Wednesday, September 12, 2018

विरोध के लिए बन्द का आयोजन अनुचित

  आज प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने भारत बंद का आयोजन किया है। देश भर के २१ प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस बंद के समर्थन में लामबंंदी की है। यह बताता है कि राजनीतिक स्तर पर केन्द्र में शासक दल भाजपा के क्रियाकलापों से सम्पूर्ण विपक्षी दल खफा हैं और वे चाहते है कि सरकार की जो जनविरोधी नीतियां हैं, उनसे देश की जनता को मुक्ति मिले। हालांकि इस बन्द के मुद्दे पर तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी की बात को भी अनसुनी नहीं की जा सकती। उनका मानना है कि विरोध के लिए 'बन्दÓ का तरीका वास्तव में उचित नहीं है, क्योंकि इससे पूरा देश के विकास की रफ्तार को बे्रक लग जाता है। बन्द जैसे माहौल तमाम आपातकालीन सुविधाओं में भी दिक्कत आती है। लोगबाग परेशान होते हैं। अत: विरोध के लिए बन्द के बजाये अन्य तरीके आजमाये जाने चाहिये। उन्होंने विरोध के मुद्दों वाजिब मानते हुए कहाकि देश में बढ़़ती महंगाई, रूपये का गिरता मूल्य, बढ़ती बेरोजगारी और पेट्रोलियम पदार्थों के आसमान छूते दामों ने आम जनजीवन को दुदर्शाग्रस्त बना दिया है। इस पर लगाम तो लगनी ही चाहिये, परन्तु उसके लिये देश को 'बन्दÓ किया जाना अनुचित है। ममता का विचार इस संदर्भ में और सही प्रतीत होता है, जब किसी विरोध प्रदर्शन के एवज में होने वाले वाले बन्द 'हिंसकÓ रूप धारण कर लेते हैं। अभी एससी-एसटी ऐक्ट को लेकर पिछले अप्रैल माह लगातार हुुए दो हिंसक बन्द से पूरा देश कराह उठा था।
  डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में 'अराजकता का व्याकरणÓ नाम से प्रसिद्ध अपने संबोधन में कहा था कि 'अगर भारत में लोकतंत्र बरकरार रखना है न केवल प्रपत्र में, बल्कि वास्तव में भी, तो हमें क्या करना चाहिए? मेरे विचार से सबसे पहले हमें अपने सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए संवैधानिक तरीकों पर अडिग रहना होगा। इसका मतलब हमें हिंसक क्रांति के तरीके को त्यागना होगा। ब्रिटिश हुकूमत के दौर में जब कोई भी संवैधानिक रास्ता नहीं खुला था, तब इस प्रकार के असंवैधानिक तरीकों के पक्ष में तर्क थे, परंतु जब संवैधानिक रास्ते खुले हैं तो इस तरह के असंवैधानिक तरीकों की कोई तार्किकता नहीं रह जाती है, क्योंकि ये तरीके और कुछ नहीं, बल्कि अराजकता का व्याकरण हैं जिसे हम जितनी शीघ्रता से त्याग दें उतना ही हमारे लिए बेहतर है।Ó
पिछले दिनों बुलाये गये 'भारत बंदÓ में हुई हिंसा और अराजकता डॉ. आंबेडकर द्वारा व्यक्त की गई आशंका की पुष्टि करती है। भारत में आंदोलनों और विरोध प्रदर्शन का लंबा सिलसिला रहा है, लेकिन अपने व्यापक स्तर के बावजूद उनका कभी हिंसक इतिहास नहीं रहा है।
ऐसे बन्द के दौरान काफी एहतियात बरतने की जरूरत होती है और जब राजनीतिक दलों की भागीदारी हो तो और भी, क्योंकि यह बन्द जननेताओं द्वारा संचालित किया जाता है। इसलिए ऐसे बन्द से होने वाली जनहानियों की जिम्मेदारी इन जननेताओं को लेनी चाहिये। यदि जनता को किसी कारणवश कष्टï पहुंचता है तो जननेताओं को इस पर विचार करना जरूरी हो जाता है।
यह भी देखने को मिल रहा है कि कुछ अराजक तत्व ऐसे बन्द का इंतजार कर रहे होते हैं और तनातनी के माहौल में अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए हिंसा को बढ़ावा देने का कार्य करते हैं। इस तरह के बन्द वर्तमाल माहौल में और भी संवेनशील हो गये है, जब सोशल मीडिया जैसे वाट्सअप, फेसबुक आदि के माध्यम से संपादित फोटोग्राफ्स और वीडियो के माध्यम से जनभावनाओं को भड़काकर माहौल को और अधिक हिंसक कर दिया जाता है।
इस तरह के बन्द से पूरे देश की सुरक्षा व्यवस्था ताक पर रख दी जाती है। सुरक्षा में लगे जवानों के साथ-साथ तमाम संसाधन इससे उत्पन्न स्थितियों से निपटने के लिए लगाने पड़ते हैं। दूसरी तरफ सरकार को भी समझना चाहिये कि जिन मुद्दों को लेकर बन्द का आह्वïान किया जाता है, यदि वे जनहित के हैं तो ऐसी स्थिति के आने का इंतजार नहीं होना चाहिये। देश के लोग ठोस आश्वासन चाहते हैं। जनहित के मुद्दों पर अमल होना आवश्यक है। 

No comments:

Post a Comment

Please share your views

सिर्फ 7,154 रुपये में घर लाएं ये शानदार कार

  36Kmpl का बेहतरीन माइलेज, मिलेगे ग़जब के फीचर्स! | Best Budget Car in India 2024 In Hindi b est Budget Car in India: कई बार हम सभी बजट के क...