Wednesday, March 13, 2019

महमूदाबाद में अब नहीं सुनाई पड़ता है पक्षियों का कलरव

  • पक्षियों की प्रजातियां सिर्फ किताबों में ही रह जाएंगी। बहुत समय पहले लोग,,,
  • मोबाइल टावरों की किरणें पक्षियों के लिए खतरनाक
  • कुछ संस्थाओं ने इनकी साभ-संभाल का उठाया है बीड़ा

हरिओम कश्यप 
महमूदाबाद (सीतापुर)।  महमूदाबाद  एक समय था जब दिन चढ़ने से पहले ही पक्षियों की चीं-चीं की आवाजें आनी शुरू हो जाती थीं। सुबह के समय सो रहे कई लोगों को इन पक्षियों की आवाजें ही उठाती थीं, परन्तु बदलते जमाने के साथ-साथ इन पक्षियों की आवाजें भी मध्यम पड़ गई हैं। पहले वाली रौनकें नहीं रहीं क्योंकि इन पक्षियों की संख्या पहले से काफी कम हो गई है। गोरिया, बुलबुल, तोता, घुग्गियों, कबूतरों, गिटारों व चिडिय़ों आदि पक्षियों की संख्या आधे से भी कम रह गई है।
आने वाले समय में पक्षियों की प्रजातियां सिर्फ किताबों में ही रह जाएंगी। बहुत समय पहले लोग पक्षियों के लिए घरों में दाना डालते थे और इन पक्षियों के लिए प्रबंध करते थे। अब तो लोग पक्षियों को सिर्फ तब ही तलाशते हैं, जब कोई पूछने वाले या कोई पाखंडी बाबा कह देता कि भाई पंछियों को चोगा डालने से आपका दुख कट जाएगा। पहले पीपल व बोहड़ आदि की संख्या बहुत ज्यादा होती थी और इन बड़े वृक्षों पर दर्जनों की संख्या में पक्षी अपने घोंसले बनाकर रहते थे। ये पक्षी घोंसले में ही अंडे देते थे, लेकिन आजकल पेड़ों की संख्या कम होने के साथ ही पक्षियों की गिनती दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। कुछ पक्षियों की प्रजातियां तो लुप्त होने के कगार पर हैं। पहले कच्चे घरों में गौरैया रहती थी लेकिन अब कच्चे घर ही नही रह गए धीरे धीरे यह प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है!
मोबाइल टावरों की किरणें पक्षियों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रही हैं और इन टावरों कारण कई पक्षियों का नुक्सान हो रहा है। इसके साथ बहुत-से स्थानों पर बिजली सप्लाई वाली लाइनें गुजर रही हैं और इन बिजली की तारों में कई पक्षी आकर फंस जाते हैं तथा करंट लगने से पक्षियों की मौत हो जाती है। वहीं दूसरी ओर भले ही जिला प्रशासन द्वारा चाइना डोर के घातक नतीजों को देखते इस पर पूर्ण पाबंदी लगाई हुई है, परंतु पिछले समय दौरान इस घातक डोर की चपेट में आने कारण अब तक अनेक पक्षी अपनी जान गंवा चुके हैं।
कुछ संस्थाएं ऐसी हैं, जिनके नुमाइंदों को हर तरह के पक्षियों से प्यार है। इस कारणपक्षियों को संभालने का उन्होंने बीड़ा उठाया हुआ है। ऐसी संस्थाएं लोगों को घोंसले बांट रही हैं। पानी पिलाने के लिए मिट्टी के बर्तन दिए जा रहे हैं। ऐसी संस्थाओं के प्रयास को सलाम है और अन्य लोगों को भी अपनी सोच बदलनी चाहिए। पक्षियों की संभाल बहुत कम लोग करते हैं। कुछ लोग पक्षियों को पिंजरे में बंद करके अपने घरों में टांग देते हैं, परन्तु फिर इनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता, जबकि सभी मनुष्यों को पक्षियों की तरफ ध्यान देना चाहिए ताकि इनकी संख्या और न घटे सके।

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