Saturday, February 2, 2019

मोदी सरकार का बजट कितना लोक लुभावन ?

 केन्द्र की मोदी सरकार ने जब परंपरा के विपरीत लेखानुदान के बजाये अंतरिम बजट पेश किया, तभी यह पता चल गया था कि सरकार इस चुनावी वर्ष में लोक लुभावन वादों का पिटारा खोलने जा रही है। वित्तमंत्री पीयूष गोयल ने अपने बजट भाषण में इसकी कोशिश भी की, लेकिन जनता को वादों के भंवरजाल में भ्रमित करने से चूक गये। उनकी बजटीय गणित धरातल से कहीं विपरीत निकली। यही कारण है कि किसानों को अनुदान देने की योजना हो या टैक्सपेयर्स को छूट मिलने की घोषणा, बजट पेश करने के बाद सवालों के घेरे में खड़ी नजर आयीं।
वैसे तो यह मोदी सरकार का अंतरिम बजट कहा जा रहा है, यानी इसे पूरा करने या न करने का फैसला आने वाली सरकार के हाथ में होगा, परंतु बजट के तथ्यों में सरकार ने अगले 10 सालों तक के ख्वाब बुनने की कोशिश की है।
सरकार में वापसी के लिए किसानो से संबंधित योजनाएं पिछले कुछ वर्षों में ब्रह्मास्त्र साबित हो रही हैं। 2009 में यूपीए-2 की वापसी हो या 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा और अभी हाल ही में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस का सरकार में आना किसानों को लुभाने के महत्व को रेखांकित करता है। तीनों बार किसानों की कर्जमाफी सरकार में वापसी का मजबूत आधार बना। यही सोच मौजूदा बजट में दिखा और प्रतिवर्ष किसानों के खाते में 6000 रूपये किसान सम्मान निधि के बहाने दिये जाने का प्रावधान किया गया है। सरकार द्वारा इस रकम को तीन किश्तों में यानी रबी, खरीफ और जायद के लिए दो-दो हजार रूपये देने की योजना है। यह भले ही अंतरिम बजट हो, लेकिन सरकार इस घोषणा के माध्यम से वापसी की राह देखने की कोशिश कर रही है। इसके लिए पिछले दिसम्बर माह की एक किश्त किसानों के खाते में भेजने की तैयारी भी कर ली है। वैसे तो यह सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन सरकार किसानों की परिस्थिति को समझने में विफल रही। सरकार दो हजार देने की बात कर रही है, जबकि उससे कहीं अधिक नुकसान किसानों का मौसम की बेरूखी के चलते हो चुका है। जिस दो हजार रूपये से किसानों की मदद की बात कही जा रही है, उससे तो दो बोरी डीएपी खाद भी नहीं मिल पायेगी, जबकि दो हेक्टेयर खेत वाले किसानों को इससे कहीं अधिक खाद की आवश्यकता रहती है। बीज और कीटनाशक, जुताई और सिचाई का खर्चा सरकार की उम्मीदों से काफी अधिक आता है। एक बड़ी विसंगति यह भी है कि सरकार यह मदद किसानों के खाते में भेजेगी और हकीकत यह है कि बहुत से ऐसे किसान है, जिनके पास बैंक खाते ही नहीं हैं। अतः किसानों को राहत पहुंचाने के लिए बजट आंकलन करने में यह सरकार विफल रही है।
सरकार के बजट की दूसरी महत्वाकांक्षी घोषणा टैक्स पेयर्स को ढाई लाख के बजाये पांच लाख रूपये तक की आय में छूट देना है। सुनने में लोगों को अच्छा लगा, लेकिन बाद में यह भी सरकार की जुबानी बाजीगरी ही दिखी। वित्तमंत्री ने ढाई लाख से पांच लाख के बीच की आमदनी वालों को तो राहत दे दिया, लेकिन पांच लाख से ऊपर की आमदनी वालों के लिए टैक्स स्लैब ढाई लाख ही रखा। इससे बहुत सारे लोग जो सरकार से राहत की उम्मीद कर रहे थे, उनके लिए इस बजट में सरकार की झोली खाली ही रही। बुजुर्गों के लिए भी सरकार ने कोई दरियादिली नहीं दिखाई, जबकि सेवानिवृत्त होने के बाद उनकी दिक्कतें बढ़ जाती है, इलाज आदि के खर्चें बढ़ जाते हैं, ऐसे में सरकार के स्तर पर रिटायर्ड कर्मियों को कोई रियायत नहीं दिया जाना निराश कर गया।
बजट में यह घोषणा जरूर स्वागतयोग्य है कि अब लोगों को इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा। लोगों को उनका इनकम टैक्स रिटर्न विभाग द्वारा तैयार किया जायेगा। यदि ऐसा होता है तो लोगों के लिए काफी राहत की बात होगी, फिर भी इसमें सतर्कता की जरूरत होगी, ताकि किसी का गलत फाइल न भरने पाये।
सरकार ने निवेश में मिलने वाले ब्याज में इनकम टैक्स छूट देने की सीमा 40 हजार तय की है, जो काफी कम है, क्योंकि लोग बैंकों में लम्बे समय के लिए निवेश करते हैं। इसमें अंतिम समय में ब्याज की रकम अधिक मिलती है। इस पर टैक्स छूट को और अधिक बढ़ाया जाना चाहिये था, जो कि सरकार की तरफ से अनदेखा कर दिया गया।
पूरे बजट भाषण में और भी तमाम लोकलुभावन घोषणाएं की गई है। संसद में बार-बार मेज थपथपाये गये, लेकिन सत्य यह है कि वादों को हांडी पर बार-बार खीर नहीं पकाई जा सकती है। यदि ऐसा होता और चुनाव पूर्व बजट पर जनता विश्वास करती तो 2004 में वाजपेयी सरकार भी ना जाती और 2014 में मनमोहन सरकार भी बनी रहती। लोक लुभावन बजट पेशकर मोदी सरकार यह भूल गई कि वादों पर भरोसा पिछले वादों के मुकम्मल होने की बुनियाद पर बनता है।

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