Thursday, February 18, 2021

भारी पड़ने लगा है पर्यावरण को नजरंदाज करना


प्रोफेसर मंजूर अहमद (सेवानिवृत आईपीएस) 

पूर्व कुलपति, डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा

जिस तरह से हम लोगों ने पर्यावरण को नजरंदाज किया है और  ग्लोबल वार्मिंग को अपनी भौतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए अंधाधुंध ऊर्जा के इस्तेमाल से बढऩे दिया है, उसका नतीजा कई तरह से हमारे सामने आ रहा है। अभी तीन दिन पहले अमेरिका के उत्तरी हिस्से में करोड़ों लोग ठंडक से ठिठुर रहे हैं। उसमें 24 लोगों की मृत्यु भी हो गई है। तमाम शहरों में बिजली कटी हुई और करीब 10 करोड़ अमेरिकी ठंड से परेशान हैं। आने वाले दिनों में यह हालत और खराब होगी, विशेषकर टेक्सास, आर्कन्सास और लोवर मिसीसिपी में हालत बहुत खराब है। सरकार की तरफ से लोगों से कहा गया है कि वे घर से बाहर नहीं निकले और अपने को ठंड से बचाये। ठंड माइनस 22 डिग्री तक पहुंच गई है और बिजली न होने से घरों में गर्म करने का सभी उपाय काम नहीं कर रहे हैं। लोग लकड़ी आदि के जरिये घरों को गर्म करने की कोशिश कर रहे हैं, परन्तु यह काफी नहीं है। कई जगह कार्बन मोनोआक्साइड के कारण भी मृत्यु हुई हैं। 

वैज्ञानिकों ने बताया है कि यह ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हुआ है और बहुत हद तक मनुष्य ही इसका जिम्मेदार है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण जो आर्कटिक की ठंडी हवाएं बिना रोक-टोक के आ जाती हैं और उनके कारण पूरा इलाका ठंड में डूब जाता है। इसे आर्कटिक वोरटेक्स या पोलर वोरटेक्स भी कहते हैं। यह तूफान पहले पोल के आस-पास ही सीमित रहता था, अब दक्षिण में काफी दूर तक इसका असर हो रहा है। इस तूफान से बचने का एक ही उपाय है कि इंसान ग्लोबल वार्मिंग को कम करें, ताकि आर्कटिक क्षेत्र में ग्लेशियर न टूटे और तूफान दक्षिण में नहीं आयें। यह इलाके जो इस ठंड की आंधी की जद में हैं, घनी आबादी वाले हैं और इसका असर ऐसा ही होगा, जैसा कोरोना के दौरान लॉकडाउन में हुआ था। हफ्तों आर्थिक कार्यक्रम ठप हो जायेंगे। जनजीवन पटरी से उतर जायेगा।

No comments:

Post a Comment

Please share your views

युवाओं को समाज और देश की उन्नति के लिए कार्य करना चाहिए : प्रो. सुधीर अवस्थी कानपुर। छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्...