Monday, March 4, 2019

सोशल मीडिया का बढ़ता दुरुपयोग

   पिछले पांच सालों में एक बात जो बड़ी तेजी से बदली है, वह सोशल मीडिया तक आम लोगों की पहुंच। पहले लोग इससे परहेज किया करते थे। हमारे पूर्ववर्ती पीढ़ी की सोच थी कि सोशल मीडिया पर पोर्न जैसी हानिकारक सामग्रियों को देखकर बच्चे भटक सकते हैं। परन्तु अब वह बच्चे बड़े हो गये हैं और बंदिशों में जीने वाले बच्चे अब स्वच्छंद हैं, साथ ही मोबाइल फोन पर सोशल मीडिया की दस्तक और सस्ते व तेज डेटा स्पीड ने इस नई विधा को बहुत तेजी हर घर क्या हर हाथ में पहुंचा दिया है। इसके दुरूपयोग भी सामने आने लगे हैं। भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के बीच में सोशल मीडिया की गतिविधियां बहुत ही नकारात्मक देखने को मिली हैं। ऐसे में दिल्ली और एनसीआर के कई स्कूलों ने भारत-पाक तनाव के मद्देनजर सोशल मीडिया पर चल रहे नफरत भरे अभियानों के दुष्प्रभावों से बच्चों को बचाने के लिए खास पहल की है। उन्होंने पैरंट्स से कहा है कि वे बच्चों से इस बारे में बात करें। अगर बच्चों के मन में कोई सवाल है तो वे उसका जवाब जरूर दें और उन्हें विस्तार से उस संबंध में जानकारी दें। संभव है बच्चे सोशल मीडिया पर प्रचारित किसी गलत तथ्य को सही मान बैठे हों। अभिभावकों को उन्हें सचाई से अवगत कराना चाहिए। मुमकिन है किसी दुष्प्रचार से किसी बच्चे के भीतर डर बैठ गया हो, हताशा पैदा हो गई हो या किसी समुदाय के प्रति नफरत का भाव भर गया हो। ऐसे में अभिभावक को चाहिए कि वह बच्चे में विवेकपूर्ण दृष्टि पैदा करें। कई स्कूलों में तो शिक्षक भी यह काम कर रहे हैं। कुछ स्कूलों ने तो बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रहने को कहा है।
हालांकि यह संभव नहीं है। आज के बच्चे इसी के साथ बड़े हुए हैं। वह इसी के शिल्प में संवाद करते हैं। लेकिन वे इसके खेल को नहीं समझ पाते। उनका कोमल मन झूठ और सच में आसानी से अंतर नहीं कर पाता और वह सोशल मीडिया की किसी कपोलकल्पना को अपनी धारणा बना लेता है। पुलवामा में आतंकी हमला होने के बाद सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लैटफॉर्म पर नफरत भरी टिप्पणियां और तस्वीरें आने लगीं। भारत के एयर स्ट्राइक के बाद तो इसकी बाढ़ सी आ गई। न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि अपने ही देश के कुछ समुदायों के प्रति जहर उगलने का सिलसिला शुरू हो गया जो अब भी नहीं थमा है।
इस क्रम में न सिर्फ मर्यादा की सीमाएं लांघी गईं बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों की भी धज्जियां उड़ाई गई हैं। सरकार के बयानों को भी तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। कई गड़े मुर्दे उखाड़े गए। राजनेताओं का मजाक उड़ाया गया। उनकी अभद्र तस्वीरें डाली गईं। अगर किसी ने युद्ध के विरोध में कुछ कहा या भारत-पाक दोस्ती की बात की तो उसके खिलाफ गालियों की बौछार शुरू हो गई। ऐसा लगता है कि अनपढ़ और कुंठितों की एक फौज सोशल मीडिया पर कुंडली मारकर बैठ गई है। लेकिन ऐसे लोगों के अलावा सोशल मीडिया पर एक तबका ऐसा भी है जो अपने निहित स्वार्थ के लिए जहर के बीज बो रहा है। दुर्भाग्य से पढ़े-लिखे समझदार लोग भी उनकी बातों में आ जाते हैं। लेकिन नई पीढ़ी को उनसे बचाना होगा।
आज ऐसे नागरिक तैयार करने की जरूरत है जो विवेकवान हों, जिनके पास वैज्ञानिक नजरिया हो और जो तर्क की कसौटी पर हर तथ्य को परखते हों। सोशल मीडिया पर नियंत्रण की कोशिशें कई स्तरों पर चल रही हैं। पर सबसे ज्यादा जरूरी है जागरूकता फैलाने की। इस दृष्टि से दिल्ली और एनसीआर के कुछ स्कूलों की पहल महत्वपूर्ण है। देश के अन्य स्कूलों को इस दिशा में सोचना चाहिए। 

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