सिंगापुर के वुहान में आयोजित आसियान देशों का शिखर सम्मेलन भारत के लिए अंतर्राष्टï्रीय कूटनीति के दृष्टिïकोण से कई तरह से उत्साहजनक रहा। एक तरफ उसने पड़ोसी चीन से अपने व्यापारिक और सामरिक मोर्चे पर आपसी सामंजस्य बिठाने की कोशिश की तो अमेरिका व जापान से आदि देशों के सहयोग से अपनी प्रतिरक्षा में आने वाली किसी समस्या को दूर करने के उपाय भी खोजे। सबसे बड़ी उपलब्धि भारत और चीन के बीच वर्षों से बनी रही कई गलतफहमियां दूर करने के साथ आपसी समझबूझ से व्यापार और निवेश पर एकराय कायम करने की मानी जा सकती है। यह सर्वविदित है कि चीन एशिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है और इस सम्मेलन ने अब वर्तमान आर्थिक परिप्रेक्ष्य में दोनों देश वैश्वीकरण जैसे कई मुद्दों पर मिलकर काम करने के रास्ते की हरी झण्डी दिखा दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्टï्रपति शी जिनपिंग ने माना कि दोनों देशों के बीच औपचारिक और अनौपचारिक वार्ताएं होती रहनी चाहिये, क्योंकि दोनों देशों में बहुत सी बातें एक जैसी ही है। दोनों देश विकासशील है, बहुत से मुद्दों पर एक साथ मिलकर काम कर सकते हैं। ऐसे में छोटी-छोटी गलतफहमियों से दोनों देशों का केवल नुकसान ही रहने वाला है।
एक तरह से वुहान सम्मेलन भारत और चीन को लेकर पिछले दिनों डोकलाम विवाद व अन्य मामलों को लेकर आयी खटास को खत्म करने का कार्य किया है। सीमा विवाद पर भी शांति और सामन्जस्य बनाये रखने के वादे ने एक तरह से जनहानि या युद्घ की आशंकाओं को विराम लगाने का कार्य किया है। यह सम्मेलन चीन और भारत के बीच व्यापार और निवेश के लिए माहौल बनाने वाला साबित हुआ।
सम्मेलन में दूसरा फायदा प्रधानमंत्री द्वारा फिनटेक फेस्टिवल में बैंकिंग प्रौद्योगिकी प्लेटफार्म एपिक्स का उद्घाटन करने के साथ मिला। एपिक्स यानी अप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस एक्सचेंज एक ऐसा सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है, जिसके जरिए हमारे देश की कंपनियां दुनिया भर के वित्तीय संस्थानों से जुड़ सकेंगी। जाहिर है, इससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। पिछले कुछ सालों में जिस तरह इंटरनेट का विस्तार हुआ है और कारोबार के क्षेत्र में इससे काफी मदद मिलने लगी है, एपेक्स उसे और गति देगा। पिछले एक साल में आसियान देशों के साथ भारत के कारोबार में दस फीसद से अधिक बढ़ोतरी हुई है। भारत के कुल निर्यात का ग्यारह फीसद से अधिक हिस्सा सिर्फ आसियान देशों के साथ हुआ। इस तरह सम्मेलन से कारोबार के क्षेत्र में और बढ़ोतरी की उम्मीद बनी है। आसियान सम्मेलन का सबसे बड़ा मकसद आपस में कारोबार और सुरक्षा संबंधी मसलों पर एकजुट होकर काम करना है। आसियान देशों में भारत एक मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है, इसलिए भी इसे खास तवज्जो दी जाती है। इस साल फिनटेक फेस्टिवल में भारत के प्रधानमंत्री को संबोधित करने का मौका देकर एक तरह से भारत की आर्थिक ताकत को रेखांकित किया गया।
इस सम्मेलन की एक और बड़ी उपलब्धि प्रधानमंत्री की अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेंस से मुलाकात और हिंद-प्रशांत क्षेत्र को खुला रखने तथा सुरक्षा संबंधी मसलों पर बातचीत रही। दरअसल, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन अपना दबदबा बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए वह अपने पड़ोसियों पर दबाव भी बना रहा है, इसलिए भारत की चिंता स्वाभाविक है। वे दोनों इस पक्ष में हैं कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र को खुला और समृद्ध बनाया जाना चाहिए।
एक तरह से वुहान सम्मेलन भारत और चीन को लेकर पिछले दिनों डोकलाम विवाद व अन्य मामलों को लेकर आयी खटास को खत्म करने का कार्य किया है। सीमा विवाद पर भी शांति और सामन्जस्य बनाये रखने के वादे ने एक तरह से जनहानि या युद्घ की आशंकाओं को विराम लगाने का कार्य किया है। यह सम्मेलन चीन और भारत के बीच व्यापार और निवेश के लिए माहौल बनाने वाला साबित हुआ।
सम्मेलन में दूसरा फायदा प्रधानमंत्री द्वारा फिनटेक फेस्टिवल में बैंकिंग प्रौद्योगिकी प्लेटफार्म एपिक्स का उद्घाटन करने के साथ मिला। एपिक्स यानी अप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस एक्सचेंज एक ऐसा सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है, जिसके जरिए हमारे देश की कंपनियां दुनिया भर के वित्तीय संस्थानों से जुड़ सकेंगी। जाहिर है, इससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। पिछले कुछ सालों में जिस तरह इंटरनेट का विस्तार हुआ है और कारोबार के क्षेत्र में इससे काफी मदद मिलने लगी है, एपेक्स उसे और गति देगा। पिछले एक साल में आसियान देशों के साथ भारत के कारोबार में दस फीसद से अधिक बढ़ोतरी हुई है। भारत के कुल निर्यात का ग्यारह फीसद से अधिक हिस्सा सिर्फ आसियान देशों के साथ हुआ। इस तरह सम्मेलन से कारोबार के क्षेत्र में और बढ़ोतरी की उम्मीद बनी है। आसियान सम्मेलन का सबसे बड़ा मकसद आपस में कारोबार और सुरक्षा संबंधी मसलों पर एकजुट होकर काम करना है। आसियान देशों में भारत एक मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है, इसलिए भी इसे खास तवज्जो दी जाती है। इस साल फिनटेक फेस्टिवल में भारत के प्रधानमंत्री को संबोधित करने का मौका देकर एक तरह से भारत की आर्थिक ताकत को रेखांकित किया गया।
इस सम्मेलन की एक और बड़ी उपलब्धि प्रधानमंत्री की अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेंस से मुलाकात और हिंद-प्रशांत क्षेत्र को खुला रखने तथा सुरक्षा संबंधी मसलों पर बातचीत रही। दरअसल, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन अपना दबदबा बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए वह अपने पड़ोसियों पर दबाव भी बना रहा है, इसलिए भारत की चिंता स्वाभाविक है। वे दोनों इस पक्ष में हैं कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र को खुला और समृद्ध बनाया जाना चाहिए।
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