अमेरिका राष्टï्रपति की शपथ लेने के बाद ट्रम्प ने अमेरिका को 'ग्रेटÓ बनाने का वादा किया था, परन्तु अब ग्रेट की जगह वह बौना होता जा रहा है। उनके राष्टï्रपति बनने के बाद से वहां कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। उन्होंने अपनी प्रशासनिक मशीनरी में जिन जिन लोगों की नियुक्तियां की थी, आज वे सत्ता से खुद ही दूर हो गये हैं। इसी कड़ी में अब संयुक्त राष्टï्र में अमेरिका की स्थायी प्रतिनिधि निक्की हेली ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया। पिछले कुछ समय से राष्टï्रपति ट्रम्प के कुछ करीबियों का इस्तीफा देने का सिलसिला सा चल पड़ा है। पिछले महीने ट्रम्प को देश के लिए शर्मनाक बताने वाले एक प्रतिष्ठित एडमिरल (सेवानिवृत) विलियम मैकरावेन ने रक्षा मंत्रालय के सलाहकार निकाय से इस्तीफा दे दिया था। मैकरावेन ने ही २०१४ में अलकायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन को मारने वाली टीम का संचालन किया था। इस तरह ट्रम्प के एक एक करके सभी सिपहसालार उनसे दूर होते जा रहे हैं।
राष्टï्रपति ट्रम्प की विदेश नीति भी पटरी से उतरी नजर आ रही है। कभी संयुक्त राष्टï्र अमेरिकी जुबान बोला करता था, लेकिन हालिया फैसले से लगता है कि वहां भी अमेरिका की पकड़ कमजोर पड़ती जा रही है। संयुक्त राष्टï्र ने अमेरिका के विरूद्घ ईरान की याचिका पर आईसीजे के आदेश का समर्थन कर यह जता दिया कि अब अमेरिकी पकड़ ढीली होती जा रही है।
आर्थिक मोर्चे पर भी अमेरिका में कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। इस संबंध में अन्तर्राष्टï्रीय मुद्रा कोष द्वारा जारी चेतावनी सब कुछ कह देती है। आईएमएफ के मुताबिक अमेरिका मंदी के मुहाने पर खड़ा है और यदि मंदी आती है तो पांच हजार अरब डॉलर का नुकसान होगा।
अमेरिका में पहले राष्टï्रपति चुनावों में रूस के हस्तक्षेप की बात सामने आयी थी, परन्तु उस समय राष्टï्रपति ट्रम्प ने रूस का बचाव करते हुए इससे इनकार किया था। अब स्थितियां बदल गई है और अमेरिका चीन पर हस्तक्षेप करने का आरोप लगा रहा है।
अभी दो दिन पहले अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेन्स ने आरोप लगाया है कि चीन अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप कर रहा है। पेन्स के अनुसार इस समय होने वाले सांसदों के चुनाव और 2020 में होने राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के लिए चीन ने कार्रवाई करनी शुरू कर दी है। चीन ने इन आरोपो को निराधार और बेहुदा बताया है। उम्मीद यह थी कि 2016 की घटना के बाद अमेरिका की एजेंसियां किसी भी देश को अपने यहां की चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित होने देने से रोकेंगी। परन्तु पेन्स के बयान से स्पष्ट है कि चीन जैसा विकासशील देश भी अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप कर सकता है।
जब से चीन और अमेरिका में ट्रेड वार शुरू हुआ है, तब से दोनों प्रयास कर रहे हैं कि एक-दूसरे के उन उत्पादों पर अधिक टैरिफ लगा रहे हैं, जिससे ज्यादा परेशानी हो। अमेरिका ने चुन-चुन कर ऐसे उत्पादों पर ऊंचा टैरिफ लगाया है, जिससे चीन में बेरोजगारी पैदा हो। चीन ने भी यही कार्य किया है। चीन, अमेरिका से बड़े पैमाने पर सोयाबीन का आयात करता था। सोयाबीन अमेरिका के उन हिस्सों में पैदा होता है, जहां ट्रम्प को अधिक मत मिलते हैं। यह चीन को कम निर्यात होने से इन किसानों की आमदनी घटनी स्वाभाविक है। इस फैसले का असर अमेरिका के द्विवर्षीय सांसद चुनाव पर पडऩा स्वाभाविक था। चूंकि चीन में केवल एक राजनीतिक दल का शासन है, अत: उसकी चुनाव प्रक्रिया में सीधा हस्तक्षेप संभव नहीं है, परन्तु टैरिफ और ट्रेड के रास्ते देश में असंतोष का माहौल अवश्य पैदा किया जा सकता है।
