पिछले दिनों जब सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान अमेरिका में थे, उसी समय राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कह दिया था कि उनकी हुकूमत अमेरिकी हिफाजत के बिना सात दिन भी नहीं चलेगी। अभी तीन दिन पहले मिसीसिपी में बोलते हुए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पुन: यह बात दोहराई कि सऊदी अरब और कुछ अन्य राज्य अमेरिकी संरक्षण में ही है और यदि अमेरिकी संरक्षण हट जाये तो वह धाराशाई हो जायेंगे। जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मुहम्मद बिन सलमान के अमेरिका में रहते हुए यह बात कही तो यदि कोई भी स्वाभिमानी क्राउन प्रिंस होता तो तुरन्त अपने देश लौट जाता। परन्तु सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र ने अपनी आत्मा अमेरिकियों के हाथों बेच रखी है। यह सही है कि वह अमेरिकी (और इस्रायली) सुरक्षा एजेंसियों की हिफाजत में ही चल रहे हैं। यह अत्यंत शर्म की बात है।
मिसीसिपी में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बोलते हुए यह भी कहा कि इन राज्यों को अपनी हिफाजत के बदले अमेरिका को धन देना चाहिये। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस बयान से भारतीय इतिहास का एक प्रकरण याद आता है, जिसमें प्लासी की युद्घ के बाद अंगे्रजों ने यह व्यवस्था की थी कि सभी देशी रजवाड़े अपने क्षेत्र में अंग्रेजी फौज अंग्रेज अधिकारियों की कमाण्ड में रखेंगे और इस फौज का खर्चा यह रजवाड़े स्वयं देंगे। अंग्रेजों ने इस व्यवस्था से यह सुनिश्चित किया था कि यह रजवाड़े कभी भी अकेले या मिलकर उनके विरूद्घ खड़ा नहीं होंगे। यह रजवाड़े अपने नागरिकों पर हर तरह के जुल्म करते थे, परन्तु अंगे्रज रेजीडेन्ट जो इन राज्यों का सच्चा मालिक था, उसके सामने मिमियाते रहते थे। इसका नाम 'सबसीडियरी एलायंस' था। टीपू सुलतान ने इसे कबूल नहीं किया और वह युद्घ में लड़ता मारा गया। डोनाल्ड ट्रम्प ने यही व्यवस्था इन अरब राज्यों के लिए की है और एक अतिरिक्त व्यवस्था यह भी है कि इस क्षेत्र में ही इस्रायल अमेरिका के हितों का मजबूत स्थानीय संरक्षक मौजूद हैं। सभी जानते हैं कि आजकल औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं होने के बावजूद सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन, इस्रायल के निकटतम साथी है और इस्रायल मिस्र समेत इन देशों की अमेरिका की तरफ से देखभाल करता है। इन सभी देशों में नागरिकों के मानवाधिकार दूर-दूर तक नही है और न ही कानून के शासन का कोई साया है। यह सभी शासक अपने नागरिकों से क्रूर बर्ताव करते हैं, परन्तु अमेरिका और उसके नुमाइन्दों के सामने साष्टांग दण्डवत करते हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प ने जो इनकी सुरक्षा के बदले धन की मांग की है, इसका एक रूप बहुत दिनों से प्रचलित भी रहा है। ईराक युद्घ से अमेरिका को अरबों डालर का फायदा हुआ। अमेरिका इन देशों को पुराने हथियार खरीदनें को मजबूर किया करता है। यह हथियार अपने बक्सों में बन्द रहते रहते निष्प्रयोज्य हो जाते हैं, परन्तु इससे अमेरिकी युद्घ सामग्री की फैक्ट्रियां चलती रहती है और अमेरिका में असंतोष नहीं होता। आजकल भी डोनाल्ड ट्रम्प की इन्हीं नीतियों के कारण अमेरिका में मजदूरों में बेरोजगारी निम्नतम स्तर पर है। माक्र्सवादी चिंतक लेनिन ने अपनी पुस्तक 'कोलोनियलिज्म : द हाएस्ट स्टेज ऑफ कैपिटलिज्म' में कहा है कि उपनिवेशवादी शक्तियां गुलाम देशों के मजदूरों का शोषण करके अपने देश में मजदूरों को खुश रखती है। आजकल अमेरिका यही कर रहा है।
मिसीसिपी में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बोलते हुए यह भी कहा कि इन राज्यों को अपनी हिफाजत के बदले अमेरिका को धन देना चाहिये। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस बयान से भारतीय इतिहास का एक प्रकरण याद आता है, जिसमें प्लासी की युद्घ के बाद अंगे्रजों ने यह व्यवस्था की थी कि सभी देशी रजवाड़े अपने क्षेत्र में अंग्रेजी फौज अंग्रेज अधिकारियों की कमाण्ड में रखेंगे और इस फौज का खर्चा यह रजवाड़े स्वयं देंगे। अंग्रेजों ने इस व्यवस्था से यह सुनिश्चित किया था कि यह रजवाड़े कभी भी अकेले या मिलकर उनके विरूद्घ खड़ा नहीं होंगे। यह रजवाड़े अपने नागरिकों पर हर तरह के जुल्म करते थे, परन्तु अंगे्रज रेजीडेन्ट जो इन राज्यों का सच्चा मालिक था, उसके सामने मिमियाते रहते थे। इसका नाम 'सबसीडियरी एलायंस' था। टीपू सुलतान ने इसे कबूल नहीं किया और वह युद्घ में लड़ता मारा गया। डोनाल्ड ट्रम्प ने यही व्यवस्था इन अरब राज्यों के लिए की है और एक अतिरिक्त व्यवस्था यह भी है कि इस क्षेत्र में ही इस्रायल अमेरिका के हितों का मजबूत स्थानीय संरक्षक मौजूद हैं। सभी जानते हैं कि आजकल औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं होने के बावजूद सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन, इस्रायल के निकटतम साथी है और इस्रायल मिस्र समेत इन देशों की अमेरिका की तरफ से देखभाल करता है। इन सभी देशों में नागरिकों के मानवाधिकार दूर-दूर तक नही है और न ही कानून के शासन का कोई साया है। यह सभी शासक अपने नागरिकों से क्रूर बर्ताव करते हैं, परन्तु अमेरिका और उसके नुमाइन्दों के सामने साष्टांग दण्डवत करते हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प ने जो इनकी सुरक्षा के बदले धन की मांग की है, इसका एक रूप बहुत दिनों से प्रचलित भी रहा है। ईराक युद्घ से अमेरिका को अरबों डालर का फायदा हुआ। अमेरिका इन देशों को पुराने हथियार खरीदनें को मजबूर किया करता है। यह हथियार अपने बक्सों में बन्द रहते रहते निष्प्रयोज्य हो जाते हैं, परन्तु इससे अमेरिकी युद्घ सामग्री की फैक्ट्रियां चलती रहती है और अमेरिका में असंतोष नहीं होता। आजकल भी डोनाल्ड ट्रम्प की इन्हीं नीतियों के कारण अमेरिका में मजदूरों में बेरोजगारी निम्नतम स्तर पर है। माक्र्सवादी चिंतक लेनिन ने अपनी पुस्तक 'कोलोनियलिज्म : द हाएस्ट स्टेज ऑफ कैपिटलिज्म' में कहा है कि उपनिवेशवादी शक्तियां गुलाम देशों के मजदूरों का शोषण करके अपने देश में मजदूरों को खुश रखती है। आजकल अमेरिका यही कर रहा है।
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