देश के पहले वाटर हाइवे बनने के बाद कई उम्मीदें बलवती हुई हैं। जलमार्ग शुरू होने से कम से कम इस बात से खुश हुआ जा सकता है कि अब नदियों के दिन भी बहुरेंगे, क्योंकि जलमार्ग तभी सफल हो सकता है, जब नदियों में पर्याप्त पानी भरा रहे और वे प्रदूषण मुक्त हों। देश भर में बढ़ रहे ट्रैफिक बोझ को भी कम करने के लिए इस नई राह का खुलना बहुत जरूरी था। पश्चिम बंगाल के हल्दिया से वाराणसी तक जलयान के आवागमन के शुरू किये जाने से और भी कई तरह की उम्मीदें बंधी हैं।
यह सच है कि पिछले एक लंबे दौर में हमने अपनी नदियों पर कोई ध्यान नहीं दिया और उन्हें प्रदूषित होने के लिए छोड़ दिया, जबकि ये नदियां हमेशा से ही सिर्फ जीवनदायिनी नहीं, यातायात का बहुत बड़ा साधन रही हैं। एक दौर था जब सामान लाने और ले जाने के लिए लंबी दूरियां सड़कों से नहीं, नदियों से ही तय होती थीं। सड़क मार्गों और वायुमार्गों के विकास की होड़ में हमने अपने परंपरागत जलमार्गों को पूरी तरह नजरंदाज कर दिया। देश में 32 साल पहले भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण बन गया था, लेकिन इस मोर्चे पर ज्यादा काम नहीं हो सका। जबकि चीन और अमेरिका जैसे देशों ने अपने जलमार्गों पर बहुत ध्यान दिया और एक इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में जलमार्ग आज उनकी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण स्तंभ बन चुके हैं। भारत में इस समय कुल माल की 0.1 प्रतिशत ढुलाई जलमार्ग से होती है, जबकि अमेरिका के मामले में यह आंकड़ा 21 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह काम ज्यादा अच्छी तरह हो सकता है, क्योंकि हमारे ज्यादातर बड़े शहर नदियों के किनारे ही बसे हुए हैं। भारत को इस तरफ पहले ही ध्यान देने की आवश्यकता थी। प्रकृति ने नदियों के रूप में जितनी नेमत भारत को दी है, उतनी शायद ही किसी देश को नसीब हुई हो। अत: उसका उपयोग किया जाना हमारी तरक्की की भी निशानी होगी।
अगर ठीक ढंग से इन जलमार्गों को विकसित किया जाए तो इसी जलमार्ग की एक शाखा यमुना नदी से होती हुई राजधानी दिल्ली तक भी पहुंच सकती है। वैसे हमारे देश में कुल 14,500 किलोमीटर तक नौवहन हो सकता है। इनमें बड़े कार्गो को नदियों के जरिए 5,000 किलोमीटर ले जाया जा सकता है, इसके अलावा 4,000 किलामीटर तक की लंबाई ऐसी नहरों की है, जिनमें माल की ढुलाई हो सकती है। इसके लिए कई योजनाएं भी बन चुकी हैं। ब्रह्मपुत्र नदी में 891 किलोमीटर, केरल की वेस्ट कोस्ट नहर में 205 किलोमीटर और गुजरात की तापनी नदी पर 173 किलोमीटर लंबा जलमार्ग बनाने की योजनाओं पर भी काम चल रहा है। अगर यह जल परिवहन व्यवस्था शुरू हुई तो जाहिर है कि हमारी सड़कों से बोझ और शायद जगह-जगह होने वाला जाम भी घटेगा। सड़कों पर वाहनों की जरूरत से ज्यादा भीड़ प्रदूषण का एक बड़ा कारण भी बन चुकी है।
इन जलमार्गों पर सुचारू रूप से परिवहन हो सके, इसके लिए हमें अपनी नदियों की सूरत भी बदलनी होगी और उन पर लगातार ध्यान भी देना होगा। अभी का सच यही है कि हमारी ज्यादातर नदियां लगातार उथली होती जा रही हैं। गर्मियों में वे सूखी दिखाई देती हैं और वर्षा के मौसम में वहां जल प्रलय जैसे दृश्य दिखते हैं। जलमार्गों का अधिकतम उपयोग तभी संभव है, जब इन नदियों में नियमित तौर पर गाद की सफाई होती रहे। ऐसी कोशिशें देश के तमाम छोटे-बड़े शहरों की कारोबार संभावनाओं को तो बढ़ाएंगी ही, साथ ही नदियों के अविरल होने का इंतजाम भी करेंगी। नदियों में संभावनाएं बहुत हैं, लेकिन उन्हें जलमार्ग के रूप में विकसित करने की चुनौती बहुत बड़ी है। यह ऐसा काम है, जिसके लिए बहुत बड़े निवेश की जरूरत होगी और लंबा समय भी लगेगा, लेकिन यह सब अब बहुत जरूरी हो गया है।
