आज डालर की कीमत 72.11 रूपया पहुंच गई। 2014 के चुनाव से पहले भाजपा के नेता कांग्रेस को रूपये को डालर के मुकाबले गिरने का ताना दिया करते थे। एक बाबा जी का कहना था कि एक डालर 35 रूपये का मिलेगा और उनका यह भी कहना था कि पेट्रोल की कीमत 35 रूपये लीटर के भाव से मिलेगा। अब उनका कहीं कोई भाषण नहीं सुनाई देता।
रूपये की कीमत मेें गिरावट देशवासियों के लिए चिंता का विषय है। मीडिया के कुछ लोग इसमें अ'छा पहलू भी ढूंढने का प्रयास कर रहे हैं, जो केवल 'खिसयानी बिल्ली खम्भा नोचे' वाली बात है। सच यह है कि रूपये के इस अवमूल्यन में हमारे मित्र अमेरिका का बड़ा हाथ है।
रूपये की कीमत में गिरावट बुनियादी तौर पर हमारे क'चे तेल के बिल बढऩे के कारण हो रहा है। क'चे तेल की कीमतें बढ़ गई हैं और इसके पीछे अमेरिकी नेतृत्व की गलत नीतियां हैं। ईरान हमें सस्ता तेल दे रहा था, परन्तु अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण हम उससे तेल नहीं खरीद पाते। ईरान से आने वाली गैस पाइपलाइन भी अमेरिकी विरोध के कारण ही नहीं लग पायी। हम लोगों ने कई बार प्रयास किया कि अमेरिका ईरान से तेल खरीदने के मामले में हमें इन प्रतिबंधों से आजाद रखे, परन्तु इसमें कोई कामयाबी नहीं हुई। हमें सऊदी अरब और अमीरात से तेल खरीदने को मजबूर किया जा रहा है, जो महंगा है। हमारी मीडिया ने अपने तौर पर यह भ्रम फैलाना शुरू कर दिया था कि हमें इस मामले में छूट मिल रही है, परन्तु अमेरिकी अधिकारियों ने तुरन्त इससे इनकार किया। यदि छूट मिलती तो भी केवल 6 महीने के लिए वह भी राष्टपति के सर्टिफिकेट के बाद ही। हमारा चाहबहार बन्दरगाह प्रोजेक्ट भी इसकी जद में आ गया है। अमेरिकी प्रतिबन्धों से ईरान से अधिक हमें नुकसान हो रहा है।
बुनियादी तौर पर रूपये गिरने का कारण क'चे तेल के आयात में डालर की देने की बात है। जो ब'चे बाहर पढ़ रहे हैं, उनका खर्च अब बढ़ जायेगा और विदेश जाने वालों को भी अधिक खर्च करना पड़ेगा। हमारे उत्पादों में कुछ हिस्सा आयातित वस्तुओं का होता है। चूंकि उनकी कीमत अधिक देनी पड़ेगी, अत: उसका असर निर्यात होने वाली वस्तुओं की कीमत पर पड़ेगा। इसके साथ ही अमेरिका द्वारा हमारे निर्यात पर सीमा शुल्क बढ़ाने से हमारे उत्पादों की कीमत अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में ज्यादा हो जायेगी, जिससे हमारे निर्यात पर बुरा असर पड़ेगा। यहां भी हमें कोई छूट नहीं मिल रही है।
आज दिल्ली में 2+2 की पहली बैठक हुई। अब तक अमेरिका केवल जुबानी मदद करने की बात करता रहा है। जब तक हमें ईरान और रूस से खरीदारी करने के लिए इन प्रतिबंधों से छूट नहीं मिलती, तब तक रूपया डालर के मुकाबले में कमजोर होता जायेगा और हमारी सुरक्षा भी सवालों के घेरे में रहेगी। एक जमाने में अमेरिकी मुद्रा विशेषज्ञ जार्ज सॉरोस ने हाथ की सफाई से कई देशों की मुद्राओं को संकट में डाल दिया था। अब दुनिया भर के लोग इस तरह के हथकंडों से वाकिफ हो गये हैं, परन्तु सुपर पॉवर अमेरिका के प्रतिबंधों की कोई काट हमारे पास नहीं है। अमेरिकी कार्रवाई से ही भारतीय रूपया, कतर व ईरानी रियाल और रूसी रुबल संकट में हैं।
