Pulwama Attack Par Opinion
कहते है कि अच्छा पड़ोस न होना सबसे ज्यादा तकलीफदेह साबित होता है। पुलवामा में भारतीय जवानों पर हुए आतंकी हमले के बाद यह बात भारत के संदर्भ में सच साबित हो रही है। अभी सप्ताह भर भी नहीं हुए थे, भारत सरकार द्वारा बजट पेश करते हुए तमाम नई उपलब्धियों का बखान करते हुए अगले १० वर्षों के लिए विकास का खाका खींंचा गया था। तब यह कोई नहीं जानता था कि आने वाले समय में क्या होने वाला है। पुलवामा में आतंकी हमले ने हमारे सपनों को चूर किया है। भारत-चीन के संदर्भ में यह बात पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि तमाम उपलब्धियों के बावजूद पड़ोसी का मिजाज किसी के सुकून में ज्यादा मायने रखता है।
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पुलवामा में गुरुवार को हुए अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले ने भारत को तो हिलाया ही है, दुनिया के कई देश भी इस हमले से सकते में हैं। अब यह किसी से छिपा नहीं रह गया है कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान है, भले पाकिस्तान सरकार इसका खंडन कर रही हो। पुलवामा के इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली है और जैश का सरगना मौलाना मसूद अजहर पाकिस्तान में ही रहता है। इस आतंकी संगठन का संचालन परदे के पीछे से पाकिस्तान सरकार और आइएसआइ ही करती है। दुनिया के ज्यादातर देश पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित कर चुके हैं। यह सब जानते-बूझते भी चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा है और उसकी आतंकवादी नीतियों और गतिविधियों को खुल कर समर्थन दे रहा है। संकट की इस घड़ी में भारत को एक बड़ा झटका यह लगा है कि चीन ने एक बार फिर मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने से साफ इंकार कर दिया है। हैरान करने वाली बात यह है कि एक तरफ तो चीन भारत के साथ दोस्ती का दम भरता है और दूसरी ओर भारत के कट्टर दुश्मन मसूद अजहर को वह आतंकवादी मानने को तैयार नहीं है। हालांकि पुलवामा हमले की चीन ने निंदा की है, लेकिन यह उसका ढोंग भर है।
पुलवामा आतंकी हमले से नए आतंकवाद की बू
भले चीन वैश्विक मंचों से कहता रहे कि वह आतंकवाद के खिलाफ और भारत के साथ है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। मसूद अजहर के बचाव में चीन का उतरना कोई नई बात नहीं है। जब-जब सुरक्षा परिषद में मसूद अजहर का मामला गया, परिषद के सदस्य देश भारत के साथ खड़े नजर आए और इस पक्ष में रहे कि मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया जाना चाहिए। लेकिन ऐन वक्त पर चीन ने ऐसे अड़ंगे लगाए कि भारत के प्रयास विफल होते गए। सबसे पहले अप्रैल, 2016 में चीन ने सुरक्षा परिषद की प्रतिबंधित आतंकियों की सूची में मसूद अजहर का नाम डालने की भारत की कोशिश को तकनीकी आधार पर रुकवा दिया था। फिर उसी साल अक्तूबर में मसूद को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने की भारत की अपील पर बाधा पैदा की। तीसरी बार फरवरी, 2017 में मसूद अजहर पर पाबंदी के अमेरिका के प्रयास को वीटो कर दिया। जाहिर है, उसके ये सारे प्रयास भारत विरोधी हैं।
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भारत लंबे समय से इस कोशिश में लगा है कि मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया जाए ताकि इसके जरिए उस पर शिकंजा कसा जा सके और उसके भारत प्रत्यर्पण के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाया जा सके। मसूद अजहर ने 2001 में भारत की संसद पर हमले को अंजाम दिया था, उसके बाद पठानकोट और उड़ी हमले की साजिश भी उसी ने रची और उसके संगठन जैश ने ही इन हमलों को अंजाम दिया। वह पाक अधिकृत कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद सहित पाकिस्तान के शहरों में भारत के खिलाफ रैलियां निकालता रहा है और जहर उगलता रहा है। यह वही अजहर मसूद है, जिसे 1994 में श्रीनगर में गिरफ्तार किया गया था और 1999 में कंधार अपहरण कांड के बाद विमान यात्रियों की सुरक्षित रिहाई के बदले उसे भारत सरकार ने छोड़ा था। यह सब जानते हुए भी चीन अगर मसूद अजहर के साथ खड़ा है और उसे बचा रहा है तो ऐसे में भारत के साथ उसकी दोस्ती संदेह के घेरे में आ जाती है।
