Monday, October 8, 2018

गुजरात में भी पांव पसारता मॉब लिंचिंग

   पिछले एक सप्ताह से भीड़ एक बार फिर जानलेवा साबित हो रही है। इस बार भीड़ का केन्द्र प्रधानमंत्री जी का गृह राज्य गुजरात है, जहां उत्तर भारतीयों खासकर यूपी और बिहार के बाशिन्दों को निशाना बनाया जा रहा है। मजबूरन लाखों की संख्या में यूपी और बिहारी लोगों के सामने आजीविका और प्राण रक्षा का संकट उठ खड़ा हुआ है। लोग अपनी जान बचाकर अपने गृह राज्य लौटने लगे हैं। दुख इस बात का है कि इस मामले में सभी राजनीतिक दल वोट बैंक की रोटी सेंकने में मशगूल हैं और किसी को भी उन गरीब लोगों की फिक्र नहीं हो रही है, जो अपनी आजीविका को छोड़ अपने प्रदेश में लौटने को मजबूर हैं।
  ज्ञात हो कि गत 28 सितंबर को एक बच्ची के साथ कथित रूप से बलात्कार करने के मामले में बिहार के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किये जाने के बाद गैर-गुजरातियों को निशाना बनाया जा रहा है और सोशल मीडिया पर घृणा संदेश फैलाये जा रहे है। बिहारियों को पीट पीटकर लहूलुहान किया जा रहा है। इस मामले में प्रशासन की दलील भी समझ से परे है कि बिहारी लोग छठ और दीवाली के त्यौहारों के मद्देनजर अपने गृहराज्य वापस लौट रहे हैं, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। छठ और दिवाली के आने में अभी काफी समय है। सभी जानते हैं कि भीड़ द्वारा की जा रही हिंसा की पृष्ठभूमि में गुजरात के साबरकांठा में गत 28 सितंबर को एक किशोरी के साथ कथित रूप से बलात्कार है, जिसमें बिहार के एक निवासी को आरोप में गिरफ्तार किये जाने के बाद भीड़ द्वारा गैर-गुजरातियों को निशाना बनाया जा रहा है। इस मामले को लेकर सोशल मीडिया में घृणा संदेश फैलाये जा रहे है। उसी के बाद से बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय गुजरात छोड़ बिहार लौटने को मजबूर हैं।
प्रधानमंत्री जी हमेशा विकास के लिए गुजरात मॉडल की चर्चा जरूर करते हैं। यह भी सही है कि गुजरात के विकास के लिए इन्हीं उत्तर भारतीय मजदूरों की बड़ी भूमिका रही है। ये मजदूर अपने परिवार की आजीविका के लिए गुजरात की फैक्ट्रियों में दिन रात मेहनत करते हैं, तभी गुजरात विकास की बुलंदियों पर पहुंच सका है। भीड़तंत्र के इस आतंक से केवल बिहारियों की आजीविका का संकट ही नहीं पैदा हो गया हैं, बल्कि वहां के उद्योगों के पहिये भी रूक गये हैं। यह न तो गुजरात के लिए अच्छा है और न ही देश के लिए।
  हैरत इस बात की है कि अभी तक प्रधानमंत्री जी ने इस बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, जबकि अभी भी उनका गुजरात में इतना प्रभाव है कि उनकी एक अपील पर मॉब लिंचिंग बन्द हो सकती है, परन्तु वे ऐसा नहीं कर रहे हैं। यह बात चुभने वाली है। वैसे मॉब लिंचिंग का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, बिहार और झारखण्ड में मॉब लिंचिंग की घटनाएं समय-समय पर घटती रही है। तब भी प्रधानमंत्री जी ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने में बहुत देर की थी। यदि ऐसा ही चलता रहा तो देश में कानून का नामलेवा कोई नहीं बचेगा और भीड़तंत्र का ही बोलबाला हर जगह होगा।
  इस मामले में राजनीतिक दलों द्वारा वोट बैंक की राजनीति साधी जा रही है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है, लेकिन वहां पीट पीटकर मारे जा रहे उत्तर भारतीयों के घाव पर मरहम लगाने की किसी को सुधि नहीं है। ऐसा नहीं है कि यह मामला बड़ा संगीन था। इस मामले में कानून को अपना कार्य करना चाहिये था, लेकिन दुर्भाग्य से कानून ने अपना कार्य नहीं किया और राजनीतिक दबाव में मॉब लिंचिंग के दोषियों पर वह कार्रवाई नहीं की जा रही है, जो होनी चाहिये थी। इसी कारण वहां का माहौल खूनी होता जा रहा है।

2 comments:

  1. इस मामले में प्रधानमन्त्री की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है, अल्पेश ठाकोर, जिसने आग में घी डालने का काम किया है,इस मामले में कांग्रेस ने भी चुप्पी साध रखी है और सरकार ने भी सुबूत होने पर भी उसके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की है |

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  2. बिल्कुल सही बात है पांडेय जी । चोर-चोर मौसेरे भाई।

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