आज गांधी जयंती है। मोहनदास करमचंद गांधी के 150 वें जयंती वर्ष में भारत को स्वच्छता अभियान के रूप में मना रहा है। सचमुच में आज गांधी जी बहुत याद आ रहे हैं। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से उनकी प्रासंगिकता वर्तमान में अधिक है। आजाद भारत के स्वप्नद्रष्टïा रहे गांधी जी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। जब पूरे देश में लव जिहाद, मॉब लिंचिंग, बीफ, ऊंच-नीच, जातिवाद, संप्रदायवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद जैसे विभिन्न विषयों को लेकर समाज में एक-दूसरे के विरूद्घ तलवारें खिंच चुकी हैं तो गांधी जी की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। क्योंकि वह गांधी जी ही थे, जिन्होंने पूरे भारत को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया था। 'ईश्वर, अल्ला तेरो नाम, सबको सन्मति दें भगवानÓ के माध्यम से धर्म व सम्प्रदाय से उठकर लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाया था। जातिवाद के भेदभाव को वह आजादी से पूर्व ही समझते थे, इसी कारण 'चमारÓ जाति के लोगों को 'हरिजनÓ नाम दिया। हिन्दी, गुजराती और अंग्रेजी में हरिजन पत्रिका का संपादन कर देश में दबे-कुचले दलित वर्ग को मुख्यधारा में लाने का कार्य भी गांधी जी की भावपूर्ण याद दिलाता है। ऊंच-नीच के भेदभाव को वह अभिशाप समझते थे। शायद यही कारण था कि उन्होंने सबको एक साथ लेने का कार्य किया। उनके आंदोलनों में 'मालिक और मजदूरÓ एक साथ कदमताल करते दिखते थे। सच में उस गुलामी के दौर में भी 'गांधी युगÓ किसी 'रामराज्यÓ से कम नहीं था।
वर्ष 1915 में दक्षिण अफ्रीका से गांधी जी की वापसी से पहले ही इस देश में आजादी की अलख जग चुकी थी, लेकिन गांधी ने उसे एक सर्वथा नया आयाम दिया। दक्षिण अफ्रीका के उनके अनुभव उपयोगी तो थे, मगर पर्याप्त नहीं थे। व्यापक विविधताओं, कदम-कदम पर मौजूद विरोधाभासों और टकराव की आशंकाओं वाले इस देश में ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता से निर्णायक संघर्ष के लिए पुराने नुस्खों में बदलाव और कुछ नए फार्मूलों की आवश्यकता थी। गांधी जी के सामने उपमहाद्वीपीय चुनौतियां थीं। केरल से लेकर कश्मीर और सरहदी सूबे तक फैले जनगण का मिजाज अलग-अलग था। यहां भूखी और निराशा से भरी जनता थी, सामंतवाद था, नवोदित पूंजीवाद था, समाज में हिंदू-मुस्लिम मतभेद थे और इन सबके ऊपर अंग्रेज का अत्याचार था। अतीत की विफलताएं थीं, 1916 का लखनऊ समझौता था और जरा-जरा-सी बात पर होने वाले सांप्रदायिक दंगे थे। इसके अतिरिक्त खुद हिंदू समाज में भी खौफनाक और विभाजक मतभेद मौजूद थे।
भारत में अली बंधुओं-मोहम्मद और शौकत-के नेतृत्व में वर्ष 1920 में खिलाफत कमेटी बनी। इस मुद्दे की निरर्थकता गांधी जी भी भली-भांति समझते थे। लेकिन उनके लिए यह हिंदू-मुस्लिम एकता के एजेंडे को आगे बढ़ाने का एक स्वर्णिम अवसर था। खिलाफत आंदोलन को गांधी जी का साथ मिलने के बाद मौलाना मोहम्मद अली ने यह एलान किया, 'पैगंबर के बाद मैं गांधी जी के आदेश का पालन करना अपना फर्ज मानता हूं।Ó