अगर कल की बैठक में अमेरिका हमें इन प्रतिबंधों से आजाद करना मान जाता है और हमारे लिये सीमा शुल्क की दर पहले की तरह कर देता है तो हमारे रूपये की गिरावट तुरन्त रूक जायेगी और उसकी वैल्यू बढऩे लगेगी।
रूपये की कीमत मेें गिरावट देशवासियों के लिए चिंता का विषय है। मीडिया के कुछ लोग इसमें अ'छा पहलू भी ढूंढने का प्रयास कर रहे हैं, जो केवल 'खिसयानी बिल्ली खम्भा नोचे' वाली बात है। सच यह है कि रूपये के इस अवमूल्यन में हमारे मित्र अमेरिका का बड़ा हाथ है।
रूपये की कीमत में गिरावट बुनियादी तौर पर हमारे क'चे तेल के बिल बढऩे के कारण हो रहा है। क'चे तेल की कीमतें बढ़ गई हैं और इसके पीछे अमेरिकी नेतृत्व की गलत नीतियां हैं। ईरान हमें सस्ता तेल दे रहा था, परन्तु अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण हम उससे तेल नहीं खरीद पाते। ईरान से आने वाली गैस पाइपलाइन भी अमेरिकी विरोध के कारण ही नहीं लग पायी। हम लोगों ने कई बार प्रयास किया कि अमेरिका ईरान से तेल खरीदने के मामले में हमें इन प्रतिबंधों से आजाद रखे, परन्तु इसमें कोई कामयाबी नहीं हुई। हमें सऊदी अरब और अमीरात से तेल खरीदने को मजबूर किया जा रहा है, जो महंगा है। हमारी मीडिया ने अपने तौर पर यह भ्रम फैलाना शुरू कर दिया था कि हमें इस मामले में छूट मिल रही है, परन्तु अमेरिकी अधिकारियों ने तुरन्त इससे इनकार किया। यदि छूट मिलती तो भी केवल 6 महीने के लिए वह भी राष्टपति के सर्टिफिकेट के बाद ही। हमारा चाहबहार बन्दरगाह प्रोजेक्ट भी इसकी जद में आ गया है। अमेरिकी प्रतिबन्धों से ईरान से अधिक हमें नुकसान हो रहा है।
आज दिल्ली में 2+2 की पहली बैठक हुई। अब तक अमेरिका केवल जुबानी मदद करने की बात करता रहा है। जब तक हमें ईरान और रूस से खरीदारी करने के लिए इन प्रतिबंधों से छूट नहीं मिलती, तब तक रूपया डालर के मुकाबले में कमजोर होता जायेगा और हमारी सुरक्षा भी सवालों के घेरे में रहेगी। एक जमाने में अमेरिकी मुद्रा विशेषज्ञ जार्ज सॉरोस ने हाथ की सफाई से कई देशों की मुद्राओं को संकट में डाल दिया था। अब दुनिया भर के लोग इस तरह के हथकंडों से वाकिफ हो गये हैं, परन्तु सुपर पॉवर अमेरिका के प्रतिबंधों की कोई काट हमारे पास नहीं है। अमेरिकी कार्रवाई से ही भारतीय रूपया, कतर व ईरानी रियाल और रूसी रुबल संकट में हैं।
अगर कल की बैठक में अमेरिका हमें इन प्रतिबंधों से आजाद करना मान जाता है और हमारे लिये सीमा शुल्क की दर पहले की तरह कर देता है तो हमारे रूपये की गिरावट तुरन्त रूक जायेगी और उसकी वैल्यू बढऩे लगेगी।
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