अमेरिका एक विशालकाय देश है, जिसकी छवि एक 'बनाना रिपब्लिक' जैसी बनती जा रही है।
आज से करीब दो साल पहले आरोप लगा था कि रूस ने अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में हस्तक्षेप किया था और इस तरह ट्रम्प की जीत दर्ज हुई थी। अमेरिका के बहुत से लोग इस पर यकीन करते हैं कि रूस ने अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया में सेंध लगाई थी, जिससे अंतिम दिनों में ट्रम्प को हिलेरी क्लिंटन पर बढ़त हासिल हो गई थी। पहले किसी को भी (ट्रम्प की पत्नी को भी) विश्वास नहीं था कि ट्रम्प चुनाव जीत जाएंगे, परन्तु अंतिम दिनों में पासा पलट गया। यद्यपि ट्रम्प और उनके साथियों ने उस समय इससे इनकार किया था, परन्तु बाद की ज्यादातर घटनाओं ने इसे काफी हद तक सही साबित किया है। ट्रम्प ने स्वयं अपने प्रथम साक्षात्कारों में रूसी राष्ट्रपति बलादमिर पुतिन की बड़ी तारीफ की थी। एक मौके पर जब एक पत्रकार ने उनसे कहा कि पुतिन के विरूद्घ हत्या का मामला है तो ट्रम्प ने यह भी कह दिया कि हमारे यहां भी बहुत से राष्ट्रपतियों पर हत्या के मामले रहे हैं। इतना मजबूत बचाव से उनके पक्ष में रूसी हस्तक्षेप के शक को मजबूती मिली। बाद में इसी आरोप पर ट्रम्प के कई साथियों ने इस्तीफा दिया और कुछ वादामाफी गवाह बने। इस संबंध में अभी भी जांच चल रही है और विशेष जांचकर्ता मुलर की लगाई हुई आग ट्रम्प के परिवार तक पहुंच गई है, क्योंकि ट्रम्प का बेटा चुनाव से पहले रूसी प्रतिनिधियों से ट्रम्प टॉवर में मिला था। इतने मजबूत और सुरक्षा साधनों से सम्पन्न देश के उच्चतम अधिकारी के चुनाव में यदि बाहर का देश हस्तक्षेप करता है तो यह बड़ी शर्म और क्षोभ की बात है।
अभी दो दिन पहले अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेन्स ने आरोप लगाया है कि चीन अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप कर रहा है। पेन्स के अनुसार इस समय होने वाले सांसदों के चुनाव और 2020 में होने राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के लिए चीन ने कार्रवाई करनी शुरू कर दी है। चीन ने इन आरोपो को निराधार और बेहुदा बताया है। उम्मीद यह थी कि 2016 की घटना के बाद अमेरिका की एजेंसियां किसी भी देश को अपने यहां की चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित होने देने से रोकेंगी। परन्तु पेन्स के बयान से स्पष्ट है कि चीन जैसा विकासशील देश भी अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप कर सकता है।
जब से चीन और अमेरिका में ट्रेड वार शुरू हुआ है, तब से दोनों प्रयास कर रहे हैं कि एक-दूसरे के उन उत्पादों पर अधिक टैरिफ लगा रहे हैं, जिससे ज्यादा परेशानी हो। अमेरिका ने चुन-चुन कर ऐसे उत्पादों पर ऊंचा टैरिफ लगाया है, जिससे चीन में बेरोजगारी पैदा हो। चीन ने भी यही कार्य किया है। चीन, अमेरिका से बड़े पैमाने पर सोयाबीन का आयात करता था। सोयाबीन अमेरिका के उन हिस्सों में पैदा होता है, जहां ट्रम्प को अधिक मत मिलते हैं। यह चीन को कम निर्यात होने से इन किसानों की आमदनी घटनी स्वाभाविक है। इस फैसले का असर अमेरिका के द्विवर्षीय सांसद चुनाव पर पडऩा स्वाभाविक था। चूंकि चीन में केवल एक राजनीतिक दल का शासन है, अत: उसकी चुनाव प्रक्रिया में सीधा हस्तक्षेप संभव नहीं है, परन्तु टैरिफ और ट्रेड के रास्ते देश में असंतोष का माहौल अवश्य पैदा किया जा सकता है।
अमेरिका संसार का सबसे शक्तिशाली देश है और उसकी सुरक्षा एजेंसियों की यह अक्षमता आश्चर्यजनक है।