अमेरिका संसार का सबसे शक्तिशाली देश है और उसकी सुरक्षा एजेंसियों की यह अक्षमता आश्चर्यजनक है।
राष्टï्रपति ट्रम्प की विदेश नीति भी पटरी से उतरी नजर आ रही है। कभी संयुक्त राष्टï्र अमेरिकी जुबान बोला करता था, लेकिन हालिया फैसले से लगता है कि वहां भी अमेरिका की पकड़ कमजोर पड़ती जा रही है। संयुक्त राष्टï्र ने अमेरिका के विरूद्घ ईरान की याचिका पर आईसीजे के आदेश का समर्थन कर यह जता दिया कि अब अमेरिकी पकड़ ढीली होती जा रही है।
आर्थिक मोर्चे पर भी अमेरिका में कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। इस संबंध में अन्तर्राष्टï्रीय मुद्रा कोष द्वारा जारी चेतावनी सब कुछ कह देती है। आईएमएफ के मुताबिक अमेरिका मंदी के मुहाने पर खड़ा है और यदि मंदी आती है तो पांच हजार अरब डॉलर का नुकसान होगा।
अमेरिका में पहले राष्टï्रपति चुनावों में रूस के हस्तक्षेप की बात सामने आयी थी, परन्तु उस समय राष्टï्रपति ट्रम्प ने रूस का बचाव करते हुए इससे इनकार किया था। अब स्थितियां बदल गई है और अमेरिका चीन पर हस्तक्षेप करने का आरोप लगा रहा है।
अभी दो दिन पहले अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेन्स ने आरोप लगाया है कि चीन अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप कर रहा है। पेन्स के अनुसार इस समय होने वाले सांसदों के चुनाव और 2020 में होने राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के लिए चीन ने कार्रवाई करनी शुरू कर दी है। चीन ने इन आरोपो को निराधार और बेहुदा बताया है। उम्मीद यह थी कि 2016 की घटना के बाद अमेरिका की एजेंसियां किसी भी देश को अपने यहां की चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित होने देने से रोकेंगी। परन्तु पेन्स के बयान से स्पष्ट है कि चीन जैसा विकासशील देश भी अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप कर सकता है।
जब से चीन और अमेरिका में ट्रेड वार शुरू हुआ है, तब से दोनों प्रयास कर रहे हैं कि एक-दूसरे के उन उत्पादों पर अधिक टैरिफ लगा रहे हैं, जिससे ज्यादा परेशानी हो। अमेरिका ने चुन-चुन कर ऐसे उत्पादों पर ऊंचा टैरिफ लगाया है, जिससे चीन में बेरोजगारी पैदा हो। चीन ने भी यही कार्य किया है। चीन, अमेरिका से बड़े पैमाने पर सोयाबीन का आयात करता था। सोयाबीन अमेरिका के उन हिस्सों में पैदा होता है, जहां ट्रम्प को अधिक मत मिलते हैं। यह चीन को कम निर्यात होने से इन किसानों की आमदनी घटनी स्वाभाविक है। इस फैसले का असर अमेरिका के द्विवर्षीय सांसद चुनाव पर पडऩा स्वाभाविक था। चूंकि चीन में केवल एक राजनीतिक दल का शासन है, अत: उसकी चुनाव प्रक्रिया में सीधा हस्तक्षेप संभव नहीं है, परन्तु टैरिफ और ट्रेड के रास्ते देश में असंतोष का माहौल अवश्य पैदा किया जा सकता है।
अमेरिका संसार का सबसे शक्तिशाली देश है और उसकी सुरक्षा एजेंसियों की यह अक्षमता आश्चर्यजनक है।
No comments:
Post a Comment
Please share your views