कहते है कि अच्छा पड़ोस न होना सबसे ज्यादा तकलीफदेह साबित होता है। पुलवामा में भारतीय जवानों पर हुए आतंकी हमले के बाद यह बात भारत के संदर्भ में सच साबित हो रही है। अभी सप्ताह भर भी नहीं हुए थे, भारत सरकार द्वारा बजट पेश करते हुए तमाम नई उपलब्धियों का बखान करते हुए अगले १० वर्षों के लिए विकास का खाका खींंचा गया था। तब यह कोई नहीं जानता था कि आने वाले समय में क्या होने वाला है। पुलवामा में आतंकी हमले ने हमारे सपनों को चूर किया है। भारत-चीन के संदर्भ में यह बात पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि तमाम उपलब्धियों के बावजूद पड़ोसी का मिजाज किसी के सुकून में ज्यादा मायने रखता है।
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पुलवामा में गुरुवार को हुए अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले ने भारत को तो हिलाया ही है, दुनिया के कई देश भी इस हमले से सकते में हैं। अब यह किसी से छिपा नहीं रह गया है कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान है, भले पाकिस्तान सरकार इसका खंडन कर रही हो। पुलवामा के इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली है और जैश का सरगना मौलाना मसूद अजहर पाकिस्तान में ही रहता है। इस आतंकी संगठन का संचालन परदे के पीछे से पाकिस्तान सरकार और आइएसआइ ही करती है। दुनिया के ज्यादातर देश पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित कर चुके हैं। यह सब जानते-बूझते भी चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा है और उसकी आतंकवादी नीतियों और गतिविधियों को खुल कर समर्थन दे रहा है। संकट की इस घड़ी में भारत को एक बड़ा झटका यह लगा है कि चीन ने एक बार फिर मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने से साफ इंकार कर दिया है। हैरान करने वाली बात यह है कि एक तरफ तो चीन भारत के साथ दोस्ती का दम भरता है और दूसरी ओर भारत के कट्टर दुश्मन मसूद अजहर को वह आतंकवादी मानने को तैयार नहीं है। हालांकि पुलवामा हमले की चीन ने निंदा की है, लेकिन यह उसका ढोंग भर है।
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भले चीन वैश्विक मंचों से कहता रहे कि वह आतंकवाद के खिलाफ और भारत के साथ है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। मसूद अजहर के बचाव में चीन का उतरना कोई नई बात नहीं है। जब-जब सुरक्षा परिषद में मसूद अजहर का मामला गया, परिषद के सदस्य देश भारत के साथ खड़े नजर आए और इस पक्ष में रहे कि मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया जाना चाहिए। लेकिन ऐन वक्त पर चीन ने ऐसे अड़ंगे लगाए कि भारत के प्रयास विफल होते गए। सबसे पहले अप्रैल, 2016 में चीन ने सुरक्षा परिषद की प्रतिबंधित आतंकियों की सूची में मसूद अजहर का नाम डालने की भारत की कोशिश को तकनीकी आधार पर रुकवा दिया था। फिर उसी साल अक्तूबर में मसूद को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने की भारत की अपील पर बाधा पैदा की। तीसरी बार फरवरी, 2017 में मसूद अजहर पर पाबंदी के अमेरिका के प्रयास को वीटो कर दिया। जाहिर है, उसके ये सारे प्रयास भारत विरोधी हैं।
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भारत लंबे समय से इस कोशिश में लगा है कि मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया जाए ताकि इसके जरिए उस पर शिकंजा कसा जा सके और उसके भारत प्रत्यर्पण के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाया जा सके। मसूद अजहर ने 2001 में भारत की संसद पर हमले को अंजाम दिया था, उसके बाद पठानकोट और उड़ी हमले की साजिश भी उसी ने रची और उसके संगठन जैश ने ही इन हमलों को अंजाम दिया। वह पाक अधिकृत कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद सहित पाकिस्तान के शहरों में भारत के खिलाफ रैलियां निकालता रहा है और जहर उगलता रहा है। यह वही अजहर मसूद है, जिसे 1994 में श्रीनगर में गिरफ्तार किया गया था और 1999 में कंधार अपहरण कांड के बाद विमान यात्रियों की सुरक्षित रिहाई के बदले उसे भारत सरकार ने छोड़ा था। यह सब जानते हुए भी चीन अगर मसूद अजहर के साथ खड़ा है और उसे बचा रहा है तो ऐसे में भारत के साथ उसकी दोस्ती संदेह के घेरे में आ जाती है।
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