आज से करीब दो साल पहले आरोप लगा था कि रूस ने अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में हस्तक्षेप किया था और इस तरह ट्रम्प की जीत दर्ज हुई थी। अमेरिका के बहुत से लोग इस पर यकीन करते हैं कि रूस ने अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया में सेंध लगाई थी, जिससे अंतिम दिनों में ट्रम्प को हिलेरी क्लिंटन पर बढ़त हासिल हो गई थी। पहले किसी को भी (ट्रम्प की पत्नी को भी) विश्वास नहीं था कि ट्रम्प चुनाव जीत जाएंगे, परन्तु अंतिम दिनों में पासा पलट गया। यद्यपि ट्रम्प और उनके साथियों ने उस समय इससे इनकार किया था, परन्तु बाद की ज्यादातर घटनाओं ने इसे काफी हद तक सही साबित किया है। ट्रम्प ने स्वयं अपने प्रथम साक्षात्कारों में रूसी राष्ट्रपति बलादमिर पुतिन की बड़ी तारीफ की थी। एक मौके पर जब एक पत्रकार ने उनसे कहा कि पुतिन के विरूद्घ हत्या का मामला है तो ट्रम्प ने यह भी कह दिया कि हमारे यहां भी बहुत से राष्ट्रपतियों पर हत्या के मामले रहे हैं। इतना मजबूत बचाव से उनके पक्ष में रूसी हस्तक्षेप के शक को मजबूती मिली। बाद में इसी आरोप पर ट्रम्प के कई साथियों ने इस्तीफा दिया और कुछ वादामाफी गवाह बने। इस संबंध में अभी भी जांच चल रही है और विशेष जांचकर्ता मुलर की लगाई हुई आग ट्रम्प के परिवार तक पहुंच गई है, क्योंकि ट्रम्प का बेटा चुनाव से पहले रूसी प्रतिनिधियों से ट्रम्प टॉवर में मिला था। इतने मजबूत और सुरक्षा साधनों से सम्पन्न देश के उच्चतम अधिकारी के चुनाव में यदि बाहर का देश हस्तक्षेप करता है तो यह बड़ी शर्म और क्षोभ की बात है।
अभी दो दिन पहले अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेन्स ने आरोप लगाया है कि चीन अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप कर रहा है। पेन्स के अनुसार इस समय होने वाले सांसदों के चुनाव और 2020 में होने राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के लिए चीन ने कार्रवाई करनी शुरू कर दी है। चीन ने इन आरोपो को निराधार और बेहुदा बताया है। उम्मीद यह थी कि 2016 की घटना के बाद अमेरिका की एजेंसियां किसी भी देश को अपने यहां की चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित होने देने से रोकेंगी। परन्तु पेन्स के बयान से स्पष्ट है कि चीन जैसा विकासशील देश भी अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप कर सकता है।
जब से चीन और अमेरिका में ट्रेड वार शुरू हुआ है, तब से दोनों प्रयास कर रहे हैं कि एक-दूसरे के उन उत्पादों पर अधिक टैरिफ लगा रहे हैं, जिससे ज्यादा परेशानी हो। अमेरिका ने चुन-चुन कर ऐसे उत्पादों पर ऊंचा टैरिफ लगाया है, जिससे चीन में बेरोजगारी पैदा हो। चीन ने भी यही कार्य किया है। चीन, अमेरिका से बड़े पैमाने पर सोयाबीन का आयात करता था। सोयाबीन अमेरिका के उन हिस्सों में पैदा होता है, जहां ट्रम्प को अधिक मत मिलते हैं। यह चीन को कम निर्यात होने से इन किसानों की आमदनी घटनी स्वाभाविक है। इस फैसले का असर अमेरिका के द्विवर्षीय सांसद चुनाव पर पडऩा स्वाभाविक था। चूंकि चीन में केवल एक राजनीतिक दल का शासन है, अत: उसकी चुनाव प्रक्रिया में सीधा हस्तक्षेप संभव नहीं है, परन्तु टैरिफ और ट्रेड के रास्ते देश में असंतोष का माहौल अवश्य पैदा किया जा सकता है।
अमेरिका संसार का सबसे शक्तिशाली देश है और उसकी सुरक्षा एजेंसियों की यह अक्षमता आश्चर्यजनक है।
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