने के लिए राफेल की महंगी डील की है।
इस समय मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्यों में चुनाव होने वाले हैं और कांग्रेस राफेल मुद्दे को इसमें भुनाना चाहती है। जुबानी जंग में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर तंज कसते हुए उन्हें देश के चौकीदार नहीं, चोर की संज्ञा दी। जवाब में भाजपा प्रवक्ता ने कांग्रेस पर पाकिस्तान से गठबंधन कर पीएम मोदी को हटाने की साजिश रचने जैसा सनसनीखेज आरोप लगा दिया। उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व रक्षामंत्री रहमान मलिक के ट्वीट का हवाला देते हुए कांग्रेस को पाकिस्तान से जोड़ डाला। जबकि सच्चाई यह है कि रहमान मलिक पूर्ववर्ती सरकार के नेता है और उनका वर्तमान पाकिस्तान सरकार में कोई वजूद नहीं है। ऐसे में संबित पात्रा का कांग्रेस के साथ पाकिस्तान को जोडऩा राजनयिक परंपराओं का उल्लंघन है। इससे दोनों देशों के रिश्ते जो पहले से ही तल्ख हैं और भी बिगड़ेंगे। वैसे भाजपा का पाकिस्तान को लेकर यह पहला बयान नहीं है। इससे पहले भी भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान जाने तथा मोदी की हार पर पाकिस्तान में पटाखे फोड़े जाने जैसे बयान दिये जाते रहे हैं। भाजपा को यह सोचना होगा कि अब वह विपक्ष में नहीं है और देश में उसकी सरकार है। ऐसे में उसका बयान अन्तर्राष्टï्रीय स्तर पर काफी मायने रखता है। लोकतंत्र की खूबी यह है कि विपक्ष सरकार की आलोचना के साथ सवाल पूछने का कार्य करता है। इन सवालों से बचने या ऊल-जलूल बयान दिये जाने के बजाये विपक्ष के साथ पूरा देश सरकार का जवाब चाहता है।
वैसे सरकार राफेल पर अपना बचाव कर सकती है। दरअसल सरकार में आने के बाद रक्षा क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर को लाने का नीतिगत फैसला सरकार द्वारा पहले ही लिया जा चुका है। ऐसे में अनिल अंबानी की कम्पनी का सौदे में शामिल किया जाना नीतिगत तौर पर कहीं से भी गड़बड़ नहीं है। अन्य मामलों पर भी वह अपना पक्ष रख सकती है। राफेल विमान की कीमत पर अवश्य सवाल उठाये जाएंगे। कमोवेश सरकार की तरफ से ऐसा नहीं किया जा रहा है। सरकार और भाजपा की तरफ से इस मामले में वोट बैंक की राजनीति को ज्यादा तवज्जो दी जा रही है। यही कारण है कि उसकी तरफ से सफाई आने के बजाये पाकिस्तान और मुसलमान निशाने पर लिये जा रहे है, जो निहायत ही गलत है।
संसार में कहीं भी और कभी भी राजनीति को स्थायी रूप से विनम्रता और शालीनता से जोड़कर नहीं देखा गया। सत्तापक्ष में और विपक्ष में भी यह गुण कभी-कभी किसी मकसद से देखा जाता है, फिर वह ऐसे विलुप्त हो जाता है, जैसे सूरज उग जाने के बाद तारे, लेकिन राजनीति के इस व्यावहारिक पक्ष से अच्छी तरह परिचित लोग भी ऐसा मानते हैं कि भारतीय राजनीति में आज कटुता का स्तर पिछले पचास-साठ वर्षों में बने इसके सामान्य मानकों से कहीं ज्यादा है। दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं और कोई भी अपने को असभ्य, कुतर्की या अशालीन मानने को हरगिज तैयार नहीं होगा। स्पष्ट है कि इन राजनेताओं को अपना लहजा बदलने के लिए कोई समझा भी नहीं सकता।
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