पाकिस्तान के नौसिखुआ प्रधानमंत्री ने अपने देश का मजाक बना रखा है। वह हर जगह यह कहते फिर रहे हैं कि उनकी देश की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है और वह अपने कर्जों पर लौटाने वाली किस्त अदा करने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसा वह देश भी नहीं कहते, जिनकी आर्थिक स्थिति दिवालियापन के पास हो, जबकि पाकिस्तान अच्छी खासी हालत में है। यदि यह पिछले शासन को बदनाम करने के लिए कहा जा रहा है तो इसका कुप्रभाव उन पर भी पड़ेगा।
प्रधानमंत्री इमरान खान भीख की झोली लेकर सऊदी निवेश के लिए सऊदी अरब गये थे, जबकि सऊदी अरब की हालत स्वयं खस्ता है। पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद सऊदी अरब के निकटतम मित्र भी उससे दूरी बना रहे हैं। अमेरिका जो सऊदी अरब का संरक्षक है, उसने भी सऊदी अरब से कन्नी काटना शुरू कर दिया है। अमेरिकी निवेशकों ने भी सऊदी बैठक में हिस्सा नहीं लिया। ऐसी हालत में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का सऊदी अरब जाने से पाकिस्तान की विश्वसनीयता घटी है। पाकिस्तान को सऊदी अरब ने तीन बिलियन डालर की मदद अवश्य दी और इससे पाकिस्तान अपने कर्जों के आदायगी में सक्षम होगा। इसी सप्ताह प्रधानमंत्री इमरान खान चीन भी जा रहे हैं और वहां भी उनका लक्ष्य चीन से आर्थिक मदद लेना है। इसके अलावा वह अन्तर्राष्टï्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज लेने का प्रयास कर रहे हैं। आईएमएफ से शायद कर्ज नहीं मिल सके, क्योंकि वहां अमेरिका का वर्चस्व है और वह पाकिस्तान को कर्ज देने में दिलचस्पी नहीं रखता। फिर भी पाकिस्तान को इस समय जिन 6 बिलियन डालर की आवश्यकता थी, वह सऊदी अरब और चीन से पूरी होती नजर आ रही है।
पाकिस्तान में कोई सरकार हो, वह अपने संसाधनों से अधिक खर्च करती रही है। पाकिस्तान एक विकासशील देश है और उसको अपने नागरिकों के सुख सुविधा पर अपने संसाधनों के अनुसार खर्च करना चाहिये। सच्चाई यह है कि पाकिस्तान एक तरफ तो अपने से 10 गुना बड़ी आर्थिक शक्ति भारत का मुकाबला करना चाहता है, दूसरी तरफ अफगानिस्तान में अपना पैसा जाया कर रहा है। इन बातों के अलावा पाकिस्तानी नागरिकों को अपने संसाधनों के अन्दर जीवन व्यतीत करने का हुनर सीखना चाहिये। कर्ज लेकर घी पीना कोई अक्लमंदी की बात नहीं है, लेकिन इसके लिए सरकारों को अपने नागरिकों को तैयार करना पड़ेगा और सच्चाई बतानी पड़ेगी।
प्रधानमंत्री इमरान खान ने सरकार बनाते ही ऐसे काम शुरू किये, जिससे अर्थव्यवस्था पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पडऩे वाला था। प्रधानमंत्री कार्यालय को अन्य कल्याणकारी कार्यों के लिए खाली करना, प्रधानमंत्री कार्यालय की गाडिय़ों को बेचना आदि से कुछ अनभिज्ञ नागरिकों के बीच उनकी छवि जरूर अच्छी हुई, परन्तु इससे अर्थव्यवस्था को कोई फायदा नहीं हुआ। असल कार्य दक्षिण एशियाई क्षेत्र में शान्ति स्थापना और रक्षा पर खर्च कम करना था, जिस पर इमरान खान का ध्यान नहीं है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर शुरू में ही एक ऐसा कटाक्ष किया, जो राज्याध्यक्षों के बीच नहीं होता। इमरान खान के संबंध ईरान से भी सुधरते नहीं नजर आते, जो उनके लिए परेशानी का कारण होगा। ईरान-पाकिस्तान सीमा पर एक ईरानी चौकी से कुछ सुरक्षा गार्डों का अपहरण हुआ, जिससे ईरान में काफी असंतोष पैदा हुआ। अभी तक पाकिस्तानी शासन इस पर कोई ठोस कार्रवाई करने में सफल नहीं हुआ।
