भारतीय किसान यूनियन की अगुआई में यूपी, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब और उत्तर भारत के कुछ अन्य राज्यों के किसानों की हरिद्वार से किसान क्रांति यात्रा पर सरकार की सख्ती समझ से परे थी। भारत के भाग्यविधाता कहे जाने वाले किसानों पर सरकार द्वारा आंसू गैस के गोले, वाटर कैनन से पानी की बौछार और लाठीचार्ज को दुनिया ने देखा। जब पूरा देश 'जय जवान, जय किसानÓ का नारा देने वाले प्रधानमंत्री शास्त्री जी की जयंती मना रहा था, उसी दिन किसान दिल्ली की सीमा पर पुलिस की लाठियां खा रहा था। यह सही है कि किसानों का आंदोलन कुछ समय के लिए रूक गया है, लेकिन पुलिसिया कार्रवाई से होने वाले घाव अभी उसके हरे हैं। ताज्जुब होता है कि किसानों की मांग कोई गैर वाजिब नहीं थी। किसान स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करने की मांग कर रहे थे। इसका वादा प्रधानमंत्री मोदी ने भी चुनाव के दौरान किया था, अब उसे पूरा करने की बारी है तो सरकार ने मुंह फेर लिया। किसानों का आंदोलन भी कोई हिंसक नहीं था, लेकिन सरकारी बर्बरता समझ से परे की बात है।
सरकार समझती है कि एमएसपी यानी न्यूनतम लागत मूल्य बढ़ाने से मसला हल हो जायेगा, यह सही नहीं है। इस मसले के जड़ में जाना होगा। किसान की आमदनी बढऩी चाहिये। किसानों के इनपुट्स के बारे में जानना जरूरी है। आखिर उसकी आमदनी कैसे बढ़ सकती है, इस पर अमल करने की जरूरत है। आज भी उत्तर प्रदेश में दो किसानों ने खुदकुशी की है। किसान बहुत हताशा में है और सरकार के पास कोई कार्यनीति नहीं है। सरकारी स्तर पर केवल वादे पर वादे किये जा रहे है। हालत यह है कि किसानों का अपने जमीन पर भी अधिकार नहीं गया। वह अपनी जमीन पर अपना मकान नहीं बना सकता है और न ही मिट्टी निकाल सकता है। जबकि उसकी जमीन औने-पौने दामों पर सरकार द्वारा विकास के नाम पर मनमर्जी से कारपोरेट हाउसेज को दी जा रही है। किसानों की फसल की सुरक्षा के बारे में भी सरकार ने नहीं सोचा है।
देश भर के किसान पिछले कुछ समय से अलग-अलग दायरों में अपनी मांगों को लेकर लगातार आंदोलन कर रहे हैं, पर आश्वासनों के बावजूद उनकी परेशानियां दूर नहीं हो पा रही हैं। पिछले साल मध्य प्रदेश के मंदसौर में ऐसे ही एक आंदोलन के दौरान पुलिस ने किसानों पर फायरिंग की, जिसमें 6 किसानों की मौत हो गई थी और कई बुरी तरह घायल हुए थे। मार्च 2018 में महाराष्ट्र के 30 हजार किसान नासिक से पांच दिन लंबा पैदल सफर करके मुंबई की विधानसभा का घेराव करने पहुंचे। उसके बाद तमिलनाडु के किसानों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया जो कई दिनों तक चला।
सभी जानते हैं कि खेती अभी भारत में घाटे का सौदा है। बढ़ती लागत और घटती आमदनी के चलते देश भर के किसानों का जीना मुहाल है, लिहाजा बार-बार उन्हें सड़क पर उतरना पड़ रहा है। किसान क्रांति यात्रा में किसान उपज की कीमत तय करने के लिए स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू करने तथा किसानों को पेंशन और मृत किसानों को घर देने की भी मांग कर रहे हैं। उन्होंने डीजल व बिजली के दाम कम करने को कहा है और 10 साल पुराने ट्रैक्टर बंद करने के खिलाफ आवाज उठाई है। तकरीबन यही