Monday, November 12, 2018

बदलाव से शहरों की सूरत नहीं सीरत बदलनी चाहिये

  इस समय देश में एक अजीब सी बहस चल रही है। किस शहर का नाम क्या होना चाहिये? ऐसा लगता है कि नाम बदलने से बहुत कुछ बदल जायेगा, देश में परिवर्तन की क्रांति आ जायेगी। लोगों के बीच नाम परिवर्तन की एक श्रृंखला चलाने की कवायद शुरू किया गया है। यह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इलाहाबाद को प्रयागराज और फैजाबाद जिले को अयोध्या किये जाने के बाद काफी तेजी से चर्चा के केन्द्रविन्दु बनकर उभरा है। इससे पूर्व जब उत्तर प्रदेश सरकार ने मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय  जंक्शन रखा था, तब भी इस तरह की चर्चाओं का दौर चला था। इस समय अहमदाबाद, लखनऊ, पूने, मुजफ्फर नगर, दिल्ली आदि शहरों के नाम बदलने की बातें की जा रही है।
दरअसल नाम परिवर्तन के पीछे जो दलील दी जा रही है, उसमें किसी तरह के विकास कार्य या उससे सरोकार रखने का कोई खास उद्देश्य को प्रतिबिंबित नहीं किया जा रहा है, बल्कि नाम परिवर्तन के पीछे ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश किया जा रहा है, जो कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता है।  प्रचारित यह किया जा रहा है कि प्रयाग शहर को इलाहाबाद और अयोध्या शहर को फैजाबाद में बदला गया था, जबकि ऐसा नहीं था। सरकार जिस इलाहाबाद को प्रयागराज नाम दिया है, उसकी स्थापना किसी शहर के नामकरण के तौर पर नहीं था, बल्कि प्रयाग के बगल एक नया और आधुनिक शहर बसाया गया था। यही बात फैजाबाद के संदर्भ में भी कहा जा सकता है। अवध के नवाबों ने अयोध्या के बगल एक सुन्दर शहर बसाया और उसे फैजाबाद नाम दिया। ये शहर इतने अत्याधुनिक और लोगों की सुख-सुविधाओं से युक्त थे कि कालान्तर में प्रशासनिक कार्यक्रम इन्हीं शहरों से संचालित किये जाने लगे। इस सबके बावजूद कहीं से भी इन शहरों का दुष्प्रभाव पूर्व में स्थापित शहरों पर नहीं पड़ा, जबकि ये शहर जुड़वा शहर के नाम से विख्यात हुए। फैजाबाद होने के बाद भी अयोध्या, अयोध्या ही रहा और उसकी संस्कृति, सभ्यता और उससे संबंधित अन्य कोई भी ऐतिहासिकता से कोई छेड़छाड़ नहीं किया गया। प्रयाग के सिलसिले में भी यही बात कही जा सकती है। ऐसे में स्पष्टï है कि नाम परिवर्तन के पीछे जो दलील दी जा रही है, वह बेबुनियाद है, क्योंकि पहले के समय में किसी शहर से उसकी पहचान नहीं छीनी गयी थी, बल्कि उसे और सुन्दर और सुसज्जित किया गया था।
 नाम परिवर्तन से ऐसा लगता है कि यह मात्र एक राजनीतिक स्टंट है, जो आम लोगों को भावनात्मक रूप से अपने पक्ष में मोडऩे की कोशिश है। यह परंपरा निश्चित रूप से गलत परिपाटी को डालने की शुरूआत हो रही है, क्योंकि इसी परिपाटी के नक्शेकदम पर आने वाली सरकारें भी विभिन्न शहरों को अपने मनमुताबिक नाम देने में परहेज नहीं करेंगी। अगर सरकार की कुछ परिवर्तन करने की मंशा है तो इन शहरों की सीरत बदलनी चाहिये। वैसे तो तमाम शहर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अन्तर्गत चिन्हित किये गये है, लेकिन अभी तक कोई भी शहर स्मार्ट होता दिखा नहीं है। कायदे से कुछ ही शहरों को क्या, देश भर के सभी शहरों को स्मार्ट बनाया जाना चाहिये, जहां बिजली, पानी, सड़क, परिवहन, संचार आदि के साधनों को मुकम्मल व्यवस्था की जानी चाहिये। यह दुर्भाग्य ही है कि आजादी के 70 सालों के बीतने के बाद भी अभी तक देश भर में विद्युत आपूर्ति नहीं हो सकी है और 24 घंटे विद्युत आपूर्ति की बात तो स्वप्न में भी नहीं सोची जा सकती है। परिवहन व्यवस्था इस तरह की है कि सड़कों को गड्ढामुक्त करने के दावे करती न जाने कितनी सरकारें अपना कार्यकाल पूर्ण कर चली जाती है, लेकिन सड़कें गड्ढामुक्त नहीं हो पाती है। देश के प्रत्येक परिवार को घर, हर हाथ को रोजगार, किसानों को उनकी फसल का लाभकारी मूल्य मिलने जैसे बुनियादी मुद्दों पर जनआकांक्षाओं की पूर्ति बहुत दूर की बात हैं।
स्पष्टï है कि एक जनकल्याणकारी सरकार को नाम परिवर्तन के बजाये उपरोक्त बुनियादी मुद्दों का समाधान ढूंढने में पूरी ताकत लगानी चाहिये। तभी एक खुशहाल देश की परिकल्पना साकार हो सकती है।

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