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कभी मत भूलना माँ बाप को अपनी जवानी मे
रहें जिन्दा सदा एहसान उनके, जिंदगानी मे I
हजारों कोशिसों के बाद जीवन कि डगर पर हम,
बिना उनकी कृपा के एक पल भी चल नहीं सकते I
चलाया था लकड़पन मे उँगलियाँ थाम कर जिसने,
बुढ़ापे मे सहारा हम भला क्यों बना नही सकते I
हजारों जिद किया करते थे जिनसे अपने बचपन मे,
लगादी सारी उसने जिंदगानी पूरा करने में I
क्या उनकी एक भी ख्वाहिश हमें लगने लगी मुश्किल,
बिछा दी सारी जिसने नौजवानी मेरी मंजिल में I
बड़े खुद गरज हो साहब जहाँ सब घूम आते हो,
समझ कर चाँद को ऊँचा उसे भी चूम आते हो I
समंदर लाँघ कर गहराइयाँ भी नाप लाते हो,
अगर मुमकिन हुआ तो हर जहाँ अपना बनाते हो I
मगर माँ बाप के चरणो की क्या गहराइयाँ देखी,
तुम्हारी आस मे वेबस नजर की तनहाईयाँ देखी,
वो सूखे आंख के आंशू, कि जैसे कह रहें हों कुछ,
फटे जूतों के अंदर दरकती विवाइयाँ देखी I
नही अब याद तुमको चाँद तारों की कहानी है,
सुनाती रात भर जो माँ वो अब लगती विरानी है I
कभी धोखे से अपने लाल का न दिल दुखाती थी,
रहें लल्ला सलामत, फिक्र मे इस डूब जाती थी I
बुरे सपने न आये रात मे, बस इस लिए ही तो,
बिछौना के सिरहने पर, सदा चाक़ू छिपाती थी I
अगर धोखे से भी बस एक आंशू आंख से गिरता,
गिरा सैलाब हो जैसे, मोहल्ले को बताती थी I
अरे नादान, ममता की कोई कीमत नही होती,
कभी मत नापना गहराइयाँ सीमित नही होती I
..............................रामसनेही " सजल "
कभी मत भूलना माँ बाप को अपनी जवानी मे
रहें जिन्दा सदा एहसान उनके, जिंदगानी मे I
हजारों कोशिसों के बाद जीवन कि डगर पर हम,
बिना उनकी कृपा के एक पल भी चल नहीं सकते I
चलाया था लकड़पन मे उँगलियाँ थाम कर जिसने,
बुढ़ापे मे सहारा हम भला क्यों बना नही सकते I
हजारों जिद किया करते थे जिनसे अपने बचपन मे,
लगादी सारी उसने जिंदगानी पूरा करने में I
क्या उनकी एक भी ख्वाहिश हमें लगने लगी मुश्किल,
बिछा दी सारी जिसने नौजवानी मेरी मंजिल में I
बड़े खुद गरज हो साहब जहाँ सब घूम आते हो,
समझ कर चाँद को ऊँचा उसे भी चूम आते हो I
समंदर लाँघ कर गहराइयाँ भी नाप लाते हो,
अगर मुमकिन हुआ तो हर जहाँ अपना बनाते हो I
मगर माँ बाप के चरणो की क्या गहराइयाँ देखी,
तुम्हारी आस मे वेबस नजर की तनहाईयाँ देखी,
वो सूखे आंख के आंशू, कि जैसे कह रहें हों कुछ,
फटे जूतों के अंदर दरकती विवाइयाँ देखी I
नही अब याद तुमको चाँद तारों की कहानी है,
सुनाती रात भर जो माँ वो अब लगती विरानी है I
कभी धोखे से अपने लाल का न दिल दुखाती थी,
रहें लल्ला सलामत, फिक्र मे इस डूब जाती थी I
बुरे सपने न आये रात मे, बस इस लिए ही तो,
बिछौना के सिरहने पर, सदा चाक़ू छिपाती थी I
अगर धोखे से भी बस एक आंशू आंख से गिरता,
गिरा सैलाब हो जैसे, मोहल्ले को बताती थी I
अरे नादान, ममता की कोई कीमत नही होती,
कभी मत नापना गहराइयाँ सीमित नही होती I
..............................रामसनेही " सजल "
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