मांगें पिछले आंदोलनों की भी रही हैं। कल हुई सरकार से वार्ता के बाद किसानों की १५ मांगों में से सात मान ली गई और आठ पर विचार करने का वादा किया गया है। सरकार को चाहिए कि वे किसानों से सहज वार्ता में जाएं, उनसे ठोस वादे करें और ईमानदारी से उन्हें पूरा भी करें। कमोवेश अब तक किसान आंदोलन के बाद से ऐसा नहीं हुआ है। इस समझौते के बाद भी यदि कार्रवाई नहीं हुई तो फिर किसान आंदोलन को बाध्य होंगे, क्योंकि यह उनकी और उनके परिवार की आजीविका से जुड़ा मामला है।
सरकार समझती है कि एमएसपी यानी न्यूनतम लागत मूल्य बढ़ाने से मसला हल हो जायेगा, यह सही नहीं है। इस मसले के जड़ में जाना होगा। किसान की आमदनी बढऩी चाहिये। किसानों के इनपुट्स के बारे में जानना जरूरी है। आखिर उसकी आमदनी कैसे बढ़ सकती है, इस पर अमल करने की जरूरत है। आज भी उत्तर प्रदेश में दो किसानों ने खुदकुशी की है। किसान बहुत हताशा में है और सरकार के पास कोई कार्यनीति नहीं है। सरकारी स्तर पर केवल वादे पर वादे किये जा रहे है। हालत यह है कि किसानों का अपने जमीन पर भी अधिकार नहीं गया। वह अपनी जमीन पर अपना मकान नहीं बना सकता है और न ही मिट्टी निकाल सकता है। जबकि उसकी जमीन औने-पौने दामों पर सरकार द्वारा विकास के नाम पर मनमर्जी से कारपोरेट हाउसेज को दी जा रही है। किसानों की फसल की सुरक्षा के बारे में भी सरकार ने नहीं सोचा है।
देश भर के किसान पिछले कुछ समय से अलग-अलग दायरों में अपनी मांगों को लेकर लगातार आंदोलन कर रहे हैं, पर आश्वासनों के बावजूद उनकी परेशानियां दूर नहीं हो पा रही हैं। पिछले साल मध्य प्रदेश के मंदसौर में ऐसे ही एक आंदोलन के दौरान पुलिस ने किसानों पर फायरिंग की, जिसमें 6 किसानों की मौत हो गई थी और कई बुरी तरह घायल हुए थे। मार्च 2018 में महाराष्ट्र के 30 हजार किसान नासिक से पांच दिन लंबा पैदल सफर करके मुंबई की विधानसभा का घेराव करने पहुंचे। उसके बाद तमिलनाडु के किसानों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया जो कई दिनों तक चला।
सभी जानते हैं कि खेती अभी भारत में घाटे का सौदा है। बढ़ती लागत और घटती आमदनी के चलते देश भर के किसानों का जीना मुहाल है, लिहाजा बार-बार उन्हें सड़क पर उतरना पड़ रहा है। किसान क्रांति यात्रा में किसान उपज की कीमत तय करने के लिए स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू करने तथा किसानों को पेंशन और मृत किसानों को घर देने की भी मांग कर रहे हैं। उन्होंने डीजल व बिजली के दाम कम करने को कहा है और 10 साल पुराने ट्रैक्टर बंद करने के खिलाफ आवाज उठाई है। तकरीबन यही मांगें पिछले आंदोलनों की भी रही हैं। कल हुई सरकार से वार्ता के बाद किसानों की १५ मांगों में से सात मान ली गई और आठ पर विचार करने का वादा किया गया है। सरकार को चाहिए कि वे किसानों से सहज वार्ता में जाएं, उनसे ठोस वादे करें और ईमानदारी से उन्हें पूरा भी करें। कमोवेश अब तक किसान आंदोलन के बाद से ऐसा नहीं हुआ है। इस समझौते के बाद भी यदि कार्रवाई नहीं हुई तो फिर किसान आंदोलन को बाध्य होंगे, क्योंकि यह उनकी और उनके परिवार की आजीविका से जुड़ा मामला है।
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