Wednesday, February 24, 2021

क्षेत्रीय विदेश नीति का पुनरीक्षण जरूरी है


प्रोफेसर मंजूर अहमद 
(सेवानिवृत आईपीएस) 

पूर्व कुलपति, डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा

दक्षिण पूर्व एशिया में हमारी विदेश नीति कितनी कामयाब है, इसे देखने की आवश्यकता है। इन देशों में पाकिस्तान से हमारी पुरानी नाराजगी जगजाहिर है। बाकी देशों से भी संबंध सुधरते नजर नहीं आते। हमने अमेरिकी और पश्चिमी देशों के दबाव में म्यांमार के मामले में जो नीति अपनायी है, वह चाहे नैतिक आधार पर जितना भी सही हो, लेकिन उससे हमें कोई फायदा नहीं होगा। बांग्लादेश से भी संबंध पहले जैसे नहीं है। बांग्लादेश बेल्ट एण्ड रोड इनीशिएटिव में चीन के साथ जा रहा है और उसमें चीनी निवेश बढ़ रहा है। श्रीलंका ने पहले दक्षिण श्रीलंका के एक बंदरगाह के मामले में हमारे साथ हुए समझौते को रद कर दिया, जिससे उसी का फायदा था। अब उत्तरी श्रीलंका में जाफना के पास हमारी सीमा से केवल ५० किलोमीटर की दूरी पर एक संयंत्र के निर्माण में हमारी आर्थिक मदद की जगह चीन से कर्ज लेना श्रेष्यकर समझा। यह अत्यंत खेदजनक था। श्रीलंका से थोड़ी दूर पर स्थित मालद्वीव में हमारे विदेश मंत्री जयशंकर गये थे और उन्होंने मालद्वीव से एक सामरिक रूप से अहम समझौता किया था। यह समझौता उनके और मालद्वीव की विदेश मंत्री सुश्री मरियम दीदी के बीच हुआ था, परन्तु संसद में इसका विरोध हो रहा है। ८० सांसदों में से ५१ ने इस पर विस्तृत बहस के लिए नोटिस दे रखा है और अब इस समझौते के मूल रूप में क्रियान्वयन की कोई उम्मीद नहीं है। सांसदों ने विशेष रूप से इस पर जोर दिया है कि किसी भी हाल में मालद्वीव की जमीन पर किसी विदेशी फौज का बूट नहीं पडऩे दिया जायेगा। इससे पहले भारत ने तट रक्षा के लिए दो हेलीकाप्टर दिये थे, परन्तु उन्हें भी मालद्वीव ने इसी बुनियाद पर लौटा दिया था। पाकिस्तान और चीन से तो हमारे संबंध खराब हैं ही, इधर हमने अमेरिकी दबाव में ईरान से भी संबंध खराब कर लिये हैं और इस कारण अब पाकिस्तान और ईरान काफी नजदीक आ रहे हैं। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का श्रीलंका का दौरा हमें इस क्षेत्र में अलग-थलग करने की एक कोशिश है। कोविड-१९ के कारण देश में बाहरी देशों द्वारा निवेश भी बहुत कम हो गया है। इसका कारण यह है कि लगभग सभी देशों में इस महामारी की वजह से आर्थिक संकट है। चीन अकेला देश है, जो इस समय भी निवेश कर रहा है, परन्तु हमने उसके द्वारा देश में निवेश पर बहुत प्रतिबंध लगा दिया है। २०१९-२० में चीन साढ़े तीन बिलियन डॉलर का नया निवेश किया था, जो इस साल घटकर उसके आधे से भी कम १.५ बिलियन डॉलर रह गया है। अर्थशास्त्रियों का विचार है कि सीमा पर तनाव अपनी जगह है, परन्तु निवेश रोकने का कोई तार्किक कारण नजर नहीं आता, क्योंकि इसमें हम लोगों का ही फायदा था। चीन और रूस के नजदीक आने से रूस से भी हमारे संबंध अब वैसे नहीं रह जाएंगे, जैसे कि पहले थे। नेपाल से हमारा तनाव चल रहा है और इसके पीछे चीनी कूटनीति ही है। ले देकर केवल नन्हा भूटान ही हमारे साथ है, परन्तु वहां भी राजनीतिक लोगों का एक समूह हमारे द्वारा भूटान की नीतियों पर नियंत्रण के विरूद्घ खड़ा हो रहा है। यह समूह अन्य देशों में भूटान के दूतावास खोले जाने का पक्षधर है।

यदि हम अपने आस-पास के देशों से संबंध नहीं सुधार सकते तो फिर हिन्द पैसेफिक या क्वाड का कोई बहुत महत्व नहीं रह जाता। अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि आप पड़ोसी नहीं बदल सकते। उनके साथ आपको रहना ही है तो संबंध ठीक करना आवश्यक ही है। 

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