Monday, May 10, 2021

जन माध्यम समाचार पत्र समूह के एक युग का अंत (सम्पादकीय)

अलविदा 
जन माध्यम समाचार पत्र के लिए सोमवार काला दिन साबित हुआ। समाचार पत्र की संस्थापिका एवं प्रथम संपादक रहीं श्रीमती निलोफर अहमद हम सभी को छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह दी। वह भले ही हमारे बीच नहीं रहीं, लेकिन उनके बताये मार्गदर्शन और नीतियां सदैव हम सभी के बीच प्रेरणास्रोत का कार्य करेंगी। आज जन माध्यम जिस मुकाम पर है, वहां तक पहुंचाने में उनकी बड़ी भूमिका रही है। उनके देहावसान से जन माध्यम के एक युग का अंत हो गया। इस तरह से हम सबके बीच से उनका चले जाना समाचार पत्र समूह के लिए अपूर्णनीय क्षति है। 

झांसी में जन्मी श्रीमती अहमद शुरू से प्रतिभाशाली रहीं। शुरूआती शिक्षा गृह जनपद से प्राप्त करने के बाद उन्होंने कश्मीर विश्वविद्यालय से स्नातक और बीएड की शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की। आईपीएस अधिकारी प्रोफेसर मंजूर अहमद के साथ निकाह के बाद दोनों ने मिलकर समाज के गरीब और जरूरतमंदों की फिक्र में हर संभव मदद का बीड़ा उठाया। उन्होंने इस दौरान आईपीएस वाइव्स एसोसिएशन से जुड़कर महिला अधिकारों, शिक्षा-दीक्षा और जागरूकता के विभिन्न कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर भागीदारी की। ईद, बकरीद जैसे विभिन्न पर्वों पर किसी गरीब के घर मायूसी न रहे, इसकी दोनों लोगों ने भरपूर कोशिश की। खाने के साथ-साथ नये कपड़ों तक का प्रबंध हर वर्ष किया जाना जैसे उनके नितांत जरूरी कार्यों में शुमार था। 

अपनी बीएड की शिक्षा का सदुउपयोग करते हुए उन्होंने फरीदाबाद में एक इंटर कालेज की स्थापना भी की, जिसके माध्यम से गरीब बच्चों को सस्ती और बेहतर शिक्षा मुहैया कराने का उनका ध्येय था। वे कभी भी कालेज में अकेले न भोजन करके हमेशा छात्रों के साथ ही भोजन किया करती थीं। आज भी वह स्कूल अनवरत अपने मिशन पर चल रहा है।

2010 की बात है, उनके दिमाग की ही उपज थी कि समाचार पत्र के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच जागरूकता फैलायी जा सकती है। इसी का परिणाम जन माध्यम समाचार पत्र समूह रहा। जून 2010 में लखनऊ से इसका पहली बार प्रकाशन शुरू हुआ और समाचार पत्र के पहले अंक से संपादन का दायित्व श्रीमती निलोफर अहमद से संभाल लिया। जब मीडिया में पेड न्यूज, सनसनी, विज्ञापन और पीत पत्रकारिता का बोलबाला था, तब जन माध्यम ने विशुद्ध रूप सकारात्मक पत्रकारिता के माध्यम से मिसाल कायम करने का कार्य किया। समाचार पत्र में उन्होंने कभी भी प्रथम पïृष्ठ पर विज्ञापन नहीं छापा। उनका स्पष्टï मत था कि समाचार पत्र की पहचान उसकी सकारात्मक खबरों के दम पर होता है और इससे जन माध्यम कभी समझौता नहीं करेगा। उन्हीं की अगुवाई में समाचार पत्र ने अपना मेरठ, नई दिल्ली, पटना और रांची का संस्करण भी शुरू किया। बाद में अस्वस्थता की वजह से जब उन्होंने संपादन का दायित्व छोड़ा तब भी उनकी पैनी नजर समाचार पत्र के सभी खबरों और संपादकीय पर बनी रहती थी। 

आज वे हमारे बीच नहीं रहीं, लेकिन उनके दिखाये रास्ते पर जन माध्यम समाचार पत्र भविष्य में भी अपना सफर जारी रखेगा। गरीबों, जरूरतमंदों की आवाज के लिए जन माध्यम के पन्नों में हमेशा जगह खाली रहेगी। उनकी कमी को पूरा नहीं किया जा सकता, लेकिन उनके दिखाये मार्गों पर चलना ही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी। विनम्र श्रद्धांजलि!

1 comment:

  1. बहुत ही अफसोस हुआ,ये समाचार देख कर,अल्लाह उनकी मग़फ़िरत फरमाए

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