प्रो. मंज़ूर अहमद
2015 में भारत सरकार ने नागा नेताओं से एक समझौता किया था और समझौते के बुनियादी (FRAMEWORK AGREEMENT) ढांचा पर सहमति हुई थी। इस समझौते की बुनियादी ढांचे पर भी बातचीत होनी थी। यह बातचीत किन विन्दुओं पर होनी थी, इसे सरकार ने उजागर नहीं किया था। तब श्री आर.एन. रवि भारत सरकार और नागा नेताओं के बीच समझौते में वार्ताकार थे और अब वह नागालैण्ड के राज्यपाल भी हैं। यह बातचीत 31 अक्टूबर तक पूर्ण हो जानी थी, परन्तु किन्हीं कारणों से प्रधानमंत्री की सलाह पर यह तिथि आगे बढ़ा दी गई है।
नागा नेताओं की मांग है कि उनके प्रस्तावित नागालिम अर्थात नागालैण्ड गणराज्य में पड़ोसी राज्यों के उन हिस्सों को भी शामिल किया जाये, जहां नागा आबादी रहती है विशेषकर मणिपुर राज्य के एक नागा बहूल हिस्से को शामिल करने की मांग है।
बातचीत के बुनयिादी ढांचे में कुछ शब्द ऐसे थे, जिनसे भ्रम उत्पन्न होना अवश्यंभावी था। एक शब्द साझा सम्प्रभुता (SHARED SOVEREIGNTY) और दूसरा शब्द नागालैण्ड के लिए एक मिनी संसद बनाये जाने की थी। साथ ही एक अलग से संविधान और झण्डे की बात भी की गई थी। अब यही मांगे बातचीत में रोड़ा उत्पन्न कर रही हैं।
नागालैण्ड का विद्रोह कोई नया नहीं है। 1888 में जब अंग्रेजों ने देश के इस हिस्से पर अपना आधिपत्य जमाया था, उस समय से ही नागा अपने को आजाद करने का प्रयास करते रहे हैं। साइमन कमीशन जब भारत आया था, तब भी नागाओं ने अपने को भारत संघ से अलग रखने की मांग की थी। नागा नेता फीजो के नेतृत्व में उनका भारत सरकार के विरूद्घ विद्रोह चलता रहा था। 1947 में नागा नेताओं ने भारत की आजादी से एक दिन पहले अपनी आजादी की घोषणा की थी।
जम्मू और कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद नागा नेताओं में केन्द्रीय सरकार के प्रति शंका पैदा हुई है। एक नागा नेता ने यह बयान भी दिया है कि सरकार नागालैण्ड को कश्मीर न समझे। नागा नेताओं के पास उनकी अपनी फौज है और दशकों तक भारतीय सेना से लडऩे का तजुर्बा भी है। ऐसी हालत में राज्यपाल आर.एन. रवि का यह कहना कि नागालैण्ड के मामले में केन्द्र सरकार सख्ती से अपना फैसला लागू करेगी, एक नये विद्रोह का आरम्भ विन्दु हो सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए बातचीत की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की बात कही है। उनका यह निर्णय पूर्वोत्तर में हमारे हित में है।
2015 में भारत सरकार ने नागा नेताओं से एक समझौता किया था और समझौते के बुनियादी (FRAMEWORK AGREEMENT) ढांचा पर सहमति हुई थी। इस समझौते की बुनियादी ढांचे पर भी बातचीत होनी थी। यह बातचीत किन विन्दुओं पर होनी थी, इसे सरकार ने उजागर नहीं किया था। तब श्री आर.एन. रवि भारत सरकार और नागा नेताओं के बीच समझौते में वार्ताकार थे और अब वह नागालैण्ड के राज्यपाल भी हैं। यह बातचीत 31 अक्टूबर तक पूर्ण हो जानी थी, परन्तु किन्हीं कारणों से प्रधानमंत्री की सलाह पर यह तिथि आगे बढ़ा दी गई है।
नागा नेताओं की मांग है कि उनके प्रस्तावित नागालिम अर्थात नागालैण्ड गणराज्य में पड़ोसी राज्यों के उन हिस्सों को भी शामिल किया जाये, जहां नागा आबादी रहती है विशेषकर मणिपुर राज्य के एक नागा बहूल हिस्से को शामिल करने की मांग है।
बातचीत के बुनयिादी ढांचे में कुछ शब्द ऐसे थे, जिनसे भ्रम उत्पन्न होना अवश्यंभावी था। एक शब्द साझा सम्प्रभुता (SHARED SOVEREIGNTY) और दूसरा शब्द नागालैण्ड के लिए एक मिनी संसद बनाये जाने की थी। साथ ही एक अलग से संविधान और झण्डे की बात भी की गई थी। अब यही मांगे बातचीत में रोड़ा उत्पन्न कर रही हैं।
नागालैण्ड का विद्रोह कोई नया नहीं है। 1888 में जब अंग्रेजों ने देश के इस हिस्से पर अपना आधिपत्य जमाया था, उस समय से ही नागा अपने को आजाद करने का प्रयास करते रहे हैं। साइमन कमीशन जब भारत आया था, तब भी नागाओं ने अपने को भारत संघ से अलग रखने की मांग की थी। नागा नेता फीजो के नेतृत्व में उनका भारत सरकार के विरूद्घ विद्रोह चलता रहा था। 1947 में नागा नेताओं ने भारत की आजादी से एक दिन पहले अपनी आजादी की घोषणा की थी।
जम्मू और कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद नागा नेताओं में केन्द्रीय सरकार के प्रति शंका पैदा हुई है। एक नागा नेता ने यह बयान भी दिया है कि सरकार नागालैण्ड को कश्मीर न समझे। नागा नेताओं के पास उनकी अपनी फौज है और दशकों तक भारतीय सेना से लडऩे का तजुर्बा भी है। ऐसी हालत में राज्यपाल आर.एन. रवि का यह कहना कि नागालैण्ड के मामले में केन्द्र सरकार सख्ती से अपना फैसला लागू करेगी, एक नये विद्रोह का आरम्भ विन्दु हो सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए बातचीत की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की बात कही है। उनका यह निर्णय पूर्वोत्तर में हमारे हित में है।
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