इस समय दुनिया की महाशक्तियों में शुमार अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार के साथ-साथ मिशन अंतरीक्ष पर भी रस्साकसी चल रही है। अमेरिका के जवाब में अभी हाल ही चीन ने भी अपना अंतरीक्ष यान तियानवेन-१ को मंगल ग्रह पर उतारा है। अमेरिका ने भी फरवरी माह में अपना यान परसीवरेंस रोवर उतार चुका है। इस होड़ में खाड़ी के देश यूएई ने भी अपना अंतरीक्ष यान होप प्रोव को इसी वर्ष कामयाबी के साथ मंगल पर उतार चुका है।
मंगल ग्रह हो या चांद पर पहुंचना या अंतरीक्ष के अन्य रहस्यों को समझना, इसके लिए हमारे वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं, लेकिन ये मिशन जब ज्ञानवद्र्घन के बजाये स्टेटस सिंबल बनने लगे तो इसे मानवता के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता है। दिक्कत इससे नहीं है कि ये मिशन नहीं लांच होने चाहिये, दिक्कत इस बात से है कि ऐसे मिशन बहुत खर्चीले होते हैं। एक-एक मिशन में इतने खर्चे आते हैं कि कई देशों के सालाना बजट उससे पूरे हो सकते हैं।
सोबियत रूस की बर्बादी में एक बड़ा कारण ऐसे मिशन का अंधाधुंध लांच किया जाना भी रहा। वैसे तो उसे कामयाबी कम ही मिली, लेकिन इस मद में उसने अपनी अर्थव्यवस्था तक को ताक पर रख दिया। रूस के बाद अब उसी राह पर चीन भी चल पड़ा है। हैरत तो इस बात की है इस होड़ में खाड़ी के नन्हें से देश यूएई ने भी अपने कदम बढ़ाये हैं। ऐसा लगता है कि ऐसे मिशन से अंतरीक्ष के रहस्यों को जानना कम और स्टेटस सिंबल ज्यादा बनता जा रहा है। भारत ने भी चंद्रयान-१ और चंद्रयान-२ के बाद मंगलयान-१ मिशन पर काम कर चुका है। उसे आशातीत सफलता भी मिली है।
यह सही है कि विज्ञान और तकनीकी किसी देश की तरक्की के परिचायक होते हैं। इसका उपयोग करके मानव जीवन को बेहतर किया जा सकता है। जो देश इस मामले में जितना आगे है वह विकास की राह में भी उतना ही आगे माना जाता है। अमेरिका और अब चीन की कामयाबी का राज भी इस क्षेत्र में मिलती सफलताओं में छिपा हुआ है। फिर भी समय की मांग है कि विज्ञान को मानवता की भलाई के लिए उपयोग किया जाये तो ज्यादा बेहतर होता। पिछले डेढ़ वर्ष से पूरी दुनिया कोरोना वायरस के कहर को झेल रही है। करोड़ों लोग इस वायरस के खूनी पंजों में जकड़कर अपनी जान गंवा चुके हैं। दुनिया भर में त्राहि-त्राहि हो चुकी है। इस वायरस ने यह भी हमें जता दिया कि मानवता की रक्षा के लिए हमारी तैयारियां अभी मुक्कमल नहीं है। अमेरिका और चीन भी इस महामारी की मार झेल रहे हैं। चीन से फैले इस वायरस के खतरे को समझा ही नहीं जा सका और जब तक इसके खतरे के बारे में समझा जाता, बहुत देर हो चुकी थी। अत: आपदा से सीख लेते हुए हमारा यह प्रयास होना चाहिये कि हम अपनी विज्ञान और तकनीकी ज्ञान का उपयोग लोगों की जीवन रक्षा और उनके जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिये।
ऐसा नहीं है कि अमेरिका और चीन में गरीब नहीं है या वहां हर तरफ खुशहाली ही खुशहाली है। भारत के मामले में यह स्थिति और भी विकट है। अभी कोरोना की दूसरी लहर में सबने जो मौत का तांडव देखा, वह आंख खोलने वाली होनी चाहिये। आयुषमान भारत और स्वास्थ्य बीमा समेत कई योजनाओं के होने के बावजूद लोगों को समय से इलाज नहीं मिल सका। यह कहना समयोचित होगा कि देश में बहुत से लोग वायरस से नहीं बल्कि इलाज न मिलने के कारण अपनी जान गंवा बैठे। अभी महीने भर पहले पूरे देश में हाहाकार मचा था। अस्पतालों के बाहर कोरोना वायरस के पीडि़तों की लम्बी कतार थी, लेकिन उन्हें बेड मयस्सर नहीं हो रहा था। तमाम दवाओं के साथ जरूरी चीजों की जमाखोरी और कालाबाजारी भी लोगों ने देखा।
ऐसी स्थिति से समय रहते बचा जा सकता था, यदि इस बारे में हमारी विज्ञान और तकनीकी का न्यायोचित ध्यान गया होता। हमें पहले से ही अंदेशा था, लेकिन हमने तैयारी नहीं की। हमें भी अंतरिक्ष मिशन बढ़ाना चाहिये, लेकिन वह शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सड़क, यातायात, संचार जैसी मूलभूत सुविधाओं की अनदेेखी के बिना पर नहीं होना चाहिये। हमारा ध्यान लोगों के जीवन स्तर सुधारने पर मुख्य रूप से होना चाहिये।
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