Sunday, November 18, 2018

भारत में टेलीविजन का इतिहास

  दूरदर्शन का पहला प्रसारण पंद्रह सितम्बर 1559 को प्रयोगात्मक आधार पर आधे घण्टे के लिए शैक्षिक और विकास कार्यक्रमों के रूप में शुरू किया गया। उस समय दूरदर्शन का प्रसारण सप्ताह में सिर्फ दो दिन मंगलवार और शुक्रवार को एक-एक घंटे होता था। इसमें 40 मिनट जागरूकता के कार्यक्रम तथा बचे 20 मिनट में मनोरंजनात्मक कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते रहे; तब इसको ‘टेलीविजन इंडिया’ नाम दिया गया था बाद में 1975 में इसका हिन्दी नामकरण ‘दूरदर्शन’ नाम से किया गया। यह दूरदर्शन नाम इतना लोकप्रिय हुआ कि टीवी का हिंदी पर्याय बन गया।

शुरुआती दिनों में दिल्ली भर में 21 टेलीविजन सेट लगे थे और एक बड़ा ट्रांसमीटर लगा था। तब दिल्ली में लोग इसको कुतुहल और आश्चर्य के साथ देखते थे। इसके बाद दूरदर्शन ने धीरे धीरेअपने पैर पसारे और दिल्ली (1965); मुम्बई (1972); कोलकाता (1975), चेन्नई (1975) में इसके प्रसारण की शुरुआत हुई। शुरुआत में तो दूरदर्शन यानी टीवी दिल्ली और आसपास के कुछ क्षेत्रों में ही देखा जाता था। दूरदर्शन को देश भर के शहरों में पहुँचाने की शुरुआत 80 के दशक में हुई और इसकी वजह थी 1982 में दिल्ली में आयोजित किए जाने वाले एशियाई खेल थे। एशियाई खेलों के दिल्ली में होने का एक लाभ यह भी मिला कि श्वेत और श्याम दिखने वाला दूरदर्शन रंगीन हो गया था। फिर दूरदर्शन पर शुरु हुआ पारिवारिक कार्यक्रम हम लोग  जिसने लोकप्रियता के तमाम रेकॉर्ड तोड़ दिए। 1984 में देश के गाँव-गाँव में दूरदर्शन पहुँचानेके लिए देश में लगभग हर दिन एक ट्रांसमीटर लगाया गया। इसके बाद आया भारत और पाकिस्तान के विभाजन की कहानी पर बना बुनियाद जिसने विभाजन की त्रासदी को उस दौर की पीढ़ी से परिचित कराया। इस धारावाहिक के सभी किरदार आलोक नाथ (मास्टर जी), अनीता कंवर (लाजो जी), विनोद नागपाल, दिव्या सेठ घर घर में लोकप्रिय हो चुके थे। फिर तो एक के बाद एक बेहतरीन और शानदार धारवाहिकों ने दूरदर्शन को घर घर में पहचान दे दी। दूरदर्शन पर 1980 के दशक में प्रसारित होने वाले मालगुडी डेज़,ये जो है जिन्दगी, रजनी, ही मैन,वाहः जनाब, तमस, बुधवार और शुक्रवार को 8 बजे दिखाया जाने वाला फिल्मी गानों पर आधारित चित्रहार, भारत एक खोज, व्योमकेश बक्शी, विक्रम बैताल, टर्निंग प्वाइंट, अलिफ लैला, शाहरुख़ खान की फौजी, रामायण, महाभारत, देख भाई देख ने देश भर में अपना एक खास दर्शक वर्ग ही नहीं तैयार कर लिया था बल्कि गैर हिन्दी भाषी राज्यों में भी इन धारवाहिकों को ज़बर्दस्त लोकप्रियता मिली।
रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक धारावाहिकों ने तो सफलता के तमाम कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए थे, 1986 में शुरु हुए रामायण और इसके बाद शुरु हुए महाभारत के प्रसारण के दौरान रविवार को सुबह देश भर की सड़कों पर कर्फ्यू जैसा सन्नाटा पसर जाता था और लोग अपने महत्वपूर्ण कार्यक्रमों से लेकर अपनी यात्रा तक इस समय पर नहीं करते थे। रामायण की लोकप्रियता का आलम तो ये था कि लोग अपने घरों को साफ-सुथरा करके अगरबत्ती और दीपक जलाकर रामायण का इंतजार करते थे और एपिसोड के खत्म होने पर बकायदा प्रसाद बाँटी जाती थी।

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