ईरान पर अमेरिकी फैसले से वैश्विक खतरे की आहट
पिछले दिनों एक तरफ ट्रम्प और किम की मुलाकात की खबर ने जो राहत पहुचाई थी, वह मध्य-पूर्व के महत्वपूर्ण देश ईरान के सम्बन्ध में परमाणु समझौते से एकतरफा अलग होने और ईरान पर पुन: आर्थिक व राजनयिक प्रतिबंध थोपने के अमेरिकी फैसले से बेचैनी में बदल दिया। अमेरिका का फैसला बुनियादी तौर पर इस्रायल की सुरक्षा नीतियों के अनुसार है। अमेरिका के एकतरफा फैसले से प्रभावित ईरान अब नई रणनीति बनाने में लगा है तो वैश्विक समुदाय भी दुविधा में है। सच यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प का यह फैसला विश्व को नये तनाव की आहट का संकेत देने वाला है। ज्ञात हो कि पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय में मध्य-पूर्व में शांति के लिए ईरान के साथ ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन, जर्मनी और यूरोपीय संघ आदि देशों ने जिनेवा में एक संयुक्त समझौता किया था। इस समझौते के तहत ईरान को परमाणु कार्यक्रमों को रोकना था तथा अन्य देशों द्वारा उसके साथ व्यापारिक और राजनयिक संबंधों को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया था। यह समझौता 2015 तक पश्चिमी देशों के साथ तनातनी के माहौल में कई दौर की वार्ताओं के बाद हुआ था। बाकी देश भी राजी थे, परन्तु अब नई परिस्थितियों में मध्य-पूर्व की शांति को अशांत करने के लिए ट्रम्प ने एक पत्थर उछाल दिया है। हालांकि यह थोड़े सुकून की बात है कि अमेरिका को छोड़ बाकी अन्य देशों ने ईरान से 2015 में हुए करार को जारी रखने के पक्ष में हैं। इस्रायल हर हाल में ईरान को ईराक की तरह बर्बाद करने के फिराक में है।
एकतरफा करार तोडऩे के फैसले के पीछे राष्ट्रपति ट्रम्प ने जो तर्क दिये हैं, वह ये कि ईरान एक कट्टïरपंथी देश है और सीरिया में वह लगातार युद्घ भड़काने का कार्य कर रहा है, जबकि सच यह नहीं है। सभी जानते हैं कि सीरिया में अशान्ति फैलाने के लिए सऊदी अरब समेंत खाड़ी की तमाम राजशाहियों ने मिलकर अपने आतंकी गुट भेजे थे। खाड़ी की राजशाहियों और अमेरिका को सीरिया की राष्ट्रपति बशर उल असद पसंद नहीं है और उन्हें अपदस्थ करने के लिए तमाम बागी संगठन वहां पैदा किये गये, जिनकी लगाम अमेरिका और उनके मित्र देशों के हाथ में थी। ये देश अपने मकसद में कामयाब भी हो जाते, लेकिन इसी बीच राष्ट्रपति असद की अनुनय के बाद रूस और ईरान सीरिया के पक्ष में आ खड़े हुए। इससे अमेरिका चिढ़ा हुआ है और राष्ट्रपति ट्रम्प का यह ताजा फैसला ईरान को घेरने की तैयारी का है। हालांकि राष्ट्रपति ट्रम्प की हठधर्मिता वाले फैसले से वैश्विक राजनीति का समीकरण भी बदलेगा। रूस और चीन हमेशा से ईरान के पक्ष में थे, जबकि ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और यूरोपीय संघ के देशों का ईरान के साथ समझौता जारी रखने के फैसले से यह प्रतीत होने लगा है कि अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बदलाव स्पष्ट है। हमेशा से अमेरिका के पिछलग्गू रहे पश्चिमी देशों का ताजा रूख यह स्पष्ट करता है कि अब उनके लिए ट्रम्प की हां में हां मिलाना कठिन है। ऐसे में ट्रम्प का फैसला समझ से परे है। यह भी जिक्र करना जरूरी हो जाता है कि ट्रम्प द्वारा समझौता तोडऩे के अगले दिन इसराइल ने सीरिया में ईरान के सैन्य बेस पर हवाई हमले किये। इससे ऐसा लगता है कि अमेरिका, इसराइल के साथ मिलकर नई खिचड़ी पकाने में लगा है, जो वैश्विक अशान्ति के खतरे की आहट है।
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