यह सच है कि पिछले एक लंबे दौर में हमने अपनी नदियों पर कोई ध्यान नहीं दिया और उन्हें प्रदूषित होने के लिए छोड़ दिया, जबकि ये नदियां हमेशा से ही सिर्फ जीवनदायिनी नहीं, यातायात का बहुत बड़ा साधन रही हैं। एक दौर था जब सामान लाने और ले जाने के लिए लंबी दूरियां सड़कों से नहीं, नदियों से ही तय होती थीं। सड़क मार्गों और वायुमार्गों के विकास की होड़ में हमने अपने परंपरागत जलमार्गों को पूरी तरह नजरंदाज कर दिया। देश में 32 साल पहले भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण बन गया था, लेकिन इस मोर्चे पर ज्यादा काम नहीं हो सका। जबकि चीन और अमेरिका जैसे देशों ने अपने जलमार्गों पर बहुत ध्यान दिया और एक इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में जलमार्ग आज उनकी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण स्तंभ बन चुके हैं। भारत में इस समय कुल माल की 0.1 प्रतिशत ढुलाई जलमार्ग से होती है, जबकि अमेरिका के मामले में यह आंकड़ा 21 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह काम ज्यादा अच्छी तरह हो सकता है, क्योंकि हमारे ज्यादातर बड़े शहर नदियों के किनारे ही बसे हुए हैं। भारत को इस तरफ पहले ही ध्यान देने की आवश्यकता थी। प्रकृति ने नदियों के रूप में जितनी नेमत भारत को दी है, उतनी शायद ही किसी देश को नसीब हुई हो। अत: उसका उपयोग किया जाना हमारी तरक्की की भी निशानी होगी।
अगर ठीक ढंग से इन जलमार्गों को विकसित किया जाए तो इसी जलमार्ग की एक शाखा यमुना नदी से होती हुई राजधानी दिल्ली तक भी पहुंच सकती है। वैसे हमारे देश में कुल 14,500 किलोमीटर तक नौवहन हो सकता है। इनमें बड़े कार्गो को नदियों के जरिए 5,000 किलोमीटर ले जाया जा सकता है, इसके अलावा 4,000 किलामीटर तक की लंबाई ऐसी नहरों की है, जिनमें माल की ढुलाई हो सकती है। इसके लिए कई योजनाएं भी बन चुकी हैं। ब्रह्मपुत्र नदी में 891 किलोमीटर, केरल की वेस्ट कोस्ट नहर में 205 किलोमीटर और गुजरात की तापनी नदी पर 173 किलोमीटर लंबा जलमार्ग बनाने की योजनाओं पर भी काम चल रहा है। अगर यह जल परिवहन व्यवस्था शुरू हुई तो जाहिर है कि हमारी सड़कों से बोझ और शायद जगह-जगह होने वाला जाम भी घटेगा। सड़कों पर वाहनों की जरूरत से ज्यादा भीड़ प्रदूषण का एक बड़ा कारण भी बन चुकी है।
इन जलमार्गों पर सुचारू रूप से परिवहन हो सके, इसके लिए हमें अपनी नदियों की सूरत भी बदलनी होगी और उन पर लगातार ध्यान भी देना होगा। अभी का सच यही है कि हमारी ज्यादातर नदियां लगातार उथली होती जा रही हैं। गर्मियों में वे सूखी दिखाई देती हैं और वर्षा के मौसम में वहां जल प्रलय जैसे दृश्य दिखते हैं। जलमार्गों का अधिकतम उपयोग तभी संभव है, जब इन नदियों में नियमित तौर पर गाद की सफाई होती रहे। ऐसी कोशिशें देश के तमाम छोटे-बड़े शहरों की कारोबार संभावनाओं को तो बढ़ाएंगी ही, साथ ही नदियों के अविरल होने का इंतजाम भी करेंगी। नदियों में संभावनाएं बहुत हैं, लेकिन उन्हें जलमार्ग के रूप में विकसित करने की चुनौती बहुत बड़ी है। यह ऐसा काम है, जिसके लिए बहुत बड़े निवेश की जरूरत होगी और लंबा समय भी लगेगा, लेकिन यह सब अब बहुत जरूरी हो गया है।
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