बिपिन मिश्र
लखीमपुर-खीरी। 29 धौरहरा संसदीय क्षेत्र से 2014 में चुनी गई सांसद रेखा वर्मा जिन्हंे 2014 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी जितिन प्रसाद, बसपा के दाउद अहमद तथा सपा के आनन्द भदौरिया जैसे दिग्गज नेताआंे को धूल चटाकर कुल मतांे का 33.99 प्रतिशत मत हथिया कर अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बहुजन समाज पार्टी के दाउद को मात्र 25 हजार 575 मतांे से तब शिकस्त देने में सफल हो पाई थी, जब समाजवादी पार्टी के आनन्द भदौरिया भी चुनाव मैदान में थे, परन्तु इस बार परिस्थितियां प्रतिकूल है। क्योंकि सपा-बसपा गठबंधन से मात्र एक ही प्रत्याशी अरशद सिद्दीकि को चुनाव मैदान में उतारा गया है।
2014 के चुनाव में सपा और बसपा के प्रत्याशियांे के कुल मतांे के 44.02 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे, जिसमें वर्तमान चुनाव में भाजपा की श्रीमती रेखा वर्मा बहुत पीछे है, इसलिए ये कहा जाए कि श्रीमती रेखा वर्मा वर्तमान लोकसभा में लड़ाई से बाहर है, तो गलत नहीं होगा, देखा जाए तो इस चुनाव में गठबंधन के अरशद का मुकाबला सीधे-सीधे कांग्रेस के दिग्गज प्रत्याशी जितिन से है। सांसद रेखा वर्मा को 2014 के चुनाव में मोदी लहर का फायदा मिला है, तो वहीं साथ ही इनके पति की मौत से उपजी सहानुभूति की लहर से प्राप्त मतांे से इन्हंे संसद की चैखट तक पहंुचा दिया गया था। राजनैतिक दृष्टिकोण से परिपूर्ण अपरपक्व रेखा वर्मा ने सांसद चुने जाने के बाद अपने क्षेत्र में कोई ऐसा विकास कार्य नहीं करवाया जिससे क्षेत्र के मतदाताआंे ने महसूस किया हो और जिनके आधार पर मतदाता एक बार पुनः रेखा वर्मा के पक्ष अपना मतदान करें। परम्परागत भाजपाई मतांे के सहारे श्रीमती रेखा वर्मा की चुनावी गणित वर्तमान चुनाव से गड़बड़ा गई है।
धौरहरा संसदीय क्षेत्र के सैकड़ों गांव प्रतिवर्ष बाढ़ की मार से प्रभावित होते रहे, और उनसे प्रभावित हुई जनता नहर की पट्टियांे पर आज भी जीवन बिताने को मजबूर है। इस संसदीय क्षेत्र की शिक्षा, चिकित्सा एवं मार्ग व्यवस्था तथा परिवहन व्यवस्था पूर्ण रूप से ध्वस्त है। इस संसदीय क्षेत्र में वर्षों से बंद पड़े महोली चीनी मिल को सांसद रेखा वर्मा चलवा नहीं सकी, साथ ही इनके क्षेत्र में पड़ने वाली अवध शुगर मिल हरगांव, गोविन्द शुगर मिल ऐरा खमरिया के गन्ना किसनांे का भुगतान अभी तक नहीं हो सका है। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री की तमाम लाभभद्र योजनाआंे को श्रीमती वर्मा अपने संसदीय क्षेत्र के मतदाताआंे को मुहैयया नहीं करा सकी।
इनके संसदीय क्षेत्र में जबरदस्त कमीशनखोरी एवं ठेकेदारी के चलते प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, स्वच्छता मिशन के अन्तर्गत बनवाए गए शौचालय, ग्रामीण स्तर पर बनवाए गए मार्ग एवं विद्युत व्यवस्था, सौर्य उर्जा योजना पूर्ण रूप से फेल हो गई। जिससे क्षेत्र के मतदाताआंे का मन सांसद से खिन्न हो गया और अब इस चुनाव मंे यद्यपि देश के मतदाताओं पर मोदी लहर का असर है, परन्तु जनपद खीरी के इस संसदीय क्षेत्र के मतदाता भाजपा द्वारा चुने गए प्रत्याशी से संतुष्ट नहीं है। जिनके चलते श्रीमती वर्मा को असफलता का सामना चुनाव में करना पड़ सकता है। इस संसदीय क्षेत्र में अभी मुख्य रूप से कांग्रेस व गठबंधन के प्रत्याशियांे में कड़ी टक्कर पड़ रही है जबकि भाजपा प्रत्याशी को क्षेत्र के मतदाता चुनावी लड़ाई से बाहर मानते है। ये भी श्रीमती वर्मा का दुर्भाग्य है कि इस चुनाव में गत चुनावांे की तरह मोदी की चुनावी सभा पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है, अतः मोदी फैक्टर का लाभ पाने से भी श्रीमती वर्मा वचित रह जाएंगी। ऐसी परिस्थितियांे में इनकी विजयश्री मिलना बहुत मुश्किल है।
