प्रोफेसर मंजूर अहमद (सेवानिवृत आईपीएस)
पूर्व कुलपति, डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा
प्रिया रमानी और एम जे अकबर के मामले में अदालत ने एक अहम फैसला किया है, जो अनुकरणीय है। प्रिया रमानी, भाजपा नेता एम.जे. अकबर के दफ्तर में काम कर रही थी। उस समय एम.जे. अकबर ने कई बार उनसे दस्त दराजी की और प्रिया रमानी ने इसकी शिकायत भी की। एम.जे. अकबर दुर्भाग्य वश उस मामले में बच निकले और फिर उन्होंने प्रिया रमानी पर मानहानि का मुकदमा किया। इसमें अदालत ने प्रिया रमानी के पक्ष में फैसला किया और कहा कि कोई भी स्त्री अकारण ऐसा इल्जाम नहीं लगा सकती और इस मामले में प्रिया रमानी निर्दोष हैं।
इससे पहले एक आईपीएस आफिसर के.पी.एस. गिल ने एक भोज के उपरांत एक वरिष्ठï आइएएस आफिसर मिस रूपन देओल बजाज के पीछे हाथ मारा। यह नितांत आपत्तिजनक कार्य था और दर्जनों अधिकारियों के सामने यह किया गया। केपीएस गिल ने पंजाब में सिख उग्रवाद को समाप्त करने का श्रेय ले रहे थे और लोगों ने इसी कारण उनके इस नितांत गंदे काम को नजरंदाज करने की कोशिश की, परन्तु मिस बजाज लड़ती रहीं और आखिर में सांकेतिक जीत उन्हीं की हुई।
हमारे देश में २०वीं शताब्दी के उत्तराद्र्घ में लड़कियां अफिस में काम करने लगी। अब एक अच्छी खासी संख्या आफिस में काम कर रही हैं और उनके सम्मान की रक्षा करना सबका फर्ज है। अब भी जो मामले सामने आते हैं, वह बहुत थोड़े से मामले सामने आते हैं, जबकि इस तरह का कृत्य बड़ी संख्या में होता है। स्त्रियां बदनामी या अन्य कारणों से चुप रह जाती है, परन्तु प्रवुद्घ वर्ग को जिन्हें समाज की चिन्ता है और जो लैंगिक समानता की बात करते हैं, उनको चुप नहीं रहना चाहिये। एम. जे. अकबर जैसे आदमी से यह उम्मीद नहीं की जाती थी कि वह ऐसा करेंगे। कई मामले और भी ऐसे आये। एक मामला एक संपादक का भी था, जो अदालत गया। जबसे मी-२ वाला अभियान चला है, तो औरतें व लड़कियां सामने आने लगी हैं। हमें उनकी हिम्मत बढ़ानी चाहिये और उन्हें पूरा संरक्षण देना चाहिये।
सुप्रीम कोर्ट के एक चीफ जस्टिस के विरूद्घ भी एक ऐसी शिकायत आयी थी, परन्तु उस मामले की लीपापोती हो गई और अभी पिछले दिनों संसद में एक सदस्य ने इस मामले को दबाने पर सवाल उठाया था। अक्सर यह प्रश्न पूछा जाता है कि महिला ने यह शिकायत पहले क्यों नहीं लगाया। न्यायालय ने प्रिया रमानी के मामले में बहुत सही कहा है कि यह मामला उठाने में कोई समय की सीमा नहीं है और यह कभी भी उठाया जा सकता है और उसे उठाने के लिए पीडि़त महिला आजाद है। घरों में काम करने वाली औरतों को भी सेक्सुअल हरेसमेंट बहुत ही आम बात हो गयी है। बचाया जाना चाहिये।
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