यह था गांधी जी का व्यक्तित्व। वह जिससे भी मिलते थे, उसे अपना बना लेते थे। उन्होंने दुनिया के सामने यह साबित किया कि बड़ी से बड़ी जंग को भी बगैर हिंसा के जीता जा सकता है। कानून की ऊंची डिग्री हासिल करने वाले गांधी जी ने हमेशा सादगी को ही जीवन का आधार बनाया। वह चरखा कातने जैसे उद्यम को अपनाकर दुनिया को यह समझाने का कार्य किया कि आजीविका के लिए कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता और आत्मनिर्भरता हर व्यक्ति के जीवन का मुकाम होना चाहिये। वह महिला सशक्तीकरण के भी पैरोकार थे। उन्होंने अपने आंदोलनों में महिलाओं की भूमिका का भी पूरा ख्याल रखा। ऐसे व्यक्तित्व के धनी गांधी जी आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई। सारा देश अपने राष्ट्रपिता को श्रद्घांजलि अर्पित कर रहा है।
वर्ष 1915 में दक्षिण अफ्रीका से गांधी जी की वापसी से पहले ही इस देश में आजादी की अलख जग चुकी थी, लेकिन गांधी ने उसे एक सर्वथा नया आयाम दिया। दक्षिण अफ्रीका के उनके अनुभव उपयोगी तो थे, मगर पर्याप्त नहीं थे। व्यापक विविधताओं, कदम-कदम पर मौजूद विरोधाभासों और टकराव की आशंकाओं वाले इस देश में ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता से निर्णायक संघर्ष के लिए पुराने नुस्खों में बदलाव और कुछ नए फार्मूलों की आवश्यकता थी। गांधी जी के सामने उपमहाद्वीपीय चुनौतियां थीं। केरल से लेकर कश्मीर और सरहदी सूबे तक फैले जनगण का मिजाज अलग-अलग था। यहां भूखी और निराशा से भरी जनता थी, सामंतवाद था, नवोदित पूंजीवाद था, समाज में हिंदू-मुस्लिम मतभेद थे और इन सबके ऊपर अंग्रेज का अत्याचार था। अतीत की विफलताएं थीं, 1916 का लखनऊ समझौता था और जरा-जरा-सी बात पर होने वाले सांप्रदायिक दंगे थे। इसके अतिरिक्त खुद हिंदू समाज में भी खौफनाक और विभाजक मतभेद मौजूद थे।
भारत में अली बंधुओं-मोहम्मद और शौकत-के नेतृत्व में वर्ष 1920 में खिलाफत कमेटी बनी। इस मुद्दे की निरर्थकता गांधी जी भी भली-भांति समझते थे। लेकिन उनके लिए यह हिंदू-मुस्लिम एकता के एजेंडे को आगे बढ़ाने का एक स्वर्णिम अवसर था। खिलाफत आंदोलन को गांधी जी का साथ मिलने के बाद मौलाना मोहम्मद अली ने यह एलान किया, 'पैगंबर के बाद मैं गांधी जी के आदेश का पालन करना अपना फर्ज मानता हूं।Ó
यह था गांधी जी का व्यक्तित्व। वह जिससे भी मिलते थे, उसे अपना बना लेते थे। उन्होंने दुनिया के सामने यह साबित किया कि बड़ी से बड़ी जंग को भी बगैर हिंसा के जीता जा सकता है। कानून की ऊंची डिग्री हासिल करने वाले गांधी जी ने हमेशा सादगी को ही जीवन का आधार बनाया। वह चरखा कातने जैसे उद्यम को अपनाकर दुनिया को यह समझाने का कार्य किया कि आजीविका के लिए कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता और आत्मनिर्भरता हर व्यक्ति के जीवन का मुकाम होना चाहिये। वह महिला सशक्तीकरण के भी पैरोकार थे। उन्होंने अपने आंदोलनों में महिलाओं की भूमिका का भी पूरा ख्याल रखा। ऐसे व्यक्तित्व के धनी गांधी जी आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई। सारा देश अपने राष्ट्रपिता को श्रद्घांजलि अर्पित कर रहा है।
No comments:
Post a Comment
Please share your views