लखीमपुर-खीरी। 29 धौरहरा संसदीय क्षेत्र से 2014 में चुनी गई सांसद रेखा वर्मा जिन्हंे 2014 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी जितिन प्रसाद, बसपा के दाउद अहमद तथा सपा के आनन्द भदौरिया जैसे दिग्गज नेताआंे को धूल चटाकर कुल मतांे का 33.99 प्रतिशत मत हथिया कर अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बहुजन समाज पार्टी के दाउद को मात्र 25 हजार 575 मतांे से तब शिकस्त देने में सफल हो पाई थी, जब समाजवादी पार्टी के आनन्द भदौरिया भी चुनाव मैदान में थे, परन्तु इस बार परिस्थितियां प्रतिकूल है। क्योंकि सपा-बसपा गठबंधन से मात्र एक ही प्रत्याशी अरशद सिद्दीकि को चुनाव मैदान में उतारा गया है।
2014 के चुनाव में सपा और बसपा के प्रत्याशियांे के कुल मतांे के 44.02 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे, जिसमें वर्तमान चुनाव में भाजपा की श्रीमती रेखा वर्मा बहुत पीछे है, इसलिए ये कहा जाए कि श्रीमती रेखा वर्मा वर्तमान लोकसभा में लड़ाई से बाहर है, तो गलत नहीं होगा, देखा जाए तो इस चुनाव में गठबंधन के अरशद का मुकाबला सीधे-सीधे कांग्रेस के दिग्गज प्रत्याशी जितिन से है। सांसद रेखा वर्मा को 2014 के चुनाव में मोदी लहर का फायदा मिला है, तो वहीं साथ ही इनके पति की मौत से उपजी सहानुभूति की लहर से प्राप्त मतांे से इन्हंे संसद की चैखट तक पहंुचा दिया गया था। राजनैतिक दृष्टिकोण से परिपूर्ण अपरपक्व रेखा वर्मा ने सांसद चुने जाने के बाद अपने क्षेत्र में कोई ऐसा विकास कार्य नहीं करवाया जिससे क्षेत्र के मतदाताआंे ने महसूस किया हो और जिनके आधार पर मतदाता एक बार पुनः रेखा वर्मा के पक्ष अपना मतदान करें। परम्परागत भाजपाई मतांे के सहारे श्रीमती रेखा वर्मा की चुनावी गणित वर्तमान चुनाव से गड़बड़ा गई है।
धौरहरा संसदीय क्षेत्र के सैकड़ों गांव प्रतिवर्ष बाढ़ की मार से प्रभावित होते रहे, और उनसे प्रभावित हुई जनता नहर की पट्टियांे पर आज भी जीवन बिताने को मजबूर है। इस संसदीय क्षेत्र की शिक्षा, चिकित्सा एवं मार्ग व्यवस्था तथा परिवहन व्यवस्था पूर्ण रूप से ध्वस्त है। इस संसदीय क्षेत्र में वर्षों से बंद पड़े महोली चीनी मिल को सांसद रेखा वर्मा चलवा नहीं सकी, साथ ही इनके क्षेत्र में पड़ने वाली अवध शुगर मिल हरगांव, गोविन्द शुगर मिल ऐरा खमरिया के गन्ना किसनांे का भुगतान अभी तक नहीं हो सका है। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री की तमाम लाभभद्र योजनाआंे को श्रीमती वर्मा अपने संसदीय क्षेत्र के मतदाताआंे को मुहैयया नहीं करा सकी।
इनके संसदीय क्षेत्र में जबरदस्त कमीशनखोरी एवं ठेकेदारी के चलते प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, स्वच्छता मिशन के अन्तर्गत बनवाए गए शौचालय, ग्रामीण स्तर पर बनवाए गए मार्ग एवं विद्युत व्यवस्था, सौर्य उर्जा योजना पूर्ण रूप से फेल हो गई। जिससे क्षेत्र के मतदाताआंे का मन सांसद से खिन्न हो गया और अब इस चुनाव मंे यद्यपि देश के मतदाताओं पर मोदी लहर का असर है, परन्तु जनपद खीरी के इस संसदीय क्षेत्र के मतदाता भाजपा द्वारा चुने गए प्रत्याशी से संतुष्ट नहीं है। जिनके चलते श्रीमती वर्मा को असफलता का सामना चुनाव में करना पड़ सकता है। इस संसदीय क्षेत्र में अभी मुख्य रूप से कांग्रेस व गठबंधन के प्रत्याशियांे में कड़ी टक्कर पड़ रही है जबकि भाजपा प्रत्याशी को क्षेत्र के मतदाता चुनावी लड़ाई से बाहर मानते है। ये भी श्रीमती वर्मा का दुर्भाग्य है कि इस चुनाव में गत चुनावांे की तरह मोदी की चुनावी सभा पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है, अतः मोदी फैक्टर का लाभ पाने से भी श्रीमती वर्मा वचित रह जाएंगी। ऐसी परिस्थितियांे में इनकी विजयश्री मिलना बहुत मुश्किल है।
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