प्रधानमंत्री इमरान खान को यह एहसास होना चाहिये कि पाकिस्तान जैसे देश को चलाना क्रिकेट टीम की कप्तानी से अधिक मुश्किल है।
प्रधानमंत्री इमरान खान भीख की झोली लेकर सऊदी निवेश के लिए सऊदी अरब गये थे, जबकि सऊदी अरब की हालत स्वयं खस्ता है। पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद सऊदी अरब के निकटतम मित्र भी उससे दूरी बना रहे हैं। अमेरिका जो सऊदी अरब का संरक्षक है, उसने भी सऊदी अरब से कन्नी काटना शुरू कर दिया है। अमेरिकी निवेशकों ने भी सऊदी बैठक में हिस्सा नहीं लिया। ऐसी हालत में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का सऊदी अरब जाने से पाकिस्तान की विश्वसनीयता घटी है। पाकिस्तान को सऊदी अरब ने तीन बिलियन डालर की मदद अवश्य दी और इससे पाकिस्तान अपने कर्जों के आदायगी में सक्षम होगा। इसी सप्ताह प्रधानमंत्री इमरान खान चीन भी जा रहे हैं और वहां भी उनका लक्ष्य चीन से आर्थिक मदद लेना है। इसके अलावा वह अन्तर्राष्टï्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज लेने का प्रयास कर रहे हैं। आईएमएफ से शायद कर्ज नहीं मिल सके, क्योंकि वहां अमेरिका का वर्चस्व है और वह पाकिस्तान को कर्ज देने में दिलचस्पी नहीं रखता। फिर भी पाकिस्तान को इस समय जिन 6 बिलियन डालर की आवश्यकता थी, वह सऊदी अरब और चीन से पूरी होती नजर आ रही है।
पाकिस्तान में कोई सरकार हो, वह अपने संसाधनों से अधिक खर्च करती रही है। पाकिस्तान एक विकासशील देश है और उसको अपने नागरिकों के सुख सुविधा पर अपने संसाधनों के अनुसार खर्च करना चाहिये। सच्चाई यह है कि पाकिस्तान एक तरफ तो अपने से 10 गुना बड़ी आर्थिक शक्ति भारत का मुकाबला करना चाहता है, दूसरी तरफ अफगानिस्तान में अपना पैसा जाया कर रहा है। इन बातों के अलावा पाकिस्तानी नागरिकों को अपने संसाधनों के अन्दर जीवन व्यतीत करने का हुनर सीखना चाहिये। कर्ज लेकर घी पीना कोई अक्लमंदी की बात नहीं है, लेकिन इसके लिए सरकारों को अपने नागरिकों को तैयार करना पड़ेगा और सच्चाई बतानी पड़ेगी।
प्रधानमंत्री इमरान खान ने सरकार बनाते ही ऐसे काम शुरू किये, जिससे अर्थव्यवस्था पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पडऩे वाला था। प्रधानमंत्री कार्यालय को अन्य कल्याणकारी कार्यों के लिए खाली करना, प्रधानमंत्री कार्यालय की गाडिय़ों को बेचना आदि से कुछ अनभिज्ञ नागरिकों के बीच उनकी छवि जरूर अच्छी हुई, परन्तु इससे अर्थव्यवस्था को कोई फायदा नहीं हुआ। असल कार्य दक्षिण एशियाई क्षेत्र में शान्ति स्थापना और रक्षा पर खर्च कम करना था, जिस पर इमरान खान का ध्यान नहीं है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर शुरू में ही एक ऐसा कटाक्ष किया, जो राज्याध्यक्षों के बीच नहीं होता। इमरान खान के संबंध ईरान से भी सुधरते नहीं नजर आते, जो उनके लिए परेशानी का कारण होगा। ईरान-पाकिस्तान सीमा पर एक ईरानी चौकी से कुछ सुरक्षा गार्डों का अपहरण हुआ, जिससे ईरान में काफी असंतोष पैदा हुआ। अभी तक पाकिस्तानी शासन इस पर कोई ठोस कार्रवाई करने में सफल नहीं हुआ।
प्रधानमंत्री इमरान खान को यह एहसास होना चाहिये कि पाकिस्तान जैसे देश को चलाना क्रिकेट टीम की कप्तानी से अधिक मुश्किल है।
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