Saturday, April 27, 2019

धौरहरा : इस बार नहीं मिलेगा ‘हमदर्दी’ वाले वोटों का सहारा

  • बीते चुनाव में मोदी लहर व पति की मौत की हमदर्दी पाकर सांसद बनीं थीं रेखा वर्मा
  • पांच सालों में करती रहीं विकास कार्यों की अनदेखी

बिपिन मिश्र 
लखीमपुर-खीरी। बीते लोकसभा चुनाव में धौरहरा सीट जीतना रेखा वर्मा के लिए ‘‘बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा’’ वाली कहावत से कम नहीं था। एक तरफ मोदी लहर का फायदा मिला तो दूसरी तरफ पति की मौत से हमदर्दी का लाभ। राजनीतिक अनुभव जीरो होने के बावजूद रेखा वर्मा को दोनों ही ‘कंडीशनों’ का लाभ मिला। पर अब स्थिति बिल्कुल बदल चुकी है। अब किसी को उनके विधवा हो जाने की न तो हमदर्दी रह गई है और न ही पांच साल में उनका कोई ऐसा  विकास कार्य है जो जनता को उनके पाले में कर सके। नतीजन जितिन जैसे दिग्गज के सामने इस बार वे बौनी नजर आ रही हैं। ऐेसे में उन्हें इस बार भी किसी चमत्कार की ही जरूरत महसूस हो रही है।

अपने ही कार्यकर्ता हैं नाराज

रेखा वर्मा की सबसे बड़ी मुश्किल उनके नाराज कार्यकर्ता हैं। दरअसल सांसद बनने के बाद रेखा वर्मा ने पार्टी कार्यकर्ताओं से दूरी बना ली और कुछ गिने-चुने खासमखास ही उनके ईर्द-गिर्द नजर आते रहे। ऐसे में उनकी जीत को सुनिश्चित करने के लिए दिन-रात एक कर देने वाले पार्टी कार्यकर्ता नाराज हुए। इसका नजारा भी तब सामने आया जब मैगलगंज की एक जनसभा में कार्यकर्ताओं ने दूरी बना ली और वहां भीड़ के नाम पर सैकड़ा-दो सैकड़ा लोग ही नजर आए।

बताने को भी नहीं है कुछ

चुनाव में रेखा वर्मा की सबसे बड़ी चुनौती उनका कार्यकाल ही है। पांच साल में रेखा वर्मा ने कोई भी ऐसा कार्य अपने क्षेत्र में नहीं कराया जिसे वो मिशाल के तौर पर जनता के सामने रख सकें। हाल तो यह है कि उनका गोद लिया गांव भी आदर्शता के पैमाने पर नहीं पहुंच सका। ऐसे में जनता के बीच पहुंचने पर अब वह विकास कार्य को आड़ में रखकर केवल विपक्षी दलों पर ही आरोप-प्रत्यारोप लगाकर व मोदी को देश की जरूरत बताकर ही वोटरों को पाले में करने की कोशिश में लगी हैं।

अब तो मोदी मैजिक का ही सहारा

रेखा वर्मा जिनके पास न दिखाने को कुछ है और न ही बताने को। फिर वह वोटरों को रिझायें तो कैसे। ऐसे में केवल एक ही हथकंडा उनके पास बचा है और वह है मोदी मैजिक। अपने जनसम्पर्क के दौरान वह आतंकवाद, भ्रष्टाचार, गठबंधन को ठगबंधन और कांगे्रस के 60 साल को लेकर ही कोसती रहती हैं। पर अपने पांच साल के विकास कार्य का जिक्र कहीं भी नहीं करतीं। उन्हें व उनके समर्थकों को अब उम्मीद है तो सिर्फ मोदी की लहर की जो शायद उनकी एमपी की कुर्सी बहाकर सांसद तक ले जा सकती है।

जितिन का न चुनकर गलती की थी

रेखा वर्मा की मुसीबत विकास कार्यों से शुरू हुई। उनकी अनदेखियों से कार्यकर्ता ही नहीं आम जनता भी नाराज है। सालभर बाद ही लोग कहने लगे कि उन्होंने जितिन प्रसाद को धौरहरा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व न देकर गलती की। इस बार भी लोगों को रूझान जितिन प्रसाद को प्रतिनिधित्व देने का कम और रेखा वर्मा को सबक सिखाने का ज्यादा दिखाई दे रहा है। यदि यह भावना क्षेत्र के मतदाताओं में घर कर गई तो रेखा वर्मा को इस बार संसद की रेखा पार करना मुश्किल हो जाएगी। 

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