Sunday, October 7, 2018

व्यथा

व्यथा है जो ह्रदय की आंसुओ से भी न बह सकी।
प्रीत है जो ह्रदय कि अग्नि में भी न जल सकी।
बस रीति है ये जगत की जो  गंगा में बह गयी।
बस ये खीज ही बची है जो ह्रदय से न निकल सकेगी।
जानें के जो दीये है जख़्म तुमने वो न भर सकेंगे।
कहते थे हम सबसे जीता था तुमने जग को पर ये क्या हुआ  की तुम तो काल ही को जितने चल दिये।
जो कर्ज है तुम्हारे, उनको चुकाने आना तुम्हे पड़ेगा।
जिन आंखों में लाये हो तुम आँसू उनको हँसाने आना तुम्हे पड़ेगा।
जिस पथ पर तुम गए जाना हमें भी पड़ेगा,
ये बात और हे कि तुम थोड़ा जल्दी चले गए।।

Dr. Saurabh Paliwal "Premsetu"

Assistant Professor
Vidyant P G College
Lucknow

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