बिपिन मिश्र
लखीमपुर-खीरी। उत्तर प्रदेश के 29 संसदीय क्षेत्र धौरहरा में कांग्रेस भाजपा को समेटने में जोर-शोर से लगी हुई है। एक ओर जहां मोदी फैक्टर देश के दक्षिणी व उत्तरी तथा पूर्वी राज्यांे में भाजपा का कमल तीव्र गति से प्रलव्वित होने की जबरदस्त संभावना बनती जा रही है वहीं देश के उत्तरी राज्यांे में जो भाजपा के गढ़ माने जाते है, कमल मुरझा रहा है।
उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र से भाजपा की सांसद दूसरी बार 29 धौरहरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारी गई है परन्तु आसार कुछ ऐसे नजर आ रहे है कि उक्त संसदीय क्षेत्र से भाजपा के कमल को कांग्रेस का पंजा खिलने नहीं देगा। साथ ही महागठबंधन की ओर से चुनाव लड़ रहे पूर्व इलियास आजमी के पुत्र अरशद सिद्दीकि यदि चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है परन्तु भाजपा के कमल को खिलने देने में बाधक है। श्री सिद्दीकि मुम्बई से आकर धौरहरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे है, इनका कोई व्यक्तिगत जनाधार नहीं है परन्तु यह धनवर्षा करके मतदाताआंे की फसल लहलहाने का प्रयास कर रहे है। जिससे आंशिक रूप से इनकी धनवर्षा से लहलहाई गठबंधन की फसल से भाजपा का कमल मुरझाएगा तथा कांग्रेस को बल मिलेगा। 29 संसदीय क्षेत्र धौरहरा से वर्ष 2014 के चुनाव में बसपा छोड़ कर भाजपा में आए अरूण वर्मा की मौत का शिकार हो गए थे, तथा वंशवाद की खिलाफत करने भाजपा ने गृहस्थ महिला रेखा वर्मा को जो अरूण वर्मा की पत्नी है, को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। वर्ष 2014 में मोदी की सुनामी और पति की मृत्यु से उपजी सहानुभूति से प्रभावित मतदाताओं ने श्रीमती रेखा वर्मा को लोकसभा तो पहंुचा दिया था, लोकसभा सदस्य बनने के बाद श्रीमती वर्मा संसदीय क्षेत्र की जनता की समस्याआंे पर कोई ध्यान नहीं दिया। जबकि कांग्रेस के पराजित युवा प्रत्याशी जितिन प्रसाद निरंतर जनता की समस्याआंे के लिए संघर्षरत रहे और अपने सीमित संसाधनांे के माध्यम से जनता का भरपूर सहयोग किया, जिससे उक्त संसदीय क्षेत्र की जनता आज भी जितिन के पीछे चल रही है।
यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि तराई क्षेत्र का धौरहरा संसदीय निरंतर बाढ़ की मार से प्रभावित होता रहा तथा क्षेत्र के किसानांे की हजारांे एकड़ जमीन घाघरा व शारदा में बाढ़ का शिकार होकर उक्त नदियांे में समा गई जिससे गरीब मतदाताआंे के पास न तो रहने के लिए आवासीय व्यवस्था है न ही अन्य उपजाने के लिए भूमि ही बची है। यहां के मतदाता अभी भी विस्थापित नहीं किए जा सके। अतः ऐसे पीड़ित मतदाता आज भी जितिन प्रसाद से बड़ी अपेक्षाएं रखते है जिसका खामियाजा भाजपा प्रत्याशी रेखा वर्मा को भुगतना पड़ सकता है। यदि मोदी फैक्टर जिसने पूरे देश के मतदाताआंे को प्रकाशित किया है यहां भी मतदाताआंे के दिल और दिमाग पर छाया हुआ है उसी के सहारे रेखा वर्मा दूसरी बार संसद की देहरी लांघ सकती है अन्यथा इन्हंे हार का सामना करना पड़ सकता है।
लखीमपुर-खीरी। उत्तर प्रदेश के 29 संसदीय क्षेत्र धौरहरा में कांग्रेस भाजपा को समेटने में जोर-शोर से लगी हुई है। एक ओर जहां मोदी फैक्टर देश के दक्षिणी व उत्तरी तथा पूर्वी राज्यांे में भाजपा का कमल तीव्र गति से प्रलव्वित होने की जबरदस्त संभावना बनती जा रही है वहीं देश के उत्तरी राज्यांे में जो भाजपा के गढ़ माने जाते है, कमल मुरझा रहा है।
उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र से भाजपा की सांसद दूसरी बार 29 धौरहरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारी गई है परन्तु आसार कुछ ऐसे नजर आ रहे है कि उक्त संसदीय क्षेत्र से भाजपा के कमल को कांग्रेस का पंजा खिलने नहीं देगा। साथ ही महागठबंधन की ओर से चुनाव लड़ रहे पूर्व इलियास आजमी के पुत्र अरशद सिद्दीकि यदि चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है परन्तु भाजपा के कमल को खिलने देने में बाधक है। श्री सिद्दीकि मुम्बई से आकर धौरहरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे है, इनका कोई व्यक्तिगत जनाधार नहीं है परन्तु यह धनवर्षा करके मतदाताआंे की फसल लहलहाने का प्रयास कर रहे है। जिससे आंशिक रूप से इनकी धनवर्षा से लहलहाई गठबंधन की फसल से भाजपा का कमल मुरझाएगा तथा कांग्रेस को बल मिलेगा। 29 संसदीय क्षेत्र धौरहरा से वर्ष 2014 के चुनाव में बसपा छोड़ कर भाजपा में आए अरूण वर्मा की मौत का शिकार हो गए थे, तथा वंशवाद की खिलाफत करने भाजपा ने गृहस्थ महिला रेखा वर्मा को जो अरूण वर्मा की पत्नी है, को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। वर्ष 2014 में मोदी की सुनामी और पति की मृत्यु से उपजी सहानुभूति से प्रभावित मतदाताओं ने श्रीमती रेखा वर्मा को लोकसभा तो पहंुचा दिया था, लोकसभा सदस्य बनने के बाद श्रीमती वर्मा संसदीय क्षेत्र की जनता की समस्याआंे पर कोई ध्यान नहीं दिया। जबकि कांग्रेस के पराजित युवा प्रत्याशी जितिन प्रसाद निरंतर जनता की समस्याआंे के लिए संघर्षरत रहे और अपने सीमित संसाधनांे के माध्यम से जनता का भरपूर सहयोग किया, जिससे उक्त संसदीय क्षेत्र की जनता आज भी जितिन के पीछे चल रही है।
यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि तराई क्षेत्र का धौरहरा संसदीय निरंतर बाढ़ की मार से प्रभावित होता रहा तथा क्षेत्र के किसानांे की हजारांे एकड़ जमीन घाघरा व शारदा में बाढ़ का शिकार होकर उक्त नदियांे में समा गई जिससे गरीब मतदाताआंे के पास न तो रहने के लिए आवासीय व्यवस्था है न ही अन्य उपजाने के लिए भूमि ही बची है। यहां के मतदाता अभी भी विस्थापित नहीं किए जा सके। अतः ऐसे पीड़ित मतदाता आज भी जितिन प्रसाद से बड़ी अपेक्षाएं रखते है जिसका खामियाजा भाजपा प्रत्याशी रेखा वर्मा को भुगतना पड़ सकता है। यदि मोदी फैक्टर जिसने पूरे देश के मतदाताआंे को प्रकाशित किया है यहां भी मतदाताआंे के दिल और दिमाग पर छाया हुआ है उसी के सहारे रेखा वर्मा दूसरी बार संसद की देहरी लांघ सकती है अन्यथा इन्हंे हार का सामना करना पड़ सकता है।
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