प्रोफेसर मंजूर अहमद (सेवानिवृत आईपीएस)
पूर्व कुलपति, डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा
देश में विशेषकर औद्योगिक क्षेत्रों में जिस तरह कोरोना वायरस फैल रहा है, उससे विकास की पूरी प्रक्रिया बैठती हुई नजर आ रही है। पहले के मुकाबले में इस बार यह रफ्तार बहुत तेज है। एक विशेष बात यह भी है कि अब यह बीमारी शहरों से निकल कर गांवों की तरफ जा रही है। पिछली बार जिस तरह इस महामारी ने रोजगार और लोगों की खुशहाली पर कुठाराघात किया था, इस बार उससे अधिक सख्त मामला नजर आ रहा है। एक बात यह भी है कि पिछली बार जब लॉकडाउन हुआ तो लोगों ने बहुत परेशानी के बावजूद उसे झेला। विशेषतौर से प्रवासी मजदूरों का हाल बेहाल हुआ। उसने सरकारी तंत्र को बदनाम करके रख दिया।
इस बार लोग इसके लिए तैयार नहीं हैं। लोगों में एक अविश्वास और थकान का भाव नजर आ रहा है। लोग न तो मास्क पहन रहें हैं और न उचित सामाजिक दूरी का ध्यान रख रहे हैं। यही नहीं लोगों ने भीड़ वाली जगहों पर जाना भी कम नहीं किया है। बाजारों में हर वक्त बिना मास्क पहने लोगों की भीड़ नजर आती है। पिछले दिनों बिहार में एक कोचिंग सेंटर में जब पुलिस ने विद्यार्थियों से जमा नहीं होने को कहा तो विद्यार्थियों ने पुलिस को खदेड़ दिया। उनका कहना था कि अगर राजनेता रैलियां कर रहे हैं और उससे यह महामारी नहीं फैल रही है तो हमें अपने कोचिंग सेंटर में पढऩे से क्यों रोका जा रहा है। यही बात कृषि कानूनों के विरूद्घ प्रदर्शन कर रहे दिल्ली के चारों तरफ किसानों ने भी कही। यद्यपि प्रधानमंत्री और अन्य लोग मौका बेमौका इस महामारी से बचने की तरकीबें दोहराया करते हैं, परन्तु लोग मानने को तैयार नहीं है। इसका एक बुनियादी कारण लोगों में अविश्वास है। यदि राजनेता स्वयं अपनी बात पर कायम रहते और वैसा ही आचरण करते तो शायद यह स्थिति नहीं होती।
यह बीमारी इस स्थिति में आ गयी है कि अब केवल रत्रिकालीन कफ्र्यू से रूकने वाली नहीं है। रात्रिकालीन कफ्र्यू से सरकार क्या फायदा उठाना चाहती है यह समझ में नहीं आता। यदि लोग दिन में भीड़-भाड़ वाली जगहों पर लोग बिना मास्क लगाये और उचित दूरी नहीं रखते हुए लोग जमा होते हैं तो रात के कफ्र्यू का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।
इस समय सरकार इस पर सोचें कि आम नागरिक को कैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी किये गये निर्देशों पर लाया जाये। इसके लिए एक सुझाव यह भी है कि जिन लोगों ने पांच राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव में अपना पूरा समय और शक्ति झोंक दी है, वह किस हद तक लोगों में घूमकर ऐसा माहौल तैयार करने का प्रयास करेंगे। जिससे ध्यान चुनाव से हटकर स्वास्थ्य की तरफ जाये। इन पांच राज्य विधानसभाओं में कम से कम तीन (केरल, तमिलनाडु, पुड्डूचेरी) ऐसी हैं, जिनमें केन्द्र सरकार को जीत की आशा नहीं होगी। यदि राजनीतिक कार्यकर्ता गांव में घूम घूमकर लोगों को शिक्षित करते तो ज्यादा फायदा होता। इस महामारी का मुकाबला जनशक्ति के द्वारा ही हो सकता है। सरकारी आदेशों से नहीं हो सकता।
आज से करीब १४०० साल पहले जब अरब के हिस्से में प्लेग फैला तो इस्लाम के पैगम्बर मोहम्मद साहब ने दो-तीन निर्देश दिये।
१. जो लोग प्लेग वाले क्षेत्र में हों, वे वहां से बाहर न जायें, वहीं रहें।
२. बाहर के लोग प्लेग ग्रसित क्षेत्रों में न जायें।
3. लोग सब्र और यकीन के साथ हिम्मत से जीयें।
पूरे समाज ने अक्षरश: पालन किया और प्लेग की बीमारी नहीं फैली और थोड़े दिनों में खत्म हो गई। एक ऐसा माहौल तैयार किया जाना चाहिये, जैसा मोहम्मद साहब ने तैयार किया था, जैसा कि लोगों ने आंख मूंदकर उनके निर्देशों पर अमल किया। क्या ऐसा कोई राजनेता है जो गांधी जी की तरह लोगों को दांडी मार्च की तरह इस बीमारी को हराने के लिए तैयार